समान नागरिक संहिता विधेयक आधुनिक भारतीय समाज के लिए आवश्यक: कुमार गौरव

विविधताओं से भरा पड़ा इंडिया की राष्ट्र वाद को जवां रखने तथा एकता बनाए रखने के लिए हर नागरिक के लिए न्याय संगत एक तरह की ही व्यवस्था होनी चाहिए।

समान कानून संहिता को समझने के लिए 1947 ईस्वी के भी पहले की इतिहास के पत्रों को पलटने की जरूरत हैl पहले तो समान कानून सही शब्द नहीं क्योंकि यह समान व्यवस्था सहिता यानी ऐसी व्यवस्था जिसके तहत सिविलियन फैसले जुड़िसियरी की व्यवस्था करने में आसानी हो। चुकी 1857 की क्रांति होना इसके दबाने मे मसककत अंग्रेजो को यह सीखा गई की लंदन बैठकर हिंदुस्तान चलाना संभव नहींl जब राजनैतिक, सैन्य विद्रोह ही इतनी क्षति दी तब इस विद्रोह में आवाम अगर उनका नेटवर्क मात्र बन जाती है अंग्रेजी सल्तनत वापस लौटने के काबिल नहीं बचती।

इसका खोफ ऐसा कि अंग्रेज डेमोक्रेटिव बनने की ओर शुरुआत कर दी। भले ही दिखावे की मगर सिस्टम तैयार की गई। जुड़िसियरी की मामले एक मगर उनका पक्ष उनके अनुसार अंग्रेज चकरा गए। तब उन्होंने यानी इसकी आवश्यकता हिंदुस्तान में उस अंग्रेजी न्यायालय को छुई और उन्होंने समान कानून संहिता तहत एक ही तरह के मामले का फैसला एक ही नीति तहत होगी कि सिफारिश की गई। 1947 ईस्वी में हिंदुस्तान तो रही नहीं दो टुकड़े हो गए। इंडिया दूसरा पाकिस्तान है। इंडिया की संविधान निर्माताओं ने बड़ी ही विद्वता तथा जमीनी विकसित सोच का परिचय दिया। इंडिया के संविधान निर्माताओ के मुखिया डॉ भीमराव अंबेडकर खुशबू परोस दी इस व्यवस्था तहत ।

अंबेडकर ने संविधान में अंग्रेजों की समान कानून संहिता को इंडिया की समान नागरिक व्यवस्था संहिता प्रावधान जोड़ दी। जानते थे कि ग्रामीण इंडिया अपनी-अपनी राग गाएंगे। अगर संविधान अंकित रहेगा कानून व्यवस्था बन जाएगी । बस जरुरत महसूस होनी चाहिए। 1947 ईसवी में पाकिस्तान को इसकी जरूरत नहीं पड़ी । क्योंकि उसने पैसे लेने के लिए लोकतंत्र की दुकान खोल कर सरिया कानून व्यवस्था की घत्रछाया मैं चला गया। अब काहे का समान नागरिक व्यवस्था।बात है इंडिया की। जब यह संविधान में जोड़ी गई थी तब मकसद था सनातनियों कि आपसी भटकाव, दुरिया ना रहे। राष्ट्रवाद की पौध लहलहाती रहे। जब की अंग्रेजों मे दिक्कत धर्म की अलग-अलग व्यवस्था थी। तब की सरकार इसे नजर अंदाज कर दी क्योंकि सरकार वही लोग चला रहे थे जो यह अंग्रेजों के समय में भी सरकार में थे। धर्म का विवाद पा टीशन उपरान्त थम गया। सरकार निश्चिंत हो गई। इसकी आवश्यकता थी परंतु तुष्टीकरण ऐसी की कथा खत्म ही ना हो।

अब बात आती है ,70 की दशक संविधान में संशोधन होकर धर्मनिरपेक्षता जोड दी जाती है। जबकि इंडिया की संविधान का मूल रस हिंदुत्व है। शब्द जुटी इससे जुड़े लोग इन्साक मांगी। नियम है नही बनी बस न्यायालय में तुष्टीकरण का खेल चला। उस समयाआवधि की नेतृत्व कर्ता स्वक् श्रीमती इंदिरा गांधी को सनातती व्यवस्था को राष्ट्रवाद तक बांधे रखने वाली वृहद व्यवस्था बनाने के संविधान की नीतियों को बदलकर धर्म आधारित व्यवस्था जो जनमत की भलाई नहीं जनमानस की भलाई की व्यवस्था होनी चाहिए तहत राष्ट्रवाद के घर में बना देने चाहिए था। वह भी नाकाम हुई।

मैं अभी तक नुकसान ही हुई है। इससे अभी तक नुक्सान नही हुई है।मगर इसमें बिलम हर रोज नई नई मुसीबतें पैदा करेगी। हाल की घटना मे यह जीन कहां से अवतरित हो गया।यह भी समझिए राजस्थान के निवासी एक दम्पति में से पति न्यायालय में पत्नी से तलाक की अर्जी जमा करता है। टरायल कोर्ट यह कह कर रिजेक्ट कर देती है कि आपको तलाक नहीं मिलेगी। कारण यह है कि दंपति में से पत्नी यह कह ती है कि हमारी शादी भले ही हिंदू रीति-रिवाज तहत हुई है। और हिंदू विवाह 1955 के तहत तलाक संभव है। मगर रुकिए चुकी हम मीर समुदाय से आते हैं और राजस्थान में मीर समुदाय अनुसूचित जन जाति में आती है। अनुसूचित जनजाति विवाह की एक्ट तहत तलाक का प्रवधाननही है। और ऐसी व्यवस्था न्यायालय के पास कोई है नहीं तब इंसाफ कैसे हो। अब वही एक पक्ष पत्नी संतुष्ट परंतु पति असंतुष्ट।

जबकि उसका पछ रखने का तथा उसके तहत तलाक का प्रधान है इंडिया में। वह पहुंच गया दिल्ली उच्च न्यायालय। उच्च न्यायालय के पास व्यवस्था नहीं ,नीति नहीं हाथ खड़े कर दिए। और सरकार को उस दंपत्ति के इंसाफ तक ना पहुंचने में गुनहगार बनाकर कटघरे में खड़ा कर दी। अब सरकार हिम्मत करे की छोड़ दे। मगर याद रखिए जितना विलंब होगा समाज में दूरियां बढ़ेगी।अरे! रहना जब इस आधुनिक इंडिया में 140 करोड़ को ही है तब मिल बांट कर ऐसा सहमति बनाएं कि राष्ट्रवाद खिलता भी रहे और सामाजिक दूरियां धार्मिक ना बन पाए। जिससे समान कानून सहित समान नागरिक व्यवस्था बन जाए। जनमानस राष्ट्र के नाम पर मान जाएगी ।मिल जाएगी। बस हिम्मत दिखादे पक्ष विपक्ष के नेतृत्वकर्ता क्योंकि यह गलती कांग्रेस की है इसलिए इसे लागू होने तक उसे आंदोलन करना चाहिए तब वह धार्मिक दूरियां इस व्यवस्था को बनने से पहले अंग्रेजों की तरह शोषण कर्ता कानून बता रही है जबकि इसके निर्माण मे उनकी की अव भागीदारी होनी चाहिए।


जय हिंद
कुमार गौरव
झुमरी तिलैया
कोडरमा, झारखण्ड
जय हिंद