पूर्णियाँ ।
पूर्णियाँ विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के वरिष्ठ और सम्मानित शिक्षक प्रोफेसर सुरेश मंडल को उनके सेवाकाल के समापन पर भावपूर्ण विदाई दी गई। 7 नवम्बर 1996 को पूर्णियाँ कॉलेज में व्याख्याता के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले प्रोफेसर मंडल ने आज अपनी विदाई के साथ विश्वविद्यालय परिवार से अलविदा ली।
विदाई समारोह में स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. पुरन्दर दास, डॉ. जीतेन्द्र वर्मा, डॉ. अनामिका सिंह सहित विश्वविद्यालय के पूर्व और वर्तमान छात्रों ने प्रोफेसर मंडल के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया। डॉ. पुरन्दर दास ने कहा, “प्रोफेसर मंडल एक आदर्श गुरु हैं, जिनकी पावन उपस्थिति से महाविद्यालय और विश्वविद्यालय परिवार को हमेशा मार्गदर्शन मिलता रहा है। उनके साथ बिताए समय को हम सभी वटवृक्ष की छांव के रूप में याद करेंगे।”
डॉ. अनामिका सिंह ने प्रोफेसर मंडल के व्यक्तित्व को सम्मोहक और प्रभावशाली बताते हुए कहा, “उनके साथ जो भी समय बिताता है, वह हमेशा उनके आभा मंडल से प्रभावित होकर उनका दीवाना हो जाता है। उन्हें विश्वविद्यालय का अजातशत्रु कहना बिलकुल उचित है।” वहीं, डॉ. जीतेन्द्र वर्मा ने प्रोफेसर मंडल के प्रशासनिक और शिक्षण कार्यों की सराहना करते हुए कहा, “वे महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के विभिन्न पदों पर रहते हुए भी एक समर्पित और कुशल शिक्षक के रूप में स्थापित रहे। उनका योगदान असंख्य विद्यार्थियों के जीवन को प्रकाशित करने जैसा था।”
पूर्व छात्रों स्नेहिलकान्त, सौरभ कुमार, प्रीतम कुमार, कंचन कुमारी और वर्तमान छात्रों ने भी इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त किए। उनका कहना था कि प्रोफेसर मंडल के मार्गदर्शन में अध्ययन और जीवन के महत्वपूर्ण सबक मिले हैं, जिन्हें वे हमेशा याद रखेंगे। विदाई के इस भावुक पल में सभी की आंखों में आंसू थे और दिलों में गहरी श्रद्धा।
समारोह के अंतिम क्षणों में प्रोफेसर सुरेश मंडल ने अपने भरे गले से विश्वविद्यालय परिवार, शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “यहां का हर क्षण मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा। विश्वविद्यालय और इसके परिवार के सभी सदस्य मेरे लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। मैं सभी के अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना करता हूं।”
प्रोफेसर सुरेश मंडल की विदाई विश्वविद्यालय के लिए एक युग के समापन के समान है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और वे हमेशा विश्वविद्यालय के इतिहास में एक प्रेरणास्त्रोत बने रहेंगे।