*घाटों के शहर का घाट-घाट कुछ कहता है?*
दिवाकर पाठक,दैनिक समाज जागरण
बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी, धार्मिक आस्था का प्रमुख केन्द्र है। यहां लाखों श्रद्धालु नित्य अपनी आस्था के आंगन को सजाने आते हैं। बाबा के दर्शन,काल भैरव के दर्शन और संकट मोचन के दर्शन के साथ-साथ बीएचयू में न्यू बाबा विश्वनाथ मंदिर का दर्शन कर,घाटों के बीच मां गंगा की अविरल धारा की आलोकित स्वरूप का दर्शन करते हैं। फिर शहर की सुंदरता की तो बात ही क्या है? ऐसे में तो मन बिल्कुल शिवमय हो ही जाता है,इसमें कहीं कोई दो मत नहीं। पर हमने स्वयं से जो पड़ताल की है उसकी विडंबना है की बाबा के दर्शन के नाम पे जो फ्री लॉकर की व्यवस्था प्रसाद विक्रेताओं के पास है,वो इसके नाम पे अपनी मनमर्जी कर लोगों की जेब को लॉक करते हैं। अर्थात् बोलते तो हैं की केवल प्रसाद लो और सामान रखने के पैसे नहीं लगेंगे। पर ऐसा होता नहीं है,वो प्रसाद के नाम पे मनमाना रेट वसूलते हैं। होटल वाले भी ठहरने के नाम पे मनमर्जी के साथ पैसा वसूलते हैं। अस्थि विसर्जन के नाम पे भी धांधली की जाती है। इन सब चीजों से व्यक्ति परेशान हो जाता है। दूसरी ओर जो सबसे अहम बात है वो ये है की जिस दशाश्वमेध घाट और शीतला घाट पे मां गंगा की आरती होती है,वहां तो स्वच्छता ठीक है। पर इसके सटे दूसरे घाटों की ओर आप जैसे बढ़ेंगे,वहां स्वच्छ भारत अभियान दम तोड़ता दिखेगा। लोगों के घरों का गंदा पानी सीधे गंगा जी में निष्कासित की जा रही है। अर्थात् आप स्वच्छंद सभी घाटों का दर्शन पैदल चलकर नहीं कर सकते। बहुत जगह तो घाटों में सीढियां भी नहीं बनी हैं। ये है हमारी आस्था की नगरी की अंदर की चीजें। सफाई के नाम पे नगर निगम के पास कितने पैसे आते हैं,पता नहीं उन पैसों का क्या होता है? कितने बेशर्म लोग हैं जिन्हें पाप-पुण्य से कोई मतलब नहीं,वो घरों का गंदा पानी गंगा जी में डाल देते हैं। ऐसे में मां गंगा से डर की तो खैर कोई बात ही नहीं,पर प्रशासन तंत्र से भी कोई डर नहीं मालूम पड़ता है। मतलब है की इस पर प्रशासन तंत्र भी उदासीन है। यही कारण है की घाटों का यह शहर मन ही मन कुछ कहता और अपनी तकदीर पे आंसू बहाता है। सारांश है की सरकार एक-एक चीजों पर ध्यान नहीं दे सकती। इसके लिए प्रशासन सहित हम सभी को जागरूक होना होगा,तभी आस्था की यह नगरी सच्चे अर्थों में अपनी स्वच्छता की तस्वीर पेस कर सकेगी। जरा गौर करें,कितनी दूर से चलकर लोग यहां आते हैं दर्शन के लिए और ऐसे में यदि उनकी आस्था पर चोट लगती है तो यह कतई ठीक नहीं। इसके लिए सरकार व प्रशासन तंत्र को वहां के होटलों,धर्मशालाओं,प्रसाद विक्रेताओं,पंडो आदि सभी के लिए एक उचित रेट तय करे,जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी न हो सके। अयोध्या की तरह जिस प्रकार राम लला के दर्शन में कोई परेशानी नहीं होती है,क्योंकि वहां निःशुल्क समान रखने की बहुत अच्छी व्यवस्था है। ऐसी ही व्यवस्था यहां भी हो। साथ ही मां गंगा की अविरल धारा को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी की भूमिका बिल्कुल कड़ाई से हो। तभी आस्था की यह नगरी अपनी स्वर्णिम इतिहास को दुहरा पाएगी। वरना! भक्तों की आस्था को शिव कभी बर्दास्त नहीं करेंगे।
