सरकार का बजट मिला जुला बजट है परन्तु इसमें बेसिक शिक्षा के लिए कुछ भी नजर नहीं आया। सरकार को सरकारी स्कूलों की इमारतों के रख रखाव के लिए और सुसज्जित करने के साथ साथ आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करने की आवश्यकता थी जिससे लोग सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए उत्सुक होते परन्तु सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया एवं सबसे कम संस्कृत विद्यालयों के लिए मात्र तेरह करोड़ राशि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। गौमाता के लिए जो बजट रखा गया है वह भी कम है।इस अवसर पर योगी जी को कम से कम गौमाता को राजमाता घोषित कर देना चाहिए था। गौशालाओं की व्यवस्था संभालने वालों पर और अधिकारियों पर योगी जी को सख्ती करनी होगी।जो बजट निर्धारित किया गया है बो पूरा का पूरा बजट गौमाताओं की सेवा में लगे यह सुनिश्चित करना पड़ेगा। किसान अधिक से अधिक गौपालन करें इसके लिए कोई ठोस योजना बनाकर किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए था। संस्कृत विद्यालय अधिक से अधिक और सुसज्जित हों इसके लिए इस बजट से कुछ नहीं होने वाला है। संस्कृत विद्यालयों से प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में प्रति वर्ष शास्त्री और आचार्य की डिग्री लेकर निकलते हैं और यही सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं परन्तु इनके लिए सरकार की तरफ से न तो कोई लाभ मिलता है और न कोई ठोस योजना है इनके लिए। शास्त्री और आचार्य की डिग्री करने के बाद ये लोग आर्थिक स्थिति से जूझते रहते हैं। यही कारण है कि अब धीरे धीरे लोगों ने अपने बच्चों को संस्कृत के बजाय अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं।इस विषय पर चिंतन करने की अत्यन्त आवश्यकता है। संस्कृत पढ़ें हुए विद्यार्थियों के लिए सरकारी नौकरी में कुछ तो वरीयता मिले। पुराने संस्कृत विद्यालय चाहे वह कुशक गली वाला हो या डेम्पियर नगर वाला हो जीर्ण शीर्ण हो चुके हैं। संस्कृत विद्यालय अधिक से अधिक संख्या में खुलने चाहिए जब अधिक से अधिक संस्कृत विद्यालय होंगे तो उनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या भी बढ़ेगी। प्राचीन समय के अनुसार गुरुकुल पद्धति आरम्भ करनी ही पड़ेगी। मोदी जी से भी अधिक हम योगी जी से आशा रखते हैं।
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