तीसरी संतान पर बर्खास्तगी के कठोर निर्णय को शिक्षाविद् सिंह ने बताया चिंताजनक
जैतहरी।शिक्षाविद् समाजसेवी जितेन्द्र सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल म.प्र. शासन भोपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को पत्र के माध्यम से मध्यप्रदेश के पिछड़े वर्ग की बेटी शिक्षिका रंजीता साहू जो शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, धमौरा, जिला छतरपुर में पदस्थ हैं का दिग्विजय सिंह सरकार के कानून के तहत् तीसरे बच्चे के पैदा होने पर बर्खास्तगी आदेश निरस्त किये जाने संबंध में अर्जी लगाई है।
तीसरी संतान पर बर्खास्तगी के कठोर निर्णय पर चिंता
उन्होंने कहा मध्यप्रदेश की पिछड़े वर्ग की बेटी रंजीता साहु शिक्षिका, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, धमौरा, जिला छतरपुर (म.प्र.) की संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण विभाग, सागर द्वारा बर्खास्त आदेश जारी किया गया है जो समाचार पत्र के माध्यम से प्राप्त हुआ। यह समाचार सुनकर अत्यंत दुखित हुआ।एक तो बेटियों को रोजगार नहीं मिलता और मिला भी तो इस सनातन धमर्मी संसार सागर में तीसरी संतान ने जन्म ले लिया तो ऐसी प्रतीत हुआ कि तीसरा बच्चा पैदा करके सबसे बड़ा पाप इस मध्यप्रदेश की बेटी ने किया और बखांस्तगी जैसा कठोर निर्णय संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण विभाग, सागर संभाग द्वारा लिया गया जो कि सिर्फ पीड़ादायक ही नहीं है बल्कि सनातनधमर्मी राष्ट्र में दयालुता के करुण अन्त को दशर्शाता है। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा वर्ष 2001 में पंचायती राज प्रणाली तथा सरकारी विभागो में औरंगजेबीय काला कानून लागू किया गया कि तीसरा बच्चा कर्मचारियों के लिये वर्जित है। ऐसा करता पूर्ण निर्णय तत्कालीन औरंगजेबीय शासक द्वारा लिया गया जो कि निंदनीय तथा भत्सना योग्य था।वर्ष 2001 में कर्मचारी विरोधी कई निर्णय तत्कालीन शासक द्वारा कर्मचारियों को शत्रु मानते हुये तथा औरंगजेबीय मानसिकता के कारण लिये गये थे जिसमें सर्वप्रथम कर्मचारियों के रिटायरमेंट की आयु 60 वर्ष से घटाकर 58 वर्ष किया गया। कर्मचारियों के वेतनभत्तों में कटौती की गई। रिटायरमेंट के लिये 20-50 का फॉर्मूला मतलब 20 साल की सेवा या 50 वर्ष पूर्ण करने पर कर्मचारी को रिटायर किया जाये तथा तीसरे बच्चे के जन्म लेने पर कर्मचारियों के विरूद्ध बर्खास्तगी की कार्यवाही जैसी औरंगजेबीय काला कानून लागू कर मध्यप्रदेश के सरकारी तंत्र को ध्वस्त करने का असफल प्रयास कियागया। मध्यप्रदेश के कर्मचारियों का सौभाग्य कहिये या मध्यप्रदेश की जनता का सौभाग्य कहिये कि 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार रस्तासीन हुई जिससे कर्मचारी जगत ने राहत की सांस ली थी।
