बुद्ध की ज्ञान भूमि कुर्किहार गढ़ में दफन है़ बेशकीमती मूर्तियों का खजाना

प्रभाकर कुमार/वजीरगंज (गया)वजीरगंज प्रखंड क़े कुर्किहार गाँव स्थित कुर्कीहार गढ़ क़े जमीन के नीचे इतिहास छिपा है, पर इसकी पूरी तरह खुदाई नहीं कराए जाने के कारण सब कुछ जमींदोज ही है। गया जिले के वजीरगंज प्रखंड में स्थित यह कुर्कीहार गढ़ पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है। यहां बौद्धकालीन अवशेषों का भंडार पड़ा है। करीब पांच हजार की आबादी वाले इस गांव की गली-गली में सदियों पुरानी मूर्तियां छिपी हैं। ये अष्टधातु व काले पत्थरों की हैं।

अधिकतर घर की दीवारों में भी मूर्तियां

यहां गढ़ में हल्की खोदाई करने पर भी मूर्तियां मिलने लगती हैं जो प्राय: सभी मूर्तियां बुद्धकालीन हैं। गांव के बीच अवस्थित एक प्रसिद्ध देवी मंदिर में महात्मा बुद्ध की करीब दो दर्जन आदमकद मूर्तियां स्थापित हैं। ग्रामीण हिंदू देवी-देवताओं की तरह इन मूर्तियों की पूजा करते हैं। गांव घूमेंगे तो गली-कूचे, चौक-चौराहों पर मूर्तियां मिलना कोई आश्चर्य नहीं। कुछ मूर्तियां तो लोगों ने घर बनाने के दौरान दीवारों तक में लगा दी हैं।

यहां की कई मूर्तियां कई संग्रहालयो की बढ़ा रही है़ शोभा-

1930 ई0 में क्षेत्र के तत्कालीन जमींदार राय हरि प्रसाद ने इस गढ़ के कुछ अंश में खोदाई कराई थी तो सैकड़ों मूर्तियां निकली थीं। 226 मूर्तियां पटना के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इनमें 80 मूर्तियां अष्टधातु एवं शेष दुर्लभ काले पत्थरों की बनी हैं।इसके अतिरिक्त नारद संग्रहालय नवादा, कोलकाता संग्रहालय सहित लंदन में भी यहां की मूर्तिया रखी गई है़। इतिहासकार बताते हैं कि जब विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में था, तब कुर्किहार में मूर्ति एवं शिल्प कला प्रशिक्षण केंद्र भी रहा है। यहां पत्थर की मूर्तियां बनाई जाती थी।

सीएम ने खुदाई कराने का दिया था आश्वासन-
27 जनवरी 2007 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी विकास यात्रा के दौरान कुर्कीहार में कुर्किहार गढ़ एवं रुक्मिणी हरण स्थल हडाहि स्थान का भ्रमण किया था एवं स्थल की खोदाई कराने की बात कही थी। उन्होने अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए थे लेकिन सब ठंढे बस्ते में चला गया। इतिहासकार के अनुसार, ज्ञान के खोज में भटकते राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध ने कुर्किहार में भी विश्राम किया था। बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद यहां फिर आए थे।

2005 में विश्व मूर्तिकला प्रदर्शनी में भारत सरकार ने यहां की दो मूर्तियां भेजी थीं। स्थानीय ग्रामीण एवं कूर्किहार क़े विकास क़े लिए हमेशा पदाधिकारियों क़े पास पत्राचार करने वाले वरिष्ठ समाजसेवी सत्यनारायण सिंह उर्फ सातो बाबू कहते हैं कि कुर्किहार सिर्फ एक गांव नहीं, इतिहास है, जिससे बुद्धकालीन और उससे प्राचीन इतिहास व किंवदंतियां भी जुड़ी हैं।
कुर्कीहार गाँव क़े युवा समाजसेवी सह शिक्षक बबलू कुमार हारित कहते हैं कि इस गढ़ की खोदाई होने से और भी बहुत चीजें सामने आ सकती हैं।इस गाँव क़े देवी मंदिर है़ जहाँ कई बुद्ध की मूर्तियों को दिवाल में स्थापित कर दी गई है़ एवं श्रद्धालुओ द्वारा पूजा की जाती है़।यहां की चर्चा महाभारत कालीन भी है़