फुलचांद पारित, समाज जागरण, प्रखंड संवाददाता नीमडीह
चांडिल : नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के शहादत दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक डाक्टर जटाशंकर पांडे ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता के लिये खुदी राम बोस ने मात्र 18 वर्ष की आयु में फांसी पर चढ़ गये। इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फांसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे।
स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पम्पलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। फरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रान्तिकारी सत्येन्द्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक पत्रिका की प्रतियां खुदीराम ने इस प्रदर्शनी में बांटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुंह पर घूंसा मारा और शेष पत्रिका बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये। मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़े थे। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इस अवसर पर ऐडवोकेट निखिल कुमार, शान्ति राम महतो, अरुण पांडेय, देव कृष्णा महतो, पवन कुमार महतो, अजय कुमार मंडल, निमाइ मंडल आदि उपस्थित थे।