धर्म एवं जाति के नाम पर राजनीति होने लगी है,जो देश के लिये अत्यंत भयावह है-स्वामी राजनारायणाचार्य

बिकास राय ब्यूरो चीफ दैनिक समाज जागरण

धर्म एवं जाति के नाम पर राजनीति होने लगी है,जो देश के लिये अत्यंत भयावह है। जगद्गुरु स्वामी राजनारायणाचार्य जी ने कहा की यद्यपि पण्डित का बड़ा ही व्यापक एवं श्लाघनीय अर्थ है,पर सम्प्रति पण्डित शब्द ब्राह्मणों के लिये प्रयुक्त हो रहा है।
अपने को हिन्दुओं का पुरोधा माननेवाले महानुभाव के मुँह से ब्राह्मणों के प्रति दुर्व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण है ।

ज्ञातव्य है कि पण्डितों ‘ ब्राह्मणों ‘ ने जाति नहीं बनायी क्योंकि मनुष्य जाति तो एक प्रकार की ही है।
श्रीमद्भागवत का उदाहरण दे रहा हूँ-
अर्वाक्श्रोतस्तु नवमः क्षत्तरेकविधो नृणाम्।
रजोऽधिकाः कर्मपरा दुःखे च सुखमानिनः॥
{ श्रीमद्भागवत ३।१०।२५ }
परमपिता परमात्मा ने इस मनुष्य जाति का चार अविभाज्य अंग बनाया जिसे वर्ण कहा जाता है ।
गीता में स्वयं श्रीभगवान् कहते हैं –
ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र इन वर्णों का समूह,गुण और कर्मों विभाग करते हुए मेरे द्वारा रचा गया है।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागसः।
तस्य कर्तारमपि मां विध्यकर्तारमव्ययम्॥
{ श्रीमद्भगवद्गीता ४।१३ }
ज्ञातव्य है कि वेदों का कोई रचनाकार नहीं है।
वेदों के लेखक कोई पण्डित नहीं है अपितु वेदों को अपौरुषेय माना गया है ।
शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दनीय शाखा के ३१ वाँ अध्याय ११वाँ मन्त्र –
ब्राह्मणोऽस्यमुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्या गुँ शूद्रो अजायत॥
ये मंत्र चारों वेदों में है।
वेदों के अनुसार एक शरीर का ही मुख ब्राह्मण है तो हाथ क्षत्रिय,जँघा वैश्य है तो पैर शूद्र है।
समतामूलक वेदों ने निर्देश दिया है कि शरीर के अविभाज्य चार अंगों के कार्य तो भिन्न भिन्न हैं,पर रक्त तो चारो अंगों में एक बराबर ही है।
सर्वत्र सनातनधर्म माननेवाले माता-पिता,गुरु,पुरोहित,ज्येष्ठ,श्रेष्ठों के पैर की ही पूजा करते हैं।
सभी कहते हैं ? पाँय लागीं महाराज,
भइया गोड़ लागतानी ।
कितनी समता,समन्वय,समदर्शिता इन ग्रंन्थों में दृष्टिगोचर हो रही है।
मुख ब्राह्मण जो पैर शूद्र पर झुकता है ।
जो ये कहते हैं कि पण्डितों ने जाति बनायी है,ब्राह्मणों ने भेदभाव,छुआ-छूत बनाया है,ये बातें निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः”