इलेक्टोरल बांड :बड़ी अदालत का बड़ा फैसला


राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए बेचे जाने वाले इलेक्टोरल बांड को यदि देश की सबसे बड़ी अदालत असंवैधानिक करार न देती तो हालांकि आसमान नहीं टूटता लेकिन न्यायपालिका के प्रति लगातार घटता विश्वास और कम हो जाता ।  बड़ी अदालत का ये फैसला अप्रत्याशित ही नहीं बल्कि लगातार कमजोर हो रहे लोकतंत्र और प्रदूषित  हो रही चुनाव प्रणाली के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए ताजा हवा के झोंके की तरह है। बड़ी अदालत के फैसले से हालाँकि चुनावी चंदे के लेनदेन पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा । सरकारें कोई दूसरा रास्ता निकाल लेंगीं ,हाँ फिलहाल सत्तारूढ़ दल के ऊपर संविधान  के खिलाफ काम करने के आरोपों की पुष्टि जरूर हो गयी है।
आपको याद ही होगा कि देश में वर्ष 2014  में सत्तारूढ़ होने के तीन साल बाद  2017 में केंद्र की भाजपा सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी।  इस योजना को  29 जनवरी 2018 से कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था।  तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम चुनावी चंदे में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है। लेकिन भाजपा और उसकी सरकार के ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ थी ,ये किसी को पता नहीं था।
योजना के तहत ये इलेक्टोरल बांड  स्टेट बैंक ऑफ ऑफ इंडिया की 29 ब्रांचों से अलग-अलग रकम के बॉन्ड जारी किए गए। . इनकी रकम एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक होती थी। . इसे कोई भी खरीद सकता था  और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता था
योजना के तहत, इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में जारी किये गए . हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट मिले हों।
राजनीतिक दलों को अनैतिक तरीके से कमाई का जरिया बने इस बांड का सबसे ज्यादा लाभ सत्तारूढ़ दल भाजपा को मिला,लेकिन विपक्षी दलों ने भी इस बंद के जरिये चुनावी चन्दा लेने से गुरेज नहीं किया । बात तो तब होती जब दूसरे दल इस चंदे का बहिष्कार करते ,किन्तु सभी राजनीतिक दल चोर-चोर मौसेरे भाई निकले। किसी को कम ,किसी को ज्यादा चन्दा इस बांड के जरिये मिला। दुर्भाग्य ये कि इस असंवैधानिक बांड को ‘ असंवैधानिक घोषित करने में सात साल लग गए।  इस अवधि में जिसे जो कमाना था उसने उतना कमा लिया। अदालत के फैसले के बाद ये हजम किया गया चन्दा राजनितिक दलों से उगलवाया नहीं जा सकता। इस फैसले से सिर्फ चन्दाखोर राजनीतिक दलों को बेनकाब किया जा सकता है। इसलिए मुझे ये फैसला ताजा हवा का झोंका लगते हुए भी आधा-अधूरा लगता है।
मुमकिन है कि बड़ी अदालत के फैसले के बाद 13  मार्च को चुनाव आयोग अपनी वेब साइट पर इलेक्टोरल बांड से राजनीतिक दलों द्वारा कमाए गए चुनावी चंदे के आंकड़े जाहिर कर दे ,लेकिन फिलहाल आपको बता दें कि  इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता को चुनौती देने वालों में एक संस्था  एडीआर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बॉन्ड के जरिए 16,492 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा मिला है।  चुनाव आयोग में दाखिल 2022-23 के लिए ऑडिट रिपोर्ट.के अनुसार के मुताबिक, बीजेपी को 1,294 करोड़ रुपये से ज्यादा का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला , जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड़ रुपये रही. यानी, भाजपा  की कुल कमाई में 40 फीसदी हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा।
जाहिर है कि ये चुनावी बांड आम आदमी ने न खरीदे होंगे और न राजनीतिक दलों के खजाने में जमा कराये होंगे ।  ये बांड खरीदने वाले निश्चित रूप से वे औद्योगिक घराने होंगे जिनके इशारे पर सरकार कठपुतली की तरह नाचती दिखाई देती है। ये कौन लोग हो सकते हैं इनके बारे में विपक्षी दल लगातार अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं ,लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया ।  जनता भी इनके बारे में ज्यादा सोचती-समझती नहीं है ।  उसके लिए तो ‘ कोऊ नृप होय ,हमने का हानि ‘वाली कहावत ही लागू होती है। इस काले चंदे से सत्तारूढ़ दल ने पहली बार अपनी  पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे को मजबूत किय।  देश के आधे से ज्यादा जिलों में पार्टी के लिए पांच सितारा कार्यालय बनाये। लेकिन किसी ने चूं तक नहीं की ,बल्कि  रामनामी ओढ़कर जनता को लगातार चूना लगाने वालों को जनता का लगातार समर्थन मिला।
देश की धर्मभीरु और अंधभक्त जनता नहीं जानना चाहती कि इलेक्टोरल बॉन्ड से सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को होता है और वो इसका अनुचित फायदा उठाती है। याचिकाकर्ता  एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 से 2021-22 के बीच भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 5,271 करोड़ रुपये का चंदा मिला. सबसे ज्यादा चंदा उसे 2019-20  में मिला था।  वो चुनावी साल था और तब बीजेपी को 2,555 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से आया था। इसी काले चंदे कि बदौलत देश में पहली बार आजादी के बाद का सबसे मंहगा चुनाव लड़ा गया। इतना मंहगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हुए खर्च को भी पीछे छोड़ दिया गया।
आप देखेंगे कि बड़ी अदालत का फैसला आने से पहले ही सत्तारूढ़ दल अपना ‘ खेला ‘ यानि खेल कर चुके है।  उन्हें इन बांड्स के जरिये जो कमाना था सो कमा लिय। इसी वजह से 2024  का चुनाव भी इतना मंहगा होगा कि कांग्रेस समेत कोई दूसरा दल भाजपा के मुकाबले खड़ा ही नहीं हो पायेगा। भाजपा को हारने का सपना देखने वालों को भाजपा की मालिई हालत का अनुमान ही नहीं है। देश के किसान हों,मजदूर हों या और कोई वर्ग भाजपा का बाल बांका भी नहीं कर सकते। आज भाजपा दुनिया कि न हो लेकिन देश कोई तो सबसे मालदार पार्टी है। इस मालदार पार्टी के पास माल भी है और मालामाल करने वाले राम का नाम भी। लोकतंत्र इन दोनों से बचकर आखिर जाएगा कहाँ ? अब जनता के ऊपर है कि वो नीम बेहोशी से बाहर आये और मान ले कि बीते दस साल में देश में संवैधानिक से ज्यादा असंवैधानिक काम हुए हैं। सरकार ने अपना और अपनी पार्टी   का पेट भरा है। किसानों और मजूरों के साथ ही आम आदमी को तो केवल कमर तोड़ी है ताकि जनता सरकार के सामने तनकर खड़ी न हो पाए। अदालत ने अपना काम कर दिया ह।  अब जनता जाने कि उसे क्या काना है और क्या नहीं ,क्योंकि चन्दाचोर अब जनता की अदालत में ही आने वाले हैं।
@ राकेश अचल
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