पत्रकार को गाली व धमकी देना तथा न्याय से वंचित रखना थानेदार को पडा महंगा।

न्यायालय के आदेश पर थानेदार के विरुद्ध दर्ज हुआ प्राथमिकी , एफआईआर की पुष्टि नहीं।

थानेदारों के सामने वरीय पदाधिकारियों का क्या मजबूरी है और क्यों थानेदारों को जुल्म करनें की छूट हैं,यह तो पता नहीं हैं!

समाज जागरण, अनिल कुमार मिश्र, ब्यूरोचीफ बिहार झारखंड प्रदेश / सत्य प्रकाश नारायण सहायक विधि संवाददाता बिहार प्रदेश ।

बिहार प्रदेश के औरंगाबाद जिले का अम्बा थाना क्षेत्र में थानेदार द्वारा हमलवारों के बचाव पक्ष में महिला पत्रकार पर हुए जान लेवा हमलें में जख्मी पत्रकार को जख्म प्रतिवेदन सें वंचित रखना, थानेदार द्वारा सरेआम अम्बा थाना कैंपस में महिला पत्रकार को अश्लीलता भरी गाली देने के साथ महिला पत्रकार को …कहना और आवेदन को बदलवाकर थाना से भगा देना , आरोपियों से समझौता नहीं करने पर पुरे परिवार को जेल भेज देने का धमकी देना तथा अनैतिक दबाव बनाने हेतू पत्रकार के घर में घुसकर आरोपी से अपराधिक घटनाओं का अंजाम दिलाने के विरुद्ध में महिला पत्रकार द्वारा मुख्य न्यायाधीश दणडाधिकारी औरंगाबाद के न्यायालय में परिवाद पत्र दाखिल किया गया था।
प्राप्त खबरों के अनुसार न्यायालय के आदेश पर अम्बा के थानेदार के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज किया गया है किन्तु थानेदार के विरुद्ध एफआईआर की पुष्टि नहीं।

तथ्य चाहें जो भी हो किन्तु दलालों की गिरफ्त में अम्बा थाना लगभग विगत 23 वर्षों से है और पीड़ितों व घायलों के शिकायत से पहले अम्बा थाना में दलाल पहुंच जाते है तथा दलाल के इशारे पर पीड़ितों के साथ बदसलूकी किया जाता है । अश्लीलता से भरी गाली अम्बा थाना के पदेन पदाधिकारियों द्वारा दिया जाता है । केस में फंसा देने और जेल भेज देने की धमकी दिया जाता है । काउंटर मुकदमा दर्ज किया जाता है और घटना का अंजाम देने वाले के मुकदमा पीड़ितों से पहले दर्ज कर लिया जाता है। झूठे मुकदमों को सत्य करार दे दिया जाता है , असमाजिक तत्वों के बचाव में जमानतीय धराओं को लगाया जाता है। ‌ पुलिस संरक्षण में लगातार पीड़ितों के साथ बदसलूकी और मार-पीट किया जाता है। और तो और निर्दोष लोगों को जेल भी भेज दिया जाता है ,जिसकी सुनवाई जिला स्तरीय अनुसंधान एवं पर्यवेक्षण कर्ताओं द्वारा नहीं किया जाता है ! यहां तक कि निर्दोष लोगों, खासकर पत्रकार व समाज सेवियों को जेल में रखने के लिए काफी विलंब तक केस डायरी को थाना में रोका जाता है और निर्दोषों को जेल में बंद रखा जाता है।
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय के आदेश को भी लगातार थानेदारों द्वारा अवहेलना होता है फिर भी वरीय पदाधिकारी इस पर संज्ञान नहीं ले पाते हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

थानेदारों के सामने वरीय पदाधिकारियों का क्या मजबूरियां है यह तो पता नहीं हैं। उच्चस्तरीय जांच में ही जांचोंपरांत, यह पता चल पायेगा कि थानेदारों को मनमानी की छूट क्यों है और थानेदार द्वारा आमलोगों पर जुल्म की कहर क्यों ढ़ाहेजाते है तथा वरीय पदाधिकारी तमाशबीन क्यों हैं?