अनूपपुर।एक तरफ प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर कोतमा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खुद बीमार हालत में पहुंच गया है। यह वही अस्पताल है जिसे कोतमा विधानसभा क्षेत्र की “जीवनदायिनी” कहा जाता है। मगर जमीनी हकीकत यह है कि यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों का स्वागत बदहाल भवन, गंदगी और लापरवाही से होता है।
भवन में उग आए पेड़, चारों ओर फैली गंदगी
अस्पताल की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि भवन की दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं और कई जगह पेड़-पौधे उग आए हैं। अस्पताल परिसर में जगह-जगह कचरे के ढेर लगे हैं। शौचालयों की हालत बेहद खराब है और गंदगी से बीमारियों के फैलने का खतरा बना हुआ है।
एक्सपायरी दवाइयों को बाहर फेंककर लगा दी जाती है आग
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अस्पताल में समाप्त हो चुकी दवाइयों का निस्तारण सुरक्षित ढंग से न कर उन्हें खुले में फेंक दिया जाता है और कई बार उनमें आग लगा दी जाती है। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि आमजन की सेहत भी खतरे में पड़ रही है।
मंत्री की फटकार के बाद भी नहीं सुधरी व्यवस्था
हाल ही में प्रदेश सरकार में मंत्री श्री दिलीप जायसवाल ने अस्पताल का औचक निरीक्षण किया था और वहाँ की अव्यवस्था देखकर बीएमओ को जमकर फटकार लगाई थी। लेकिन निरीक्षण के कई दिन बाद भी सुधार के कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इससे यह साफ हो गया है कि जिम्मेदार अधिकारी व स्वास्थ्य अमला गंभीर नहीं है।
रोजाना सैकड़ों मरीज आते हैं इलाज कराने
कोतमा स्वास्थ्य केंद्र में रोजाना सैकड़ों मरीज इलाज कराने आते हैं। यह अस्पताल क्षेत्र का एकमात्र बड़ा चिकित्सा केंद्र है, जिसके भरोसे ग्रामीण इलाकों की जनता रहती है। मगर यहां की बदहाल व्यवस्था मरीजों के लिए खुद एक बड़ी बीमारी बन चुकी है। उल्लेखनीय है कि अस्पताल की स्थिति को लेकर कोतमा नगर के कई समाजसेवियों ने पहले भी आवाज उठाई है। हाल ही में अस्पताल व्यवस्था सुधारने की मांग को लेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आमरण अनशन तक किया, मगर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने गंभीरता नहीं दिखाई।
जनता की मांग: स्वास्थ्य मंत्री करें हस्तक्षेप
स्थानीय नागरिकों और जनप्रतिनिधियों ने मांग की है कि स्वास्थ्य मंत्री स्वयं इस मुद्दे पर संज्ञान लें और कोतमा अस्पताल की व्यवस्था में जल्द सुधार कराएं। आमजन का जीवन सीधे तौर पर इससे जुड़ा है और स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती। स्वास्थ्य विभाग, नगर पालिका, और जिला प्रशासन की संयुक्त जिम्मेदारी है कि इस तरह की लापरवाही पर त्वरित कार्रवाई हो। सवाल यह है कि जब मंत्री के दौरे और फटकार के बावजूद भी कोई सुधार नहीं होता, तो फिर आम जनता की आवाज कितनी दूर तक जाएगी?