पवित्र पुनपुन नदी की अस्तित्व खतरे मे, विलुप्त होने के कगार पर है हिंदुओं की मोक्ष दायनी पवित्र नदी है पुनपुन ।



शिव पुराण मे वर्णित है पुन पुन नदी का महात्म, हिन्दू आस्था के अनुकूल पितरों को पहली पिंड दान पुनपुन में दी जाने की है प्रथा।

समाज जागरण, धनंजय कुमार वैद्य ब्यूरो चीफ सह सहायक प्रभारी झारखंड प्रदेश

राँची (झारखंड ) 17 जनवरी 2023:- हिंदू सनातन धर्म मे आस्था का प्रतीक पवित्र गंगा नदी को माना गया है । मोक्ष दायनी पवित्र गंगा नदी के बाद शिव महापुराण में पुन पुन दूसरा पवित्र नदी के रूप में माना गया है । इस पुनपुन नदी के महत्व का वर्णन शिवपुरानो मे भी देखने को मिलता है। झारखंड राज्य के पलामू के पिठौरा से निकल कर गंगा नदी पटना (बिहार) में मिलती है। पुनपुन नदी। झारखंड एवं बिहार दोनो राज्यो के उदासीन रवाये के कारण विलुप्त होने के कगार पर है।

पुनपुन नदी का अस्तित्व अब खतरे में जान पड़ता है।

पुन पुन नदी पर आज भू माफियाओं ने अतिक्रमण कर बैठा है । अति महत्व पूर्ण एवम पवित्र नदी पुनपुन झारखंड और बिहार दोनो राज्यों के उदासीन रवैया के कारण बलि बेदी पर चढ़ चुकी है। कल तक ,कल -कल बहने वाली नदी आज गड्ढे में तब्दील होकर के रह गई है। वही इस प्रकृति धोरहर को संजोने को लेकर कई संगठन द्वारा जीर्णोधार को लेकर झारखण्ड -सरकार से लेकर बिहार -सरकार तक ज्ञापन सौंपे गए हैं, लेकिन दोनो राज्यों के कोई भी सरकार अबतक पहल नहीं कर सकी है।

ग्राम टंडवा बिहार के निवासी रामजी वैध ने पुनपुन से गंगोत्री तक साइकिल से सफर कर पुनपुन बचाओ का संदेश दिया।

भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दास मोदी से दिल्ली में मिलकर नमामि प्रोजेक्ट से जोड़ने का आग्रह किया है। लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने चाहे केंद्र हो या राज्य ने इस धरोहर की स्मत बचाने का काम नहीं किया अभी तक सभी नाकाम रहे। अब इस क्षेत्र के सैकड़ो गांव के स्थानीय ग्रामीण आपसी सहयोग से टंडवा (बिहार) पुनपुन तट पर प्रतेक वर्ष 3 दिवसीय पुनपुन महोत्सव के रूप में मनाते आ रहें है।

महोत्सव के माध्यम से महिमा और महत्व का संदेश फैलाने का बीड़ा क्षेत्रीय जनता ने उठाया है।

गौतम बुद्ध महिला सेवा संस्थान (एनजीओ) के उपाध्यक्ष सह नबीनगर दक्षिणी से जिला पार्षद सदस्य, हरि राम ने उक्त आशय की जानकारी देते हुए बताया की हम सभी हजारों लोगों ने पुन पुन नदी की स्मिता बचाने को लेकर पुनपुन उद्गम स्थान कुंड झारखण्ड से लेकर पटना बिहार तक पैदल मार्च किया ताकि दोनो ही राज्यों के सरकारों को ध्यान आकृष्ट कराया जा सके ।

अंधी बहरी सरकार के उदासीन रवैया के कारण हम सभी आहत है। अब सत्याग्रह ही अंतिम विकल्प है।

पर्यटन के दृष्टिकोण से भी-प्राकृति पहाड़ों से घिरा ऊंची ऊंची पेड़ो के जंगल, उद्गम स्थान पर भव्य शिव मन्दिर,का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है। ऐसी मनमोहक दृश्य ।। पायतन में विस्तार कर रोजगार के संसाधन सृजन किये जा सकते है।
सिंचाई के दृष्टि कोण से भी अति महत्वपूर्ण है । पुनपुन नदी की जीर्णोद्वार। जीर्णोधार के बाद हजारों हेक्टेयर भूमि सिंचित किये जा सकते है ,जिससे किसान फसल उगाकर समृद्ध बन सकेंगे। यह स्थान कुंड इसलिए भी जाना जाता है की , जहां से पुनपुन नदी की उत्पति हुई। वैसे तो झारखंड राज्य के पलामू (पिपरा) और बिहार के सीमावर्ती कुंड से निकलकर बिहार मे ही अपनी रौद्र मे दिखती है। और छोटी छोटी नदियों को स्वयं में समाहित कर गंगा नदी (पटना) बिहार मे विलीन हो जाती है।

उद्गम स्थान से झारखंड के.4 किलोमीटर से गुजरती हुइ अपनी सफर बिहार के कई जिला को जोड़ते हुए पटना तक सफर करती है। पुनपुन की अस्मिता बहाल करने को लेकर स्थानीय लोगों ने अपनी संघर्ष की हर एक सीमा पार कर दी है, ताकि दोनों राज्यों की संयुक्त सरकार उद्गम स्थान को गंगोत्री यमुनोत्री की तौर पर पर्यटन स्थल का दर्जा प्रदान करे।

अब देखना यह है, पुनपुन उद्गम स्थान को राजकीय दर्जा दिलाने के लिए यूं ही लोग संघर्ष करते रहेंगे या इनकी संघर्ष रंग लाएगी।