बैशाख शुक्ल चतुर्दशी :महर्षि मेंहीं की 140 वीं पावन जयंती 22 मई पर विशेष

मैं देश की जड़ को मजबूत करता हूँ : महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

पहले आध्यात्मिकता रखो, फिर सदाचारिता तब सामाजिक नीति, और फिर राजनीति।जिस देश में लोगों में अध्यात्मिकता अधिक होगी, वहां के लोग अधिक सदाचारी होंगे, वहां की सामाजिक नीति अच्छी होगी, जहां कि सामाजिक नीति अच्छी होगी वहाँ की राजनीतिक कभी बुरी नहीं हो सकती।

डा. रूद्र किंकर वर्मा।

20वीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज संतमत की परंपरा के एक ऐसे महान संत हुए जिन्हें ‘गुरू महाराज’ के नाम से भी जाना जाता है। वे ‘अखिल भारतीय संतमत सत्संग’ के गुरु थे। उन्होंने वेद , उपनिषद , भगवद गीता , बाइबिल , बौद्ध धर्म के विभिन्न सूत्र , कुरान , संत साहित्य का अध्ययन किया और इससे यह आकलन किया कि इन सभी में निहित आवश्यक शिक्षा एक ही है। उन्होंने ‘मोक्ष’ प्राप्त करने का एक और आसान तरीका बताया। वे हैं ‘गुरू,ध्यान और सत्संग’ । वे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के बाबा देवी साहब के शिष्य थे ।
महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने अध्यात्मिकता और साधना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
महर्षि मेंहीं की शिक्षाएँ और उनके द्वारा दी गई साधनाएँ आज भी लाखों लोगों के जीवन में शांति और आत्मिक उन्नति का स्रोत बनी हुई हैं। उनके योगदान को भारतीय आध्यात्मिकता में सदैव याद किया जाएगा।
महर्षि मेंहीं की वाणी में आया है “लोग मेरे लिए कहते हैं कि वह देश का क्या काम करते हैं? कहते हैं-ध्यान करो, ध्यान करो। मैं कहता हूँ वे समझते नहीं है। मैं देश की जड़ को मजबूत करता हूँ। 1909 ईस्वी में हमारे गुरु महाराज कहते थे कि लोग हिंसात्मक कार्य करते हैं, यह उल्टा काम है। पहले आध्यात्मिकता रखो, फिर सदाचारिता तब सामाजिक नीति, और फिर राजनीति। जिस देश में लोगों में अध्यात्मिकता अधिक होगी, वहां के लोग अधिक सदाचारी होंगे, वहाँ की सामाजिक नीति अच्छी होगी, जहां की सामाजिक नीति अच्छी होगी वहाँ की राजनीतिक कभी बुरी नहीं हो सकती। पंच पापों (झूठ, चोरी, नशा, हिंसा, व्यभिचार) को छोड़ दीजिये; चोरी डकैती आदि उपद्रव नहीं होंगे। यदि आप मेरी बात नहीं मानें, तो मैं कोई सजा दे नहीं सकता; लेकिन आप ईश्वरीय सजा से नहीं बचेंगे।
भारत की पुण्य भूमि पर अति प्राचीन काल से ऋषि-मुनि, योगी-यति और संत-महात्मा हुए, उतने किसी भी अन्य देश में नहीं यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | ये ऋषि-मुनि, संत-महात्मा समय-समय पर भारत में अवतार लेकर मानव समाज को शांति का प्रशस्त मार्ग दिखाने का काम करते आये हैं | ऐसे महापुरुष ‘विश्व उपकार हित व्यग्र चित सर्वदा’ को चरितार्थ करते रहे हैं ।हमारे भारतवर्ष में व्यास-वाल्मीकि, शुकदेव-नारद, याज्ञवल्क्य-जनक, वशिष्ठ-दधीचि, बुद्ध-महावीर, नानक-कबीर, सूर-तुलसी, दादू-सुन्दर, रवि-श्वपच, ज्ञानदेव-तुकाराम, तुलसी साहब -देवी साहब जैसे अनेक महान संत-महापुरुष अवतार लेकर अनेक कष्टों को सहकर जगत् का कल्याणार्थ मार्गदर्शन करते रहे, उसी धार को आगे बढ़ाते हुए 20 वीं शताब्दी के महान संत परमाराध्य संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज का अवतरण 1885 ई० को बैशाख शुक्ल चतुर्दशी को हुआ । देश विदेश में उनकी जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को भव्य रूप से उनके अनुयाई मनाते चले आ रहे हैं।
इनके साहित्य के बल पर सैंकड़ों व्यक्ति पीएच०डी०, डी लिट का डिग्री हासिल की है और कर रहे हैं । इन्होंने धर्म-शास्त्र (वेद-पुराण, गीता-रामायण) और संत-वाणियों के बीच की खाई को भरने का कोई कसर नहीं छोड़े और दोनों में समांजस्यता को पाटने के लिये रामचरितमानस-सार सटीक, गीता-योग-प्रकाश एवं वेद-दर्शन-योग जैसे कई पुस्तक लिखकर सैकड़ों भ्रमओं को दूर करने की महती कृपा किये हैं | गुरूदेव अपने सभी भक्तों पर हमेशा ही अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखते हैं।
आपको संतमत के प्रचार में अनेक तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा; लेकिन आप वेद, उपनिषद्, गीता, रामायण और अनेक संतों के अनुभवजन्य वाणियों के माध्यम से सभी विरोधों का समाधान कर संतमत की गरिमा का प्रचार जीवन भर करते रहे । परिणाम यह हुआ कि सभी धर्मों और सम्प्रदाय के लोगों पर आपका पूर्ण प्रभाव पड़ा |
आपके 140 वीं परम पावन जयंती के सुअवसर आपके चरणों में कोटि-कोटि नमन करते हैं। जय गुरू।