आवश्यकता से अधिक भोग रोग पैदा करता है-फलाहारी बाबा

बिकास राय
ब्यूरो चीफ
दैनिक समाज जागरण

गाजीपुर जिला के भांवरकोल ब्लाक के पलिया गांव के गंगा तट पर स्थित हनुमान मंदिर पर श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी उपाख्य फलाहारी बाबा ने अपने मुखारविंद से उपस्थित श्रोताओं को ज्ञान एवं वैराग्य की कथामृत का रसपान कराते हुए कहा कि किसी भी वस्तु का आवश्यकता से अधिक भोग रोग पैदा करता है। धुंधकारी का प्रसंग सुनाते हुए बाबा ने कहा कि धुंधकारी ने भोग को नहीं भोगा भोग ने धुंधकारी को भोग लिया ।राजा भर्थरी ने कहा है कि (भोगा न भुक्ता वयमेव भोक्ता।
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा)। विषय को लोग नहीं भोगते विषय लोगों को भोगता है। काल व्यतीत नहीं होता है लेकिन जीवन व्यतीत हो जाता है तृष्णा बुढी नहीं हुई किंतु हम बूढ़े हो गए ।हमने तप नहीं किया परंतु तप ने हमें तपा लिया। फलाहारी जी ने कहा की तपस्वी और विद्वान को अहंकार नहीं होना चाहिए। सच्चे संत की कृपा और 12 करोड़ किसी भी मंत्र का जप मनुष्य के पूरी कुंडली को बदल डालता है। देवर्षि नारद पूर्व जन्म में दासी पुत्र थे नदी किनारे चतुर्मास करते हुए संतों की सेवा की फलस्वरुप दूसरे जन्म में देवर्षि नारद बन गए। श्री हरि नारायण के द्वारा प्रदत देवर्षि नारद की वीणा में स्वर ही ब्रह्म है ।भक्तों के पुकारने पर भगवान भक्तों की रक्षा हेतु नरक में भी जाने से परहेज नहीं करते। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने भगवान को पुकारा तो भगवान उत्तरा के गर्भ में जाकर अश्वत्थामा के छोड़े हुए ब्रह्मास्त्र से परीक्षित की रक्षा की। भक्त और भगवान दोनों एक साथ गर्भ निवास किए। गर्भ को साक्षात नर्क कहा गया है जीव उल्टा लटका होता है मानो परमात्मा से बार-बार प्रार्थना करता है कि मुझे इस नरक से शीघ्रातिशीघ्र अविलंब जल्द से जल्द इस नर्क से बाहर करो। प्रभु आपका ही कार्य करूंगा किंतु संसार में जन्म लेते ही गर्भ का किया हुआ वादा भूल जाता है। जैसे आकाश का स्वच्छ बारिश का बूंद धूल से स्पर्श होते ही कीचड़ बन जाता है। वैसे ही जीव माया में लिप्त हो जाता है। नारी त्याग और सहनशक्ति की पराकाष्ठा होता है द्रोपति के पांचों पुत्र के हत्यारा अश्वत्थामा की कथा सुनाते हुए फलाहारी बाबा ने कहा कि द्रोपतिअग्नि कन्या होते हुए भी पांच पुत्रों के हत्यारा अश्वत्थामा को छोड़ने की बात करती है ।द्रोपती का चीर हरण महाभारत का कारण बना। यत्र नार्यस्तु पुज्यंते रमन्ते तत्र देवता। का भाव सुनाते हुए बाबा ने कहा कि नारी का प्रत्येक सिंगार अपने पति के लिए होता है माथे पर सिंदूर सुहाग का ही प्रतीक होता है पैरों में बिछुआ माथे पर बिंदिया तथा करवा चौथ जैसा व्रत भी पति के लिए ही समर्पित होता है नारी के प्रणाम का परिणाम भी पति के भाग्य में ही जाता है। अखंड सौभाग्यवती भव । किसी को इतना भी नहीं सताना चाहिए कि आपसे ना कह कहकर वह ईश्वर के सामने रोने पर विवश हो जाए। महाभारत के द्रोपति और रामायण की सीता दोनों पर अत्याचार हुआ दोनों सही अंतर इतना है कि द्रोपती बोलकर सही और सीता मौन होकर सही। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार कलयुग के साