नये कानून का मकसद सजा नहीं न्याय देना है.

नये कानून का मकदस सजा नहीं न्याय देना है. नये कानूनों में पुलिस पर लगाम लगाने के कई प्रावाधन किये गये हैं. देखिये… केंद्र सरकार के नये कानून में क्या है प्रावधान

1. पुलिस को किसी घर में छापेमारी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी करना जरूरी होगा. बगैर वीडियोग्राफी के कोर्ट में जब्त किया गया सामान सबूत नहीं माना जायेगा
2. देश में कोई भी पीड़ित व्यक्ति किसी थाने में एफआईआर दर्ज करा सकता है. कन्याकुमारी का भी मामला हो तो उसे हिमालय की चोटी पर भी दर्ज कराया जा सकता है. अगर किसी दूसरे थाने में एफआईआर दर्ज होती है तो उसे जीरो एफआईआर कहा जायेगा. केस दर्ज करने वाला थाना उसे 15 दिनों के अंदर संबंधित थाने में भेज देगा.

3. 7 साल से ज्यादा सजा वाले हर आपराधिक मामले में फोरेंसिक जांच जरूरी होगी. केंद्र सरकार इसके लिए हर जिले में तीन मोबाइल फोरेंसिक यूनिट देगी.

4. अमित शाह ने कहा कि पहले पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर कई दिनों तक थाने में रखती थी. अब हर थाने में एक अधिकारी रहेगा, जो सर्टिफिकेट देगा कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारी की सूचना ऑनलाइन और व्यक्तिगत तौर पर देनी होगी.

5. अगर कोई व्यक्ति एफआईआर कराता है तो पुलिस को 90 दिन में उस व्यक्ति को स्टेट्स बताना होगा कि एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई.

6. अब तक किसी सरकारी कर्मचारी-अधिकारी या पुलिस ऑफिसर के खिलाफ एफआईआर होती है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है. सरकार मंजूरी देने में कई दफे सालो साल लगा देती है और आरोपी इसका लाभ उठाता रहता है. अब सरकार को ऐसे मामलों में 120 दिन के अंदर फैसला लेना होगा. वर्ना ये मान लिया जायेगा कि उसने मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है.

7. किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बाद 90 दिन में चार्जशीट दायर करना होगा. ये नहीं चलेगा कि पुलिस औऱ जांच करने के नाम पर सालों मामले को लटकाये रखे. कुछ खास मामलों में कोर्ट भी ज्यादा से ज्यादा 90 दिन और का समय दे सकता है. यानि हर हाल में गिरफ्तारी के 180 दिनों में चार्जशीट दायर करना ही होगा.
9. किसी मामले का ट्रायल होने के बाद कोर्ट को 30 दिन में ही फैसला देना होगा. कई ऐसे मामले आते हैं जिसमें ट्रायल पूरा होने के बाद जज रिटायर हो जाते हैं या उनका ट्रांसफर हो जाता है. लेकिन अब जज को 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाना होगा और उस फैसले को 7 दिन के अंदर ऑनलाइन जारी करना होगा. ताकि संबंधित व्यक्ति को उपरी अदालत में अपील करने का मौका मिले.

10. देश के कोर्ट में अब तक किसी आरोपी की पेशी वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये होती थी. लेकिन अब पूरा ट्रायल वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हो सकती है. 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट डिजिटल

11. कई आपराधिक मामलों में एसपी को गवाही देनी होती है. जब कोर्ट में मामले का ट्रायल शुरू होता है तो पता चलता है कि एसपी साहब डीजी बन गये या फिर रिटायर कर गये. उनकी गवाही के फेरे में मुकदमा सालों साल लटका रहता है. अब ऐसे में मामलों में गवाही के लिए उस वक्त के एसपी को आने की जरूरत नहीं होगी. जो मौजूदा एसपी है, वही फाइल देख कर मामले में गवाही देगा.

देश में मौजूदा कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति भगोड़ा है तो उसके खिलाफ दर्ज मामले में ट्रायल नहीं होता. जैसे दाउद इब्राहिम भगोड़ा है तो उसके खिलाफ दर्ज मामले पेंडिंग पड़े हैं. अब भगोड़े अपराधियों के खिलाफ भी ट्रायल चलेगा, कोर्ट उसे सजा सुनायेगी.

12. संगठित और घोषित अपराध के खिलाफ नया कानून बना है. उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी. उनकी संपति की कुर्की जब्ती होगी.

13. देश भर में ऐसे मामले सामने आते हैं जिसमें कोई व्यक्ति अपनी पहचना छिपा कर महिलाओं से यौन संबंध बना लेता है. ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का पहले कोई कानून नहीं था. अब उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून बना है.

14. किसी कैदी की सजा माफी के लिए नया कानून बनेगा. राजनीतिक रसूख देखकर सजा माफी नहीं होगी. जिसे म़ृत्युदंड मिला है उसकी सजा आजीवन कारावास में बदली जा सकेगी, आजीवन कारावास के मामले में 7 साल, 7 साल की सजा के मामले में 3 साल की छूट मिल सकती है.

15. कई दफे राज्य सरकार किसी खास व्यक्ति के खिलाफ दर्ज केस वापस ले लेती है. अगर ऐसे मामले में 7 साल से ज्यादा सजा वाली धारा लगी है तो सरकार को केस वापस लेने से पहले पीड़ित की सहमति लेनी होगी

16. 18 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ गैगरेप के मामले में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया.

17. रोड पर मोबाइल या चेन स्नेचिंग के मामले में सजा दिलाने के लिए अलग कानून बना.

18. मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से रेप के मामलों में मौत की सजा देने का प्रावधान किया जाएगा.



हालांकि ये तीनो विधेयक फिलहाल संसद से पास नहीं हुए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि तीनों विधेयक को संसद की स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जायेगा. कमेटी कानूनों को लेकर वकीलों, न्यायिक अधिकारियों और दूसरे संबंधित पक्षों से राय विचार करेगी. उसके बाद इसे संसद से पारित कराया जायेगा.