समाज जागरण फिरदौस अहमद
बिहार पटना : समाज सेविका श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिलाओं को ऊंचा स्थान दिया गया है। कहा जाता है कि जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के अमृत काल में भी विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। वैसे पिछले 27 साल से लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग हो रही है, लेकिन इस मुद्दे पर दलगत राजनीतिक होने के कारण इससे संविधान विधेयक संसद में पास नहीं हो रहा था। आज इसके पक्ष में सुखद सहयोग बना है। कोई भी दल इसका विरोध करने की स्थिति में नहीं है।

लेकिन महिलाओं की आबादी के हिसाब से 33% नहीं बल्कि 50% चाहिए। आगे श्रीमती सिन्हा ने कहा कि यह भी बदलते भारत का एक प्रमाण है। हालांकि कुछ दल चाहते हैं कि इसमें एससी_एसटी के साथ ओबीसी कोटा का प्राविधान होना चाहिए। यानी आरक्षण में आरक्षण देने की मांग हो रही है। साथ ही इसे 2029 के बजाय इसी साल से ही लागू करने की मांग हो रही है। इस बिल पर संसद में चर्चा हो रही है उम्मीद है इस मुद्दे का सभी दल मिलकर सर्थक समाधान निकलेंगे। अच्छा होगा कि कानून के सहारे बैठने के बजाय पार्टी अपने स्तर पर इसकी शुरुआत कर दें।
आने वाले सभी चुनावों में 33 प्रतिशत टिकट महिला प्रत्याशियों को दे तो राजनीति की सूरत बदल जाएगी। इससे अच्छे अर्थो में नारी शक्तिकारण होगा। आज पढ़ी-लिखी और जागरूक महिलाओं का राजनीतिक में आना जरूरी है। उनके आने से भारत की राजनीतिक में गिरते स्तर को संभालने में मदद मिलेगी। देश में पंचायत स्तर की राजनीतिक में एक बीमारी भी है। पंचायत में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव तो महिलाएं लड़ती हैं, लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद कमान उनके पति संभाल लेते हैं। इसमें भी सुधार जरूरी है।