मेरे गांव के माटी से ही मेरे देश की माटी में खुशबू है:- जर्नलिस्ट वेद प्रकाश

समाज जागरण संवाददाता:- वेद प्रकाश पालीगंज अनुमण्डल

कुछ महान लेखकों का कहना है कि सुंदर, मनमोहक व खुशबू से भरी माता की उपाधि धारण किये भारत ग्रामवासिनी है अर्थात भारत गांवों में बसती है। जिससे साफ जाहिर होता है कि “मेरे गांव के माटी से ही मेरे देश की माटी में खुशबू है।” तो हम बात करते है अपने ही देश की माटी की जिससे यहां की मनमोहक प्राकृतिक दृश्य व मनमोहक खुशबू से देश शोभायमान हो रही है। चाहे देश की मिटी कहीं बंजर हो या उपजाऊं सभी अपने अपने जगहों पर देश की सुंदरता व खुशबू बिखेर रही है। तो तुलना करते है गांव ग्रामीण व शहरी इलाकों की। शहरों की बनावटी सुविधाएं क्षणिक होती है लेकिन ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक प्रदत सुविधाएं स्थायी व टिकाऊ होती है। शहरी इलाकों में सेंट व परफ्यूम की सुगंध तो मिल जाती है लेकिन सुखी मिटी की सोंधी सुगंध, बगिया में खिली फूलों की खुशबू नही मिल पाती। शहरों में सिर के ऊपर छत तो होती है पर खुली आसमान नही होती। खुली आसमान तो गांव तथा ग्रामीण इलाको में ही मिलती है। ये वही गांव में निवास करनेवाले किसान होते है जो गांव की खेतो की मिटी में लिपटकर खेतो में सुंदरता व खुशबू उपजाते है। कुछ शहरी लोग बालकनी में दो चार पौधे लगाकर अपने आपको भाग्यवान समझते है तो देखा जाए कि गांवों में रहनेवाले ग्रामीण कितने भाग्यवान है जिनके पास पौधों से भरी बगीचे होती है। ये तभी सम्भव है जब पर्याप्त मात्रा में मिटी युक्त भूमि हो। यह भूमि गांवों तथा ग्रामीण इलाकों में ही मिलेगी। इसी लिए कहा गया है कि भारत देश सुंदर है और यह सुंदरता गांव व ग्रामीण इलाको में ही मिलती है। इसीलिए भारत ग्रामवासिनी है जिनकी दर्शन गांवों में ही होती है।
बात करे मिटी की तो शहरों में मिटी देखने तक को नसीब बहुत कम होती है सड़को से लेकर घरों तक की फर्श संगमरमर, पत्थरो व ईंटो से ढंके होते है। लेकिन ग्रामीण इलाके में वो सभी प्रकार की मिटियाँ देखने को मिल जाती है। जहां जीविकोपार्जन के लिए विभिन्न प्रकार के पशु पक्षीएँ, बनस्पतियाँ, पेड़ पौधे व फसलें पाई जाती है। उपजाऊं मिटी की तो कहना ही नही पर अधिक गर्मिवाले क्षेत्रो में मौजूद बंजर भूमि भी कम आकर्षक नही होती। देख जाए तो शौक से लोग मरुभूमि की सैर करने राजस्थान में स्थित थार मरुस्थल की ओर जाते है। जहां प्राकृतिक की रौद्र रूप का दर्शन होता है। पूरे दिन तेज व धूलभरी आंधियां चलती है निसे महसूस होता है कि प्राकृतिक हमसे नारुष्ट है। फिर भी वह दृश्य मनमोहक होती है जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। साथ ही हिमालय की वह दुर्गम बर्फीली चोटियां मनमोहक दिखाई देती है जो बर्फ से ढंकी सूर्य की किरणों से जगमगाती रहती है। वह हिमालय ही है जहां वर्षों तपस्या कर ऋषि मुनियों ने सिद्धियां प्राप्त किए है। जहां औषधियों का राजा संजीवनी की झड़ी बूटियां पाई जाती है। जिसे सूंघने मात्र से मृत प्राणियों में जान आ जाती है। इन बर्फीली वादियों में ही कश्मीर अवस्थित है जहां की सुंदरता के कारण इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाता है। वही देश के बीच से होकर गुजरनेवाली स्वर्ग की पवित्र नदी गंगा की बात करे तो इसके तटीय क्षेत्रों में भर्मण मात्र से मन को शांति व संतुष्टि प्राप्त होती है। इसके तट की रेत बड़े से बड़े महलो व दर्शनीय स्थलों का निर्माण कार्य मे काम आती है। यहां की गांव व ग्रामीण इलाकों की मिटी में ही महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया जो स्मरणीय है। भारत देश की भूमि को ही देवभूमि कहा जाता है। क्योंकि धर्मग्रन्थो में चर्चित राम व कृष्ण जैसे परमात्माओ ने जन्म लिया है। चाहे केरल के समीप हिन्द महासागर का तटीय क्षेत्र हो या हिमालय की पर्वतीय क्षेत्र, चाहे बंगाल की खाड़ी हो या अरब सागर की तटीय क्षेत्र। इनके बीच सभी प्रकार की मिटी पाई जाती है जो अपनी अलग विशेषताओं से परिपूर्ण है। जिस प्रकार बगिया में लाल पीले विभिन्न प्रकार के फूल खिलते है उसी प्रकार लाल, पीले, काले, चिकनी, दोमट व रेतीली कई प्रकार की मिटियाँ मिलती है। इस प्रकार देखा जाए तो सभी मिटियाँ अपनी अलग पहचान लिए देश की सुंदरता व देश की मिटी में खुशबू बिखेर रही है। तभी ही कहा जाता है कि मेरे गांव की मिटी से ही देश की मिटी में खुशबू है।