आस्था का प्रतीक है माता ओलाई चंडी देवी



बिभूति भूषण भद्र : दैनिक समाज जागरण: झाड़ग्राम पश्चिम बंगाल

झाड़ग्राम जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर बिनपुर प्रखंड के कुई ग्राम में ऐतिहासिक व प्राचीन माता ओलाई चंडी पूजा भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है। विगत 5 मई को कलश स्थापना के साथ ही विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना प्रारंभ की गयी। जिसमे लगभग 500 की संख्या में लोग कलश यात्रा में शामिल होकर गांव के समीप स्थित तालाब से घट लाये। वहीं आस्था एवं भक्तिभाव से ओतप्रोत भारी संख्या में लोग तालाब में स्नान कर नंगे पैर दंडवत ( प्रणाम सेवा ) करते हुए पूजा स्थल तक पहुंचे। जिसमें पुरुष महिलाएं युवक युवतियाँ बुजुर्ग एवं बच्चे भी शामिल थे। मानो मंदिर परिसर में भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा हो चिलचिलाती धूप व उमस भरी गर्मी में भी माता चंडी का एक झलक पाने को श्रद्धालुगण डटे रहे। मान्यता है यहां सच्चे मन से मन्नत लेकर आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। तथा श्रद्धालुओं द्वारा (बकरे ) की बलि चढ़ाई जाती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां चंडी के पूजा से मनोवांछित फल प्राप्ति होती है। मुख्य पुजारी अमल पंडा व सहयोगी ब्रह्मानंद चक्रवर्ती के मंत्र उच्चारण से पूरा वातावरण पूजामय से गुंजायमान रहा। श्रद्धालुओं द्वारा पुष्पांजलि अर्पित कर कुशल मंगल की कामना की गई। तथा पूजा उपरांत प्रसाद ग्रहण किये। कुई ग्राम के माता चंडी पूजा में शामिल होने के लिए पड़ोसी जिले के अतिरिक्त अन्य राज्यों से लोग काफी संख्या में शिरकत करते हैं। इस दौरान गांव में कई धार्मिक अनुष्ठान के अतिरिक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। यहां मेले भी लगते हैं जो निरंतर 5 दिनों तक चलता है। मेले में कृषि उपयोगी समान दैनंदिनी घरेलू सामान श्रृंगार प्रसाधन साज सज्जा खानपान के अतिरिक्त कई मनोरंजन के संसाधन देखा जा सकता है। कुई ओलाई चंडी पूजा कमेटी प्रबंधन के द्वारा पूजा उत्सव व मेले का आयोजन होता है।



भक्तों के आस्था के प्रतीक मां चंडी देवी की मान्यता के पीछे कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि ठोस पौराणिक आधार है

कुई ओलाई चंडी पूजा कमिटी के कोषाध्यक्ष प्रलय कुमार सिंघा ने इस संवाददाता को जानकारी देते हुए बताया यह 159 वीं पूजन उत्सव मनाया जा रहा है। सन 1865 ई में पराधीन भारतवर्ष मे बंगाल के अविभाजित मेदिनीपुर के कुई ग्राम में विषुचिका महामारी का विशाल रूप धारण कर लिया था। उस दौरान चिकित्सा के अभाव में अनेक लोगों की मृत्यु हो गई। भय से लोग गांव छोड़कर पलायन करने लगे। गांव के शमशान में शवों के दाह संस्कार करने के लिए लोग तक नहीं थे। पूरा शमशान विरान पड़ा था। गांव में एक जट्टाधारी सन्यासी का आविर्भाव हुआ उन्होंने ही गांव के लोगों को ओलाई चंडी माता की पूजा करने का सुझाव दिए। उन्हें के निर्देशन पर देवी के ध्यानमूर्ति निर्माण कर फल फूल व बलि चढ़ाकर भक्ति भाव से पूजा अर्चना की गई। भक्तों के मध्य प्रसाद वितरण किए गए तथा माता चंडी की कृपा से महामारी के प्रकोप से लोगों को छुटकारा मिला। तथा गांव में पुनः सुख समृद्धि खुशहाली लौट आई। तब से लेकर अबतक बुद्ध पूर्णिमा तिथि के अनुसार प्रत्येक वर्ष माता चंडी की पूजा धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। श्री सिंघा ने जानकारी देते हुए बताया पूजा में शामिल होने आए श्रद्धालुओं के लिए भक्तों द्वारा निशुल्क शाकाहारी भोजन की व्यवस्था की गई है। तथा विभिन्न समाजसेवी संगठनों द्वारा श्रद्धालुओं के लिए निशुल्क जल एवं शरबत वितरण भी किए जा रहे हैं।