2003 में कर्मचारी हितैषी लिए गए निर्णय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहानकर्मचारी हितैषी निर्णय लेकर कर्मचारी जगत के ऑक्सीजन के रूप में कार्य किये। तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार के औरंगजेबीय काला कानून जैसे 60 से 58 वर्ष किये गये रिटायरमेंट आयु को बढ़ाकर 62 वर्ष किया गया। दिग्गी सरकार द्वारा बंद किये गये अनुकंपा नियुक्ति को पुनः प्रारंभ कर कर्मचारियों के आश्रितों एवं उत्तराधिकारियों को शासकीय सेवा प्रदान की गई एवं सबसे ज्यादा अनुकरणीय तथा शिवराज सिंह चौहान की दयालुता बहां उजागर हुई जब पुराने अनुकम्पा नियुक्ति के प्रावधान को संशोधित कर आदेश दिये कि किसी भीकर्मचारी की मृत्यु के उपरांत अनुकंपा नियुक्ति शादीशुदा बेटियों को भी प्रदान की जायेगी। ऐसा निर्णय बेटियों को बड़ी राहत प्रदान किया था। परिणामस्वरूप ऐसी कई बेटियां शासकीय सेवा में अभी तक नियुक्ति पा रही हैं। साथ ही एक अनमोल निर्णय अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में जारी किया गया कि यदि मृतक कर्मचारी अविवाहित है तो उसके आश्रित भाई को भी अनुकंपा नियुक्ति दी जायेगी। यह महान पुण्य का कार्य पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा किया गया था। उन्होने बेटियों के पक्ष में अनेक निर्णय लिये जिससे आज भी बेटियां खुशहाल हैं।
बर्खास्तगी पर प्रश्र चिन्ह
भारतीय जनता पार्टी की सरकार सनातनी सरकार बहन-बेटियों के रक्षा के लिये उनके भविष्य के लिये अनेको योजनायें लागू की गई। बेटी के जन्म से लेकर पढ़ाई यहां तक विवाह की भी जिम्मेदारी भा.ज.पा. की सत्तासीन मध्यप्रदेश की सरकार निभाती है। आजइस करुणामयी भा.ज.पा. सरकार में दिग्विजय की सरकार के औरंगजेबीय काला कानून के कारण मध्यप्रदेश के पिछड़े वर्ग की बेटी को बर्खास्त किया जाना सरकार के संवेदनशीलता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है। क्या संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण सागर संभाग दिग्विजय सरकार के द्वारा निर्मित औरंगजेबीय काला कानून का भक्त है? समाजसेवी जितेन्द्र सिंह ने निवेदन किया कि जब शिवराज सिंह चौहान द्वारा अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दिग्विजय सिंह द्वारा जारी औरंगजेबीय काला कानून को समाप्त कर नये आदेश जारी किये गये थे साथ ही ऐसे प्रकरणों को ग्राहय ही नहीं किया जाता रहा है तो सागर में कहां से ये औरंगजेबीय काला कानून का पक्षधर संयुक्त संचालक द्वारा एक बेटी के विरुद्ध ऐसा कठोर निर्णय लिया गया जिससे मध्यप्रदेश की ऐसी बेटियों का भविष्य अंधकारमय किया गया। दुर्भाग्य का विषय है कि आज हम जहां बेटियों को पूज्य मानते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसा कठोर निर्णय बेटी तथा तीसरे बच्चे कीमां के विरूद्ध लिया जाना बेहद शर्मनाक है। एक मां का कोई कसूर नहीं होता यह तो 09 माह बच्चों को न सिर्फ धारण करती है तथा बच्चे को जन्म देती है बल्कि लालन-पोषण भी करती है। एक मां एवं बेटी सनातन धर्म के हिसाब से बेगुनाह है। मां पूर्णतः निदर्दोष है।
जनसंख्या कानून भारत वर्ष में लागू नहीं है
भारत वर्ष में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं है तो तीसरे बच्चे अवैधानिक या कार्यवाही की पात्र बह बेटी नहीं है। किसी धर्म में तो कोई 10 बच्चे पैदा करता है तो वह गुनाहगार नहीं है। मध्यप्रदेश की बेटी ने तीसरा बच्चा पैदा कर दिया तो वह राष्ट्रद्रोही हो गई? यह कैसा कानून है? यह कैसा इंसाफ है? भारतीय संविधान में अभी जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं है। समाजसेवी जितेन्द्र सिंह ने मध्यप्रदेश के पिछड़े वर्ग की बेटी के लिये भविष्य के लिये एक बेटी के लिये दया की गुहार लगाई है।