पटना ।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जंयती पर 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के अवसर पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं प्रायः सभी राजनीतिक दलों द्वारा शिक्षकों को सम्मानित करना और शिक्षकों के प्रति बड़ी – बड़ी सम्मानजनक बात करना आज के परिपेक्ष्य में महज एक ढकोसला है।
बिहार राज्य संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शिक्षक शिक्षकेतर कर्मचारी महासंघ (फैक्टनेब) के अध्यक्ष डॉ शंभुनाथ प्रसाद सिन्हा एवं मीडिया प्रभारी प्रो अरुण गौतम ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि बिते चार दशक में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने बिहार में सरकारें बनाईं एवं चलाईं परन्तु लगभग 70 प्रतिशत शिक्षा प्रदान करने वाले माध्यमिक से स्नातक तक के संस्थानों में कार्यरत शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों की सुधि लेना आवश्यक नहीं समझा। वित्त रहित शिक्षा नीति समाप्ति की घोषणा के पश्चात 2008 से परीक्षा परिणाम आधारित वेतनमद अनुदान राशि भुगतान करने की घोषणा अवश्य की गई , परन्तु उस राशि की रफ्तार इतनी धीमी कर दी गई है कि शिक्षाकर्मियों तक पहुंचने में 10 वर्ष से भी अधिक समय लग जाता है। वर्ष के 365 दिन में 364 दिन अपने कार्य प्रणाली, व्यवहार और आचरण से शिक्षकों को अपमानित और बहिष्कार करने का काम राज्य सरकार और अफसरशाह किया करते हैं। सिर्फ एक दिन 5 सितम्बर को शिक्षा व शिक्षक के पक्ष एवं सम्मान में कसिदे गढ़े जाते हैं।
डॉ शंभुनाथ एवं प्रो गौतम ने राजभवन सचिवालय, राज्य सरकार, सभी राजनीतिक दलों एवं पदाधिकारियों को सलाह देते हुए कहा कि 5 सितम्बर जैसा ही भाव, व्यवहार रखकर कार्य प्रणाली में सुधार लाने की चेष्टा करना ही पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और तभी शिक्षक सम्मान की बात का औचित्य समझ में आयेगा।