*महान भविष्यदृष्टा-डा.भीमराव अंबेडकर*


डा.भीमराव अंबेडकरजी ने जब पुस्तक “Pakistan or the Partition of India” लिखी तो उनसे पुछा गया कि आपने अपनी किताब का नाम “पाकिस्तान या भारत का विभाजन” क्यों रखा है जबकि यह तो शुद्ध रूप से भारत का विभाजन था!! तब बाबासाहेब ने उत्तर दिया था कि “मुझे संदेह है कि हम जिस भूमि पर रह रहे हैं वह भारत है या पाकिस्तान……क्योंकि जिन्हें पाकिस्तान चाहिये था वो सभी तो भारत में हीं रह गये हैं। विभाजित भारत कहां है इसको लेकर मैं संदेह में हूॅं।”
समझ में नहीं आता कि जब यही करना था तो विभाजन क्यों हुआ!! क्यों लाखों लाख हिंदुओं की हत्या, महिलाओं के बलात्कार और उत्पिड़न के कारण को जन्म दिया गया!!
आज से 75 साल पहले बाबासाहेब ने अपनी पुस्तक “थाॅट्स ऑन पाकिस्तान” और “पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया” में इस्लामिक कट्टरवाद पर जो विचार व्यक्त किये हैं वो आज अक्षरत: सामने दिख रहा है। भारत के संदर्भ में उनके जो यथार्थपरक विचार थे उसपर अमल न करना आज,भारत को क्या पुरे विश्व को घोर आंतरिक समस्याओं से जुझने को मजबूर कर दिया है।
बाबासाहेब कहते हैं –“मुस्लिम मत के अनुसार दुनिया दो धड़ों में बंटी है—-
1–दारुल इस्लाम- दारुल इस्लाम वह देश है जहां मुसलमानों का राज हो।
2–दारुल हरब- ये वे देश हैं जहां मुसलमान रहते तो हैं लेकिन वे वहां शासक नहीं हैं।
इस्लामिक कानून के अनुसार भारत हिन्दू और मुसलमानों की सम्मिलित मातृभूमि नहीं हो सकती। जिस भूमि पर गैर मुस्लिम शासक होता है तो,वो भूमि मुसलमानों की नहीं रहता। इसीलिए हर मुसलमान कहता है कि वो पहले मुस्लिम है बाद में भारतीय।(यही कारण है कि भारत के मुसलमान “भारत माता की जय” कहने या “वंदेमातरम” बोलने से परहेज़ करते हैं।) डा.आंबेदकर साहब कहते हैं (पाकिस्तान या भारत का विभाजन)कि इस्लाम, भूक्षेत्रीय संबंधों को नहीं मानता, इनके रिश्ते नाते मजहबी होते हैं। ये अपने मुल्क की अपेक्षा मुस्लिम देशों के पक्ष का समर्थन करने में सबकुछ झोंक देते हैं। उनके विचार में उनके लिए,मुस्लिम देशों का स्थान पहला और भारत का दुसरा है।(1965 के भारत, पाकिस्तान युद्ध में हमने देखा है कि भारतीय सेना की मुस्लिम बटालियन कैसे देश को धोखा देकर,हथियार सहित, पाकिस्तान की ओर चली गई और भारत के विरुद्ध लड़ी। असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा सांसद की शपथ लेते समय, फिलिस्तीन जिंदाबाद कहा था,इजराइल के हवाई हमले में हिजबुल्लाह नेता नसरल्लाह के मारे जाने पर कश्मीर से लेकर कई राज्यों में मुसलमानों ने शोक जुलूस निकाला था)। डा.बाबासाहेब ने लिखा है कि मुसलमान की नजरों में हिंदू काफ़िर होता है जो सम्मान के योग्य नहीं होता। उसके साथ अत्याचार करना जायज़ माना जाता है।ऐसी स्थिति में काफ़िर द्वारा शासित देश, मुसलमानों के लिए दारुल हरब होता है।
