स्टेशन के सामने फिर से अतिक्रमण, जाम से लोग हो रहे परेशान

*गरीब व फुटकर दुकानदारों को आखिर कब मिलेगा उनका हक?*
*अमीरों के अतिक्रमण पर क्यों नहीं चलती है बुलडोजर,क्या गरीब होना गुनाह है ?*

गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
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भागलपुर स्टेशन के सामने की सड़क एक बार फिर अतिक्रमण की चपेट में आ गई है। हाल ही में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और नगर निगम की संयुक्त टीम ने सख्त अभियान चलाकर सड़क को अतिक्रमण मुक्त कराया था, जिससे यातायात में काफी सुधार देखा गया था। लेकिन कुछ ही हफ्तों में स्थिति फिर से वैसी ही हो गई है। ठेले, खोमचे, टेंपो, टोटो, गन्ने के रस और फल बेचने वाले दुकानदारों ने दोबारा कब्जा जमा लिया है, जिससे यात्रियों और स्थानीय लोगों को भारी जाम और असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
*प्रशासन की कार्रवाई – सिर्फ दिखावा?*: प्रशासन दावा करता है कि अतिक्रमण हटाने के लिए लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं और जुर्माना भी वसूला जा रहा है। नगर निगम के अतिक्रमण प्रभारी वशिष्ठ नारायण ने कहा कि, “अभियान लगातार जारी है और अतिक्रमण करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।”
लेकिन सवाल यह है कि  जब अतिक्रमण करने वालों पर सख्त  कार्रवाई हो रही है तो फिर स्थिति जस की तस क्यों हो जाती है और फिर क्या सिर्फ सड़कों को खाली कराना ही समस्या का स्थायी समाधान है? जब कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही उपलब्ध नहीं कराई जाती, तो ये गरीब दुकानदार जाएं तो जाएं कहां? विगत 3-4 सालों में घंटाघर से लेकर सब्जी मंडी और स्टेशन चौंक तक पापी पेट के सवाल से लड़ रहे फुटकर दुकानदारों पर अतिक्रमण का डंडा चलाया गया। इससे पूर्व स्टेशन पर चर्चित गांधी कटरा के नाम से चला रहे दुकानदार भाइयों पर अंग्रेजी हुकूमत की तरह न केवल उन्हें उजाड़ा गया बल्कि सीधे तौर पर सैकड़ों परिवार के पेट पर बुलडोजर चला दिये गये, जिसका दंश आज भी झेलकर गरीबी और भुखमरी के रूप में त्राहिमाम कर रहा है।

*गरीबों पर ही क्यों गिरी प्रशासन की गाज, अमीरों पर क्यों नहीं?*

हर बार यही देखने को मिलता है कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर सबसे पहले गरीबों पर ही कार्रवाई होती है। ये वही लोग हैं,जो रोज कमाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान, जो अवैध रूप से सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं, उनके खिलाफ ऐसी सख्ती क्यों नहीं दिखाई जाती? क्या गरीब होना ही इनका सबसे बड़ा ‘अपराध’ है? नगर निगम से लेकर जिला व पुलिस प्रशासन की नजर उन अमीरों पर क्यों नहीं जाती जो बिल्डिंग बायलॉज व निगम के नियम-कानून की धज्जियां उड़ाते हुए पूरे शहर को अतिक्रमण के साए में कब्जा जमाए बैठे हैं! निगम प्रशासन को चाहिए कि पहले हुए अपनी जमीन की खोज कर उसे अनादिकृत लोगों द्वारा कब्जा मुक्त कराएं! उदाहरण स्वरूप हथिया नाला, निगम द्वारा पूर्व संचालित अड़गड़ा की जमीन, दही टोला लेन, सोना पट्टी, मारवाड़ी टोला लेन, आनंद चिकित्सालय पथ,गुरुद्वारा रोड आदि!गौरतलब होकि इससे पूर्व निर्वर्तमान एसएसपी आशीष भारती जी ने शहर का भ्रमण कर 21 अपार्टमेंट को चिन्हित कर निर्देश जारी किया था कि  उनके द्वारा किए गए अतिक्रमण के विरुद्ध शख्ती से कार्रवाई किये जाएं, आखिर वह निर्देश ठंडे बस्ते में क्यों चला गया?

*प्रशासन के लिए सवाल*:

*1.गरीबों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं?*: जब प्रशासन अतिक्रमण हटाता है, तो क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि इन लोगों को एक वैकल्पिक बाजार या रेहड़ी-पटरी जोन मुहैया कराए?
*2.क्या सिर्फ गरीबों पर ही सख्ती होगी?*: क्या बड़े दुकानदारों और रसूखदारों पर भी इसी तरह की कार्रवाई होती है?
*3.क्या यही है विकास का मतलब?*: क्या विकास और सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की आजीविका छीनना ही प्रशासनिक सफलता है?

*समाधान की राह*

*स्थायी बाजार स्थल*: नगर निगम को चाहिए कि इन छोटे दुकानदारों के लिए उचित स्थान चिन्हित करे, जहां वे बिना किसी डर के अपना रोजगार चला सकें।
*पुनर्वास योजना*: प्रशासन को ऐसे लोगों के लिए पुनर्वास योजना बनानी चाहिए ताकि सड़कें खाली रहें और लोगों का रोजगार भी प्रभावित न हो।
*नियमित निगरानी*: सिर्फ अभियान चलाकर फाइलें बंद करने से कुछ नहीं होगा। इस पर नियमित निगरानी और एक प्रभावी नीति बहुत जरूरी है।
*आखिर कब मिलेगा इन गरीबों को उनका हक?*: प्रशासन और सरकार को यह समझने की जरूरत है कि सड़क पर ठेला लगाने वाला हर शख्स एक मेहनतकश है, न कि कोई अपराधी। जब तक उनके लिए एक स्थायी समाधान नहीं निकाला जाएगा, तब तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा – कभी अतिक्रमण हटाओ, कभी दोबारा बसाओ। यह समय है जब न सिर्फ अतिक्रमण हटाने की बात की जाए, बल्कि उन लोगों के हक की भी बात किये जाएं,जिनकी जिंदगी सड़कों पर चलती है। प्रशासन को अब जवाब देना होगा कि – “क्या गरीब होना गुनाह है?”

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