दैनिक समाज जागरण
विश्वनाथ आनंद
गया (मगध बिहार)- 30 दिसंबर 2022- वित्त रहित शिक्षा नीति बिहार के माथे पर कलंक का धब्बा है” उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अश्विनी कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहीं l उन्होंने आगे कहा कि जब फसल सूख कर जल के बिन तिनका – तिनका बन गिर जाये , फिर होने वाली वर्षा का रह जाता कोई अर्थ नहीं ।”राष्ट्र कवि दिनकर के इन पंक्तियों के द्वारा बिहार के वित्त रहित शिक्षकों की पीङा को समझा जा सकता है lउन्होंने कहा कि निरंतर 42 वर्षों से अभिशप्त जीवन जीने को विवश वितरहित शिक्षकों का कोई तारणहार नहीं मिला। उन्होंने जारी प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नियोजन का आश्वासन दिया था और गंभीरता पूर्वक इस दिशा में कदम भी बढ़ाए लेकिन अभी तक इनकी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। उन्होंने आगे कहा कि वितरहित शिक्षकों और इनके हजारों परिजन आशा भरी निगाह से श्री नीतीश कुमार को निहार रहे हैं। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री से आग्रह करते हुए कहा है कि संवेदनशीलता का परिचय देते हुए बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे इन शिक्षकों को नियोजित कर पुण्य के भागी बनें। डा. अश्विनी कुमार ने आगे कहा कि सच्चाई यह है कि बिहार के 70% विद्यार्थियों को शिक्षित करने का दायित्व आज भी वित्तरहित्त शिक्षकों के कंधे पर ही है। वर्ष 2008 में बिहार सरकार ने रिजल्ट आधारित अनुदान देने की घोषणा की थी। वो भी योजना कुछ शिक्षा माफिया और लालफिताशाहियो के कारण सफल नहीं रहा। वित्तरहित शिक्षा देते-देते करीब चार सौ शिक्षकों की मौत दवा और उचित चिकित्सा की आभाव में हो गई
डॉ अश्विनी कुमार ने आगे कहा कि आज बिहार के शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर प्रसाद जो खुद कभी वित्तरहित शिक्षक थे, उन्हें शिक्षकों की व्यथा का एहसास होगा। उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वितरहित शिक्षकों की पीङा हरने का संकल्प लिया था। मुझे आशा और अपेक्षा है कि 42 वर्षों के इस बदनुमा दाग को मुख्यमंत्री यथाशीघ्र हटाएंगे और पराकाष्ठा से परे अन्याय झेल रहे इन व्याख्याताओं को नियोजित करने अवश्य विचार करेंगे l