दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में “साहित्य की शती उपस्थिति: रामदरश मिश्र” विषय पर एक भव्य अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत गुरुवाणी के साथ दीप प्रज्ज्वलित कर की गई । संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय पूर्व शिक्षा मंत्री एवं साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, पद्मभूषण स. तरलोचन सिंह, अध्यक्ष प्रबंध समिति, एस.जी.टी.बी. खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव,निदेशक अंतरराष्ट्रीय प्रभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली , पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा उपाध्यक्ष हिंदी अकादमी दिल्ली, आमोद माहेश्वरी उपस्थित रहे . मंच का संचालन लेखिका अलका सिन्हा द्वारा किया गया. प्राचार्य, प्रोफेसर गुरमोहिंदर सिंह ने प्रोफेसर रामदरश मिश्र के साहित्य के कुछ पहलुओं को उजागर किया. उन्होंने बताया कि मिश्र जी सादगी वाला जीवन जीना पसंद करते हैं. मिश्र जी को साहित्य अकादमी, व्यास सम्मान अनेको पुरस्कार प्राप्त है. कार्यक्रम इन सभी सम्मानों का निचोड़ साबित होगा. प्रोफेसर जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि मिश्र जी की पुतलियों में शताब्दी का मुक्ति संघर्ष का पूरा इतिहास शामिल है, इन्होने साहित्य में करुणा को विचार, विचार को करुणा का सहचर बताया। सहजता सरलता का अभिप्राय नहीं है, मिश्र जी के यहां सहजता में भी अद्भुत संलिष्टता देखने को मिलती है। मिश्र जी प्रथमत: कवि है मूलत: कवि हैं, अंतत: कवि हैं। मिश्र जी की कविताएं पाठकों के अंतःकरण का घनत्व बढ़ाती है . हिंदी अकादमी के अध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि आज के कवियों को पूंजीवाद या समाजवाद से ज्यादा समझवाद से काम लेने की जरुरत है. कॉलेज के शासी निकाय के अध्यक्ष पद्म भूषण सरदार तरलोचन सिंह मिश्र जी के जीवन की कुछ अनोखी बातें प्रस्तुत की। सौ वर्ष की उम्र में भी मिश्र जी का उत्साह आज भी सराहनीय है। मिश्र जी की साहित्य की जड़े गहरी हैं और हमारे लिए मील का पत्थर साबित होंगी। आप सौ साल के संघर्ष को अपनी आंखों से देख रहे हैं, आशा के बीज संजोते हुए मिश्र जी की आज की शती उपस्थित सभी के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी। प्रकृति और संस्कृति जैसे विविध विषयों में लेखन कर,गांव से शहर तक की यात्रा आपके गीतों में देखने को मिलती है। आपने बताया की मिश्र जी में नकारात्मकता के भाव कतई नहीं है, केवल सकारात्मक के भाव ही झलकते हैं। आपकी कविताओं में आशा है,जुनून है, कभी न थकने की ऊर्जा है।धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रो स्मिता मिश्र ने कि श्री रामदरश मिश्र की पुत्री होना सौभाग्य की बात है। दुनिया को समझने की कोशिश आपने अपने पिता की दृष्टि द्वारा की। मिश्र जी के सौ वर्ष पूरा करते ही इन शती उपस्थित संगोष्टीयों की शुरुआत हुई जो अभी बरकरार है। खालसा कॉलेज के प्रांगण से हो रहे इस ऐतिहासिक कार्यक्रम को समाप्ति की ओर ले जाया गया। हिंदी अकादमी, राजकमल प्रकाशन का सहयोग इस कार्यक्रम को मिला कॉलेज के सभी विभागों ने इस कार्यक्रम में सहयोग दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज की।इस संगोष्ठी में देश-विदेश के विद्वानों के साथ साहित्य प्रेमियों का एक संगम देखने को मिल रहा है। दो दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में कुल 6 सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाएगी। संगोष्ठी का उद्देश्य साहित्यिक दृष्टिकोण से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए रामदरश मिश्र के योगदान को समझना और उनका सम्मान करना है।संगोष्ठी का समापन सत्र अगले दिन होगा, जिसमें आने वाले वक्ताओं से साहित्य के और भी अनछुए पहलुओं पर चर्चा की उम्मीद है। कार्यक्रम के संयोजक अमरेन्द्र पाण्डेय मने कहा कि ये कार्यक्रम इतिहास पुरुष का इतिहास है. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक के अलावा देश भर के शोधार्थी और शिक्षक मौजूद रहे.