भानस थाना: संघर्ष, उम्मीद और पहचान की मिसाल

दैनिक समाज जागरण
1988 का दौर भानस गांव के लिए चुनौतियों से भरा हुआ था। बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे के शासनकाल में रोहतास जिले के दिनारा प्रखंड के भानस गांव के लोग भी असुरक्षा और खौफ के साये में जी रहे थे। अपराध और अस्थिरता से जूझ रहे इस गांव में सुरक्षा और शांति की चाह में एक पुलिस आउटपोस्ट (ओपी) की स्थापना की मांग उठी। यह मांग सिर्फ एक चौकी की जरूरत नहीं, बल्कि गांव की पहचान और सुरक्षा की उम्मीद भी बन गई।

ओपी की स्थापना: संघर्ष और गर्व का प्रतीक

भानस गांव के लोग आज भी गर्व के साथ उस दिन को याद करते हैं, जब गांव में ओपी का उद्घाटन हुआ था। पूरे गांव में उत्सव का माहौल था, ढोल-नगाड़ों की धुन पर सब झूम उठे थे। लेकिन इस जीत का सफर आसान नहीं था। शुरुआत में इस ओपी को बसडीहां गांव में स्थापित करने का निर्णय लिया गया था। मगर भानस के लोगों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की और अपने हक के लिए पटना हाईकोर्ट तक गए। गांववालों के संघर्ष और सामूहिक एकता का असर हुआ और प्रशासन ने भानस गांव में ही ओपी की स्थापना कर दी। जिले के पुलिस अधीक्षक ए.एस. राजन ने उनकी बात समझी और उनका समर्थन किया, जिससे यह ओपी उनके संघर्ष और एकता की जीत का प्रतीक बन गया।

अपराध से मुक्ति और सुरक्षा की राह

1980 के दशक में भानस गांव अपराध और भय के साये में था। हत्या, लूट और धमकियों के बीच गांव के लोग आतंक के माहौल में जी रहे थे। ओपी की स्थापना ने इस भय को कम किया। धीरे-धीरे गांव में अपराध घटने लगा, और लोगों में सुरक्षा की भावना जागृत हुई। भानस के लोगों में आत्मविश्वास की एक नई लहर दौड़ गई। हालांकि, उग्रवादी संगठन एमसीसी के बढ़ते खतरे के चलते इस ओपी को बाद में दिनारा थाना के पुराने भवन में स्थानांतरित करना पड़ा। फिर भी, हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त को भानस के उस पुराने ओपी भवन पर तिरंगा फहराकर इस ऐतिहासिक कहानी को ताजा किया जाता है।

ओपी से थाना बनने का सफर और नई चुनौतियां

वर्षों तक अपराध पर अंकुश लगाने के बाद, 19 अगस्त 2024 को भानस ओपी को थाना का दर्जा मिला। लेकिन यह खुशी अधूरी रह गई, क्योंकि नए थाने का अधिकार क्षेत्र सीमित कर दिया गया और भानस गांव अब दिनारा थाना के अंतर्गत कर दिया गया। थाने का नाम भले ही “भानस थाना” है, लेकिन यह भानस गांव अब भानस थाना में नहीं आता, और तो और भानस ओपी थाना भवन निर्माण भी दिनारा थाना क्षेत्र में ही 12 किलोमीटर दूर पंडितपुरा गांव के पास स्थापित किया जा रहा है। इस असमानता ने ग्रामीणों के बीच असंतोष की भावना पैदा कर दी है। जिससे ग्रामीणों में निराशा उत्पन्न हुई। वे इसे अपने संघर्ष की पहचान मानते थे,और अब यह उनके गांव से दूर स्थापित होने जा रहा है।

जमीन का मामला और नई उम्मीदें

2019 में भानस गांव के लिए एक एकड़ जमीन थाना भवन निर्माण के लिए आवंटित की गई थी। लेकिन विभागीय अधिकारियों ने संकीर्ण रास्ते का हवाला देकर निर्माण कार्य से मना कर दिया। इसके बाद, गांव वालों ने अपनी निजी जमीन दान करने का प्रस्ताव रखा ताकि थाने का निर्माण उनके गांव में ही हो सके। ग्रामीणों का मानना है कि थाने की उपस्थिति सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि उनके संघर्ष और आत्म-सम्मान की कहानी का प्रतीक भी होगी। वे चाहते हैं कि जिस गांव के नाम से थाना बना है, वह भौगोलिक रूप से भी उसी गांव का हिस्सा बने।

संघर्ष और उम्मीदों की नई कहानी

भानस के लोग अपने गांव के नाम से जुड़े थाने को केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि अपने संघर्ष और पहचान का प्रतीक मानते हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और अधिकार की लड़ाई का सबूत है। वे चाहते हैं कि जिस गांव ने थाने को उसका नाम दिया, वहां उसकी उपस्थिति भी हो, ताकि यह केवल एक सरकारी इमारत नहीं, बल्कि गांव की आत्मा का हिस्सा बने।

भानस थाना: एक अहम सबक

भानस थाने की यह कहानी प्रशासनिक निर्णयों के महत्व को भी दर्शाती है। छोटी-सी चूक भी अप्रत्याशित परिणाम ला सकती है, जिससे ग्रामीणों की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है। आज भानस थाना एक यादगार उदाहरण बन गया है, और यह कहानी न केवल ग्रामीणों के संघर्ष की मिसाल है, बल्कि प्रशासन को सतर्कता का सबक भी देती है। भानस थाना की यह कहानी संघर्ष, उम्मीद और पहचान की गाथा है—जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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