तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के विधि संकाय की ओर से भारत में दहेज निषेध कानूनों के सामाजिक प्रभावः विकसित भारत @2047 की ओर एक कदम पर दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस का शुभारम्भ
ख़ास बातें
दहेज प्रथा का सबब भौतिकवादी मानसिकताः डॉ. व्यस्त
प्रो. अमित सिंह बोले, दहेज प्रथा सोशियो लीगल प्रॉब्लम
नो डॉरी, नो कॉम्प्रोमाइज, ऑनली इक्विलिटी: प्रो. मंजुला जैन
टीएमयू के वीसी ने दिया जानो, समझो ओर सीखो का मंत्र
सभ्य समाज वही, जो कमजोर वर्ग को न्याय देः प्रो. हरबंश दीक्षित
उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बरेली-मुरादाबाद परिक्षेत्र के सदस्य डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त बोले, भौतिकवादी मानसिकता के चलते ही दहेज का दानव समाज को लील रहा है। संयुक्त परिवार के अभाव में हमारी जरूरतों में बड़ा बदलाव आया है। आधी सदी पहले उपहार में रेडियो, साइकिल और घड़ी ही पर्याप्त होते थे। यह दबाव का नहीं, बल्कि स्वभाव का विषय था। भौतिकवाद के चलते नैतिक मूल्यों और संस्कारों का पतन हुआ है। दहेज सरीखी बीमारी समाज की ही देन है और समाज में ही इसका समाधान है। कानून तो इसे रोकने का एक टूल मात्र है। हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। डॉ. व्यस्त तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के विधि संकाय की ओर से भारत में दहेज निषेध कानूनों के सामाजिक प्रभावः विकसित भारत @2047 की ओर एक कदम पर दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस के शुभारम्भ मौके पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इससे पूर्व मुख्य अतिथि डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त, मुख्य वक्ता प्रो. अमित सिंह, टीएमयू के वीसी प्रो. वीके जैन, डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन, लॉ के डीन प्रो. हरबंश दीक्षित आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके ऑडी में नेशनल कॉन्फ्रेंस का शंखनाद किया। मुख्य अतिथि डॉ. जयपाल सिंह ने विधि के छात्रों से आहवान किया, वे दहेज दानव से मुक्ति का संकल्प लें। संस्कारों का जिक्र करते हुए बोले, मौजूदा वक्त में संस्कार प्रायः लुप्त हो गए हैं। उन्होंने रामायण के महत्वपूर्ण पात्र कौशल्या का उदाहरण देते हुए कहा, हमें कौशल्या के संस्कारों को आत्मसात करना चाहिए। फर्स्ट डे के तकनीकी सत्र में रिसर्च पेपर्स और पोस्टर्स प्रजेंटेशन किए जा रहे हैं। कॉन्फ्रेंस में कुल 300 रिसर्च पेपर्स और पोस्टर्स प्राप्त हुए हैं।
महात्मा ज्योतिबा फुले रूहेलखंड यूनिवर्सिटी, बरेली में फैकल्टी ऑफ लीगल स्टडीज के डीन प्रो. अमित सिंह बतौर मुख्य वक्ता बोले, इस तरह के कानून की सफलता के लिए समाज की स्वीकार्यता जरूरी है। 1961 में पारित दहेज एक्ट आज भी सवालिया घेरे में सिर्फ इसीलिए है, क्योंकि समाज ने इसे दिल से स्वीकार नहीं किया है। यह कानूनविदों के लिए मंथन का विषय है। एनसीआरबी की रिपार्ट साझा करते हुए बोले, देश में आज भी हर 75 मिनट में एक महिला दहेज हत्या की शिकार होती है। प्रो. सिंह ने दहेज निषेध कानून के साथ-साथ भारतीय न्याय संहिता पर भी विस्तार से चर्चा की। बोले, संसद ने भारतीय न्याय संहिता में दहेज के मामलों को लेकर कानून को और सख्त बनाया है। समाज से दहेज की कुरीतियों को मिटाने के लिए उन्होंने महिला शिक्षा, महिलाओं की व्यापार एवम् अन्य कार्यक्षेत्रों में सहभागिता, महिलाओं के व्यक्तिगत विकास, अर्थिक विकास को महत्वूर्ण बताया। वह बोले, इन सबसे ही महिलाओं के अंदर निर्णय लेने की क्षमता विकसित होगी और इसी निर्णय क्षमता के बल पर वे दहेज प्रथा का दमन कर सकती हैं। देश के जिन क्षेत्रों में मातृ शक्ति को माना जाता है, उन क्षेत्रों में दहेज का प्रचलन न के बराबर है। कानून की ओर से दहेज को खत्म करने की पूरी तैयारी है, लेकिन समाज को इसके खात्में का संकल्प लेना होगा।
टीएमयू के वीसी प्रो. वीके जैन बोले, केवल महिलाओं की शिक्षा से ही नहीं, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण से दहेज प्रथा पर वार किया जा सकता है। स्टुडेंट्स से बोले, सिर्फ किताबों से ज्ञान लेना नहीं है, बल्कि उस ज्ञान को आत्मसात करना जरूरी है। इसके लिए उन्होंने जेएसके- जानो, समझो ओर सीखो का मंत्र दिया। डीन एकेडमिक्स प्रो. मंजुला जैन नारी सशक्तिकरण की पुरजोर वकालत करते हुए बोलीं, समाज की उन्नति और खुशहाली के लिए नारी का सम्मान आवश्यक है। दहेज को आंतरिक आतंकवाद की संज्ञा देते हुए बोलीं, हम बाहरी आतंकवाद से लड़ने में तो सक्षम हैं, लेकिन इस आंतरिक आतंकवाद से लड़ना हमारे लिए चुनौती है। अंत में बोलीं, नो डॉरी, नो कॉम्प्रोमाइज, ऑनली इक्विलिटी। टीएमयू विधि संकाय के डीन प्रो. हरबंश दीक्षित ने कहा, समाज के कमजोर वर्ग को सुरक्षा की आवश्यकता होती है। एक सभ्य समाज वही है, जो अपने कमजोर वर्ग के लोगों को सुरक्षा और न्याय प्रदान कर सके। प्रो. दीक्षित बोले, इन कानूनों के बूते दहेज की घटनाओं पर अंकुश लगा है। इसके साथ यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि इन कानूनों का दुरुपयोग न हो। कॉन्फ्रेंस में डीयू से प्रो. निधि सक्सेना, ग्वालियर से श्री अक्षय भार्गव, नैनीताल हाईकोर्ट के अधिवक्ता श्री पूरन सिंह रावत, डॉ. विनीता जैन, डॉ. अमित वर्मा, प्रो. मनीष यादव, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. सुशीम शुक्ला, डॉ. डालचन्द, डॉ. कृष्ण मोहन मालवीय, श्री योगेश चन्द्र गुप्ता, श्री सौरभ बटार, श्री विश्नानंद दुबे, श्री रविन्द्र शर्मा, डॉ. नम्रता जैन के संग-संग विधि के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। संचालन डॉ. माधव शर्मा ने किया।
