चूल्हा चौका छोड़ चली बाबा के नाम |

समाज जागरण
विश्वनाथ त्रिपाठी
प्रतापगढ़
सावन का महीना आते ही जहां गलगली में बम बोल के नारे गूंजने लगते हैं वहीं शिव मंदिरों की छटा ही निराली हो जाता करती‌है | जहां स्थानीय लोग नित्य जलाभिषेक करते हैं वहीं पर दूर से कांवड़ लेकर पुरष वर्ग। जलाभिषेक के लिए भी पहुंचता है |
पूरे जनपद से लोग बाबाधाम भी कांवड़ लेकर जाया करते हैं जिसमें कांवड़ केवल पुरष वर्ग ही ले जाता है क्योंकि वैद्यनाथ के लिए सुल्तानगंज से गंगाजल भर कर लोग करीब ३० किमी की यात्रा बाबाधाम तक पैदल ही करते हैं | इस बार संहिताओं ने यह कहते हुए कांवर उठा ली बाबाधाम के लिए कि महिलाएं अब युद्ध क्षेत्र से लेकर अन्तरिक्ष तक अपना कब्जा जमा चुकी हैं तो हम कमजोर नहीं चूल्हा चौका करते हुए धर्म के मार्ग पर निकल पड़ेंगे तो देश समाज और परिवार भी कुछ सीख सकेगा |
फिर क्या था इसी सोच के साथ सराय सागर की महिलाएं चूल्हा चौका छोड़ कंधे पर कांवर लिए १०_१२ साल के बच्चों को साथ लिए बमबोल का नारा बुलंद करती हुई आगे की ओर बढ़ निकली | चेहरे पर मुस्कान ,अभिषेक की ललक, भोले पर अभिषेक। का विश्वास उनकी बुलंदी का गवाह बनने रहा था | जत्थे की अगुआई गीता नाम की दो महिला शक्तियों ने भक्ति का भाव महिलाओं में भरा और पैदल ही जत्थे के साथ निकल पड़ी | इन महिलाओं को घर का भी साथ मिला और कारवां बढ़ता गया और बाबा के दर्शन को पहुंच कर अभिषेक किया | जत्था प्रमुख दोनों महिलाएं जत्थे के साथ खुश थी |