विश्व हिन्दू परिषद का प्रधान गुण सेवा है- पं विष्णु शर्मा




देव मणि शुक्ल 
ब्यूरो प्रभारी


    नोएडा विश्व हिन्दू परिषद के बारे मे बताते हुए श्रद्धानंद प्रखंड विश्व हिंदू परिषद  के अध्यक्ष पं विष्णु शर्मा नॉएडा महानगर ने कहा कि विश्व हिन्दू परिषद भारत तथा विदेश में रह रहे हिंदुओं की एक सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था है। सेवा इसका प्रधान गुण है। इसकी स्थापना हिन्दुओं के धर्माचार्यों और संतों के आशीर्वाद तथा विश्व विख्यात दार्शनिकों और विचारकों के परामर्श से हुई।
एक हजार वर्ष के निरन्तर संघर्ष से प्राप्त स्वातंत्र के पश्चात् यह इच्छा स्वाभाविक थी, कि भारत अपनी वैश्विक भूमिका निर्धारित करे। हिन्दू धर्माचार्य यह अनुभव कर रहे थे कि हिन्दू राष्ट्र के रूप में भारत विश्व के समस्त हिन्दुओं के आस्था केन्द्र के रूप में स्थापित हो और विश्व कल्याण के अपने प्रकृति प्रदत्त दायित्व का निर्वाह करे।
इस उदात्त लक्ष्य की पूर्ति के लिए पूज्य स्वामी चिन्मयानंद जी, चिन्मय मिशन के संस्थापक की अध्यक्षता में उन्हीं के मुम्बई स्थित आश्रम सांदीपनी साधनालय में आयोजित बैठक में मास्टर तारा सिंह, ज्ञानी भूपेन्द्र सिंह अध्यक्ष शिरोमणि अकाली दल, डॉ. के.एम.मुंशी, श्री गुरुजी तत्कालीन सरसंघचालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, स्वामी शंकरानंद सरस्वती, राष्ट्र सन्त तुकड़ो जी महाराज, वी.जी.देशपांडे, तत्कालीन महामंत्री हिन्दू महासभा बैरिस्टर एच.जी.आडवाणी, पद्मश्री के.का.शास्त्री, श्रीपाद् शास्त्री किंजवड़ेकर, डाॅ. वी.ए.वणीकर, प्रिंसीपल महाजन, के.जे.सोमय्या, राजपाल पुरी, श्री सूद एवं श्री पोद्दार नैरोबी, श्रीराम कृपलानी त्रिनिदाद, धर्मश्री मूलराज खटाऊ, डॉ. नरसिंहाचारी आदि चालीस से भी अधिक सन्तों एवं विचारकों ने चिन्तन किया, इस अवसर पर मास्टर तारा सिंह ने स्पष्ट कहा –
हिन्दू और सिख दो अलग जातियां नहीं हैं, सिखों का उत्थान तभी संभव है, जब तक हिन्दू धर्म जीवित है।
विश्व हिन्दू परिषद की घोषणा भी इन्हीं श्रेष्ठजनों ने 29 अगस्त सन 1964 विक्रमी संवत 2021 भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर की। इस अवसर पर डॉ. के.एम.मुंशी ने परिषद के उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से रखा – 
1. हिंदू समाज को सुसंगठित एवं सुदृढ़ बनाने की ओर अग्रसर रहना।
2. आधुनिक युग के अनुकूल समस्त विश्व में हिंदू धर्म के नैतिक एवं आध्यात्मिक सिद्धांतों तथा आचार विचार का प्रचार करना।
3. विदेश स्थित समस्त हिंदुओं से सुदृढ़ संपर्क स्थापित करना तथा उनकी सहायता करना।
संस्था का पंजीकरण एक्ट 1860 के अंतर्गत दिल्ली में 8 जुलाई सन 1966 को हुआ, पंजीकरण संख्या एस. 3106 और पंजीकृत संविधान में उद्देश्य लिखे गए –
1. भारत तथा विदेशस्थ हिंदुओं में भाषा, क्षेत्र, मत, सम्प्रदाय और वर्ग सम्बन्धी भेदभाव मिटाकर एकात्मता का अनुभव कराना।
2. हिन्दुओं को सुदृढ़ और अखंड समाज के रूप में खड़ा कर उनमें धर्म और संस्कृति के प्रति भक्ति, गौरव और निष्ठा की भावना उत्पन्न करना।
3. हिंदुओं के नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को सुरक्षा प्रदान कर उनका विकास और विस्तार करना।
4.  हिंदू समाज के बहिष्कृत और धर्मान्तरित, पर हिंदू जीवन पद्धति के प्रति लगाव रखने वाले भाई बहिनों को हिंदू धर्म में वापस लाकर उनका पुनर्वास करना।
5. विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में बसे हिंदुओं को धार्मिक एवं सांस्कृतिक आधार पर परस्पर स्नेह के सूत्र में बांधकर उनकी सहायता करना और उन्हें मार्गदर्शन देना।
6.  संपूर्ण विश्व में मानवता के कल्याण हेतु हिन्दू धर्म के सिद्धांतों और व्यवहार की व्याख्या करना।
हिन्दू समाज हजार वर्ष के परतंत्रता काल में अपना स्वत्व, स्वाभिमान, गौरव और महत्व भूल गया, उसने उन सब महान विशेषताओं को अन्धकार में विलीन कर दिया जिनके बल पर वह विश्वगुरु था. विश्व हिंदू परिषद के संविधान में हिन्दू की परिभाषा लिखी गई – जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है, वह हिंदू है। इससे भी आगे बढ़कर कहा गया कि जो व्यक्ति अपने आप को हिंदू कहता है, वह हिंदू है। इस परिभाषा के अंतर्गत वे सब सम्मिलित हो जाते हैं। जो अन्य देशों के नागरिक हैं पर स्वयं को हिंदू कहते हैं।
हिंदू समाज को गतिशील, सक्रिय और सुधरे रूप में प्रतिष्ठापित करने हेतु घोष वाक्य दिया गया –

हिन्दवः सोदराः सर्वे, ना हिंदु पतितो भवेत.
मम दीक्षा हिंदू रक्षा, मम मंत्रः समानता।