बाबासाहेब ने मुस्लिम कट्टरवाद और इस्लाम के राजनीतिक स्वरूप का गहराई से अध्ययन किया था। उनका कहना था कि मुस्लिम मानसिकता की असहिष्णुता, आक्रामकता और जीद्द के कारण हीं पाकिस्तान का जन्म हुआ। बाबासाहेब कहते हैं कि इस्लाम में, पुरी दुनिया में इस्लामिक राज कायम करने हेतु एक आदेश है–जिहाद करने का। इस जिहाद की सफलता के लिए, ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ( ये विभिन्न जिहाद हम देश में देख हीं रहे हैं –धर्मांतरण जिहाद,लव जिहाद,वोट जिहाद, थूक-मूत जिहाद,रेल जिहाद, बिजनेस जिहाद, जनसंख्या विस्फोट जिहाद, ड्रग जिहाद, घुसपैठ जिहाद आदि)।मुस्लिमों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर तरीके अपनाये जाते हैं। बाबासाहेब ने अपनी पुस्तक “थाॅट्स ऑन पाकिस्तान” में “मुस्लिम राजनीति के सांप्रदायिक आधार” का बेहतर विवेचना प्रस्तुत किया हैं। जिसमें दो आयाम दृष्टिगोचर होते हैं –आक्रामकता और अलगाववाद। “सामान्य तौर पर हिंदुओं के प्रति मुस्लिम मनोवृत्ति में एक मूलभूत आक्रामक भाव विद्यमान रहता है। मुस्लिमों की ये आक्रामक भावना, उनकी जन्मजात पूंजी है जो बहुत प्राचीन काल से उनके पास है।इस मामले में हिंदू, मुसलमानों से बहुत पीछे हैं। अधिक से अधिक राजनीतिक सुविधायें प्राप्त करने की मुसलमानों की इच्छा को संतुष्ट करना बहुत कठीन होता है। मुस्लिम कभी संतुष्ट नहीं हो सकते।वो लगातार अपनी हितों को सुरक्षित करने के लिए नई सूचियां भी तैयार रखते हैं।
मुस्लिमों में हिंदुओं की कमजोरियों का अनुचित लाभ उठाने की प्रबल भावना होती है। यदि हिंदू आपत्ति करते हैं तो वे आग्रह की नीति अपनाते हैं और आग्रह तभी छोड़ते हैं जब हिन्दू उनके आग्रह के बदले किसी अन्य सुविधा के रूप में उसका मूल्य चुकाने को तैयार हो जाते हैं। समझने वाली बात है कि मुसलमानों द्वारा राजनीति में, हिंसक कार्य पद्धति को सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है। दंगे और उपद्रव सामान्य अस्त्र होते हैं।(अभी देश देख रहा है कि “वक्फ बोर्ड संशोधन बिल” पर पुरे देश में कैसे मुस्लिम जमात, बिल वापस लेने के लिए राजनीतिक दबाव के रूप में दंगों, आगजनी,लूटपाट, और हिंसा का सहारा ले रही है!!)।
उपरोक्त पुस्तक में बाबासाहेब ने लिखा है ——
पेज नंबर 123–धार्मिक आधार पर विभाजन के पश्चात मुसलमानों को भारत में नहीं रहना चाहिए।
पेज नंबर 125–मुसलमान भारत के लिए खतरा बने रहेंगे और भारत में सांप्रदायिक दंगे कराते रहेंगे।
पेज नंबर 231–बुर्के से यौन इच्छा बढ़ती है जिससे अधिक बच्चे पैदा होते हैं।
पेज नंबर 233,234–मुसलमान सामाजिक सुधार और विज्ञान के प्रबल विरोधी हैं।
पेज नंबर 294–मुसलमान अपने शरिया कानून को भारत के कानून और संविधान से ऊपर मानेंगे।
पेज नंबर 297–मुसलमान भारत में अशांति फैलाने के लिए सांप्रदायिक दंगे कराते रहेंगे।
पेज नंबर –303–मुसलमान भारत में हिंदुओं की सरकार कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
पेज नंबर 332–मुसलमान कभी देशभक्त नहीं हो सकते।
आज जो भारत के भीतर की परिस्थितियां नजर आ रही हैं वो डा. अंबेडकर साहब के दूर दृष्टि एवं आशंकाओं को सही साबित करता है। तभी तो एक संप्रदाय इस्लाम,करीब 1400 बर्षों में 58 देशों में फैल गया है। दुसरा संप्रदाय ईसाईयत, करीब 2000 बर्षों में 85 देशों में विस्तार ले चूका है लेकिन “सत्य अहिंसा”, “वसुधैव कुटुंबकम्”, “सर्वधर्म सम भाव”, “नारी तुम नारायणी”, “सर्वेभवन्तु सुखिन:”  “सबका साथ सबका विकास”, अपने हर अनुष्ठान में”विश्व के कल्याण” की बात करने वाला विश्व का एक मात्र धर्म, सनातन अर्थात शाश्वत धर्म,अखंड भारत से हीं नहीं बल्कि विभाजित भारत के 9 राज्यों से भी गायब हो चला है। घुसपैठ और जनसंख्या विस्फोट करके आतातायी हिंदुओं को पलायन को मजबूर कर रहे।
बाबासाहेब के सत्य और स्पष्ट विचारों को समझते हुए नेहरू, बाबासाहेब पर हिंदू संप्रदायिक तत्वों से मिली भगत का आरोप लगाते रहे हैं। जबकि कृपलानीजी तो नेहरू को इस्लाम परस्त और छद्म हिन्दू मानते थे। नेहरू ने आजादी और विभाजन के बाद बने पहले मंत्रियों के कैबिनेट में अंबेडकर साहब और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को स्थान नहीं देना चाहते थे लेकिन गांधीजी के दबाव देने पर उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। अंबेडकर जी ने दलितों के और कश्मीर से जुड़े धारा 370 तथा 35(A) के संदर्भ में कांग्रेस द्वारा सही निर्णय नहीं लेने के विरोध में, कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया लेकिन नेहरू ने प्रचारित किया कि उन्हें कैबिनेट से निकाल दिया गया।बाबासाहेब का देश विभाजन से जुड़े सच को सामने लाने  और गांधी, नेहरू का हिंदूओं से किये जा रहे छल को उजागर करने की खींज में लोकसभा के 1952 और फिर 1954 के चुनाव में अंबेडकर साहब को हराने में नेहरू और कांग्रेस ने पुरा जोर लगा दिया था। अंबेडकर जी द्वारा धर्म के आधार पर देश विभाजन से जुड़े तथ्यों को सामने रखने और गांधी तथा नेहरू के “गजवा-ए-हिंद” प्लान के उजागर होने के डर से, नेहरू और उनकी कांग्रेस, उनसे इतनी घृणा करते थे कि बाबासाहेब के मरने के बाद, उनकी विधवा पत्नी सबिता अंबेडकर को शाजिस करके घर से बेदखल करवाकर रोड पर फेंकवा दिया गया।
यही कांग्रेस, अंबेडकर साहब के संविधान को चिथड़े-चिथड़े करके उसके मूल स्वरूप को हीं बदल चूकी है जिसका  परिणाम आज दंगों और हिंदुओं के पलायन के रूप में सामने आ रहा है। फिर भी जातियों में बंटे,मूर्ख हिंदू को समझ में नहीं आ रहा।
ये 100 प्रतिशत सच है कि कांग्रेस ने अंबेडकर साहब के मूल संविधान को रहने हीं नहीं दिया है इसलिये हर देशवासी को मूल संविधान वापस पाने की सोच बनानी होगी तभी इस देश में सुख-शांति मिलेगी। बाबासाहेब जैसे महान राष्ट्र भविष्यदृष्टा का हृदय से सम्मान देते हुए,हर सच्चे हिंदुस्तानी को उनके विचारों पर मनन करना चाहिए और धार्मिक कट्टरवाद से उपर उठकर शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण में सहयोग देना चाहिए। लेकिन सत्य तो सत्य है जिसे नकारना, अपने गले पर छूरी चलाने से कम नहीं।
           शुभम् शुभम्,
   प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)

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