लेखक: डॉ. जवाहर पासवान, के पी कॉलेज मुरलीगंज के प्रधानाचार्य हैं।
आज के समय में पूरी दुनिया हिंसा, आतंकवाद, सामाजिक भेदभाव और अन्याय का सामना कर रही है। मनुष्य का मानसिक रूप से विकृत होना और विनाशकारी प्रवृत्तियों की ओर बढ़ना चिंता का विषय बन चुका है। देशों के बीच युद्ध, धार्मिक उन्माद, आतंकवादी हमले और अन्य संघर्ष समाज में असुरक्षा की भावना को बढ़ा रहे हैं। इन परिस्थितियों में बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। बौद्ध धर्म और दर्शन मनुष्य को आत्मनिर्भर, शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन जीने की दिशा दिखाते हैं, जो आज के समय में अत्यधिक आवश्यक है।
बौद्ध दर्शन के सिद्धांत न केवल मानसिक शांति और आत्मज्ञान के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह समाज में सामूहिक शांति और सद्भावना की स्थापना में भी सहायक हो सकते हैं। बुद्ध ने अपने जीवन और उपदेशों के माध्यम से यह संदेश दिया कि मनुष्य के मानसिक विचार ही उसके कर्मों का निर्धारण करते हैं। अगर व्यक्ति के विचार सही और शुद्ध होंगे, तो उसके कर्म भी उसी अनुरूप होंगे। आज के समय में जब हिंसा और द्वेष की भावना बढ़ रही है, ऐसे में बौद्ध दर्शन की यह शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है।
बौद्ध दर्शन का सार
बौद्ध धर्म और दर्शन के मूल में एकाग्रता, शांति, और ज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है। बुद्ध ने अपने उपदेशों के माध्यम से यह बताया कि मनुष्य के दुखों का मुख्य कारण उसके आसक्ति, लालच, और अज्ञानता में निहित है। उन्होंने ‘चार आर्य सत्य’ का उपदेश दिया, जिसमें जीवन के दुखों का कारण, उनके निवारण के उपाय और उन्हें निवारित करने का मार्ग बताया गया। चार आर्य सत्य हैं:
- दुःख: जीवन में दुख और असंतोष का अस्तित्व है।
- दुःख के कारण: दुख का कारण इच्छाएं, आसक्ति और अज्ञानता हैं।
- दुःख का निराकरण: दुख का निराकरण आसक्ति और अज्ञानता को समाप्त करके किया जा सकता है।
- मार्ग: इस निराकरण के लिए आष्टांगिक मार्ग को अपनाना होता है।
आष्टांगिक मार्ग में सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि का पालन करने की आवश्यकता होती है। ये सिद्धांत मानसिक और शारीरिक संतुलन को बनाए रखते हैं और व्यक्ति को शांतिपूर्ण और सफल जीवन जीने में मदद करते हैं।
बौद्ध धर्म और अहिंसा
बौद्ध धर्म की एक महत्वपूर्ण विशेषता अहिंसा है। बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में हिंसा से दूर रहने की बात की थी और इसे सामाजिक शांति के लिए आवश्यक माना था। उन्होंने कहा था कि, “जिस प्रकार एक बीज से बहुत सारे पेड़ उगते हैं, उसी प्रकार अहिंसा से समाज में शांति का जन्म होता है।” बौद्ध धर्म में अहिंसा को न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और वाचिक रूप से भी लागू करने की आवश्यकता है। मनुष्य को न केवल दूसरों के प्रति, बल्कि खुद के प्रति भी अहिंसक होना चाहिए।
अहिंसा का पालन केवल शारीरिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और वाचिक स्तर पर भी होना चाहिए। बुद्ध ने कहा कि व्यक्ति को अपने विचारों, शब्दों और कर्मों में सच्चाई, प्रेम, और करुणा का पालन करना चाहिए। यह सिद्धांत आज के समय में भी अत्यंत प्रासंगिक है, जब दुनिया भर में हिंसा, आतंकवाद और युद्ध की घटनाएं बढ़ रही हैं।
बौद्ध दर्शन और समाज सुधार
बौद्ध धर्म ने समाज में समता और समानता का संदेश दिया। बुद्ध ने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी समानता की बात की। उन्होंने ब्राह्मणवादी जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और सभी मनुष्यों को समान मानते हुए उन्हें शिक्षा और सम्मान देने का आग्रह किया। उनके इस दृष्टिकोण ने समाज में बड़े बदलाव लाए और यह आज भी अत्यधिक प्रासंगिक है।
बुद्ध ने यह भी कहा था कि हर व्यक्ति को अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, न कि किसी भी बाहरी सत्ता या ईश्वर के द्वारा। यह विचार आज के समय में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह व्यक्ति के आंतरिक विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बुद्ध के इस दृष्टिकोण ने समाज में न्याय, समानता और स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा दिया।
बौद्ध धर्म और मानसिक संतुलन
बौद्ध दर्शन व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने के लिए ध्यान और साधना की ओर प्रवृत्त करता है। ध्यान और समाधि के अभ्यास से मनुष्य अपने मानसिक विकारों को नियंत्रित कर सकता है और अपने जीवन को शांतिपूर्ण बना सकता है। आज के तनावपूर्ण और व्यस्त जीवन में मानसिक संतुलन बनाए रखना बहुत कठिन…