ऑनलाइन का बढ़ता क्रेज: छोटे दुकानदारों के लिए बनता खतरा

गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
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वर्तमान समय में डिजिटल क्रांति ने हमारे जीवन को कई मायनों में सरल और सुविधाजनक बना दिया है। खासकर ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में तो जैसे एक नई दुनिया ही खुल गई है। कुछ क्लिक पर हर चीज़ आपके दरवाजे तक पहुंच जाती है—कपड़े, किताबें, मोबाइल फोन से लेकर किराने का सामान तक। लेकिन इस डिजिटल विकास की चमक के पीछे एक गहरी चिंता छुपी हुई है, जो धीरे-धीरे हमारे समाज के एक महत्वपूर्ण वर्ग पर असर डाल रही है—छोटे दुकानदार और स्थानीय व्यवसायी।
छोटे दुकानदार, जो सालों से अपने व्यवसाय के सहारे अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं, अब ऑनलाइन मार्केट के तेज रफ्तार से मुकाबला करने में संघर्ष कर रहे हैं। फ्लिपकार्ट, अमेज़न, मिंत्रा, जोमैटो, बिग बास्केट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने बड़े स्तर पर बाजार पर कब्जा कर लिया है। इन प्लेटफॉर्म्स पर मिलने वाले भारी डिस्काउंट, फ्री डिलीवरी और कैशबैक ऑफर्स छोटे दुकानदारों के लिए एक ऐसी चुनौती बन गए हैं, जिसका सामना करना आसान नहीं है।

*छोटे व्यापारियों के सामने चुनौतियां*:

*1.कीमतों की मार*: ऑनलाइन कंपनियां थोक में खरीदारी करती हैं, जिससे वे सामान सस्ते में बेच पाती हैं। वहीं छोटे दुकानदार के लिए इस तरह की कीमतों पर सामान बेचना संभव नहीं होता।
*2.ग्राहकों का बदलता रुझान*: उपभोक्ता अब ‘क्लिक एंड ऑर्डर’ की सुविधा के आदि हो गए हैं, जिससे बाजार में भीड़ कम होती जा रही है।
*3.तकनीकी जानकारी की कमी*: अधिकतर छोटे दुकानदार डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम या सोशल मीडिया प्रचार के बारे में कम जानकारी रखते हैं, जिससे वे पीछे रह जाते हैं।
*4.महामारी का असर*: कोविड-19 महामारी ने तो इस बदलाव को और भी तेज कर दिया। लॉकडाउन के दौरान जब सबकुछ बंद था, तब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ने ही ग्राहकों तक सामान पहुंचाया। इससे लोगों की आदत बदल गई।

*क्या पूरी तरह खत्म हो जाएंगे छोटे दुकानदार?*

नहीं, लेकिन अगर समय रहते नीतिगत फैसले और तकनीकी सहायता नहीं दी गई, तो यह वर्ग धीरे-धीरे कमजोर होता चला जाएगा। छोटे व्यापार केवल व्यापार का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे सामाजिक ताने-बाने का भी हिस्सा होते हैं। मोहल्ले की किराना दुकान, नुक्कड़ पर चाय की टपरी, स्टेशनरी की छोटी दुकान—ये सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं।

*क्या किया जा सकता है?*

1.डिजिटल प्रशिक्षण: छोटे दुकानदारों को डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम, और सोशल मीडिया प्रचार के बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
2.नीतिगत समर्थन: सरकार को ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियमित नियम-कानून बनाने चाहिए ताकि वे छोटे व्यापारियों को पूरी तरह खत्म न कर सकें।
3.स्थानीय बाजार का समर्थन: उपभोक्ताओं को भी यह समझना होगा कि स्थानीय दुकानदारों से खरीदारी करना एक तरह से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है।
4.कोऑपरेटिव मॉडल: छोटे व्यापारियों को एकजुट होकर कोऑपरेटिव मॉडल अपनाना चाहिए, ताकि वे थोक खरीदारी और वितरण के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा कर सकें।
बहरहाल, ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज भले ही समय की मांग बन चुका हो, लेकिन हमें यह कदापि  नहीं भूलना चाहिए कि स्थानीय दुकानदार हमारे समाज की आर्थिक रीढ़ हैं। उन्हें बचाने के लिए न केवल सरकार और व्यापार संगठनों को बल्कि हमें भी अपनी खरीदारी की आदतों पर विचार करना चाहिए और हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि छोटे व्यापारियों की मुस्कान सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि एक स्वस्थ और संतुलित समाज के लिए भी जरूरी है।

फोटो : ऑनलाइन का बढ़ता क्रेज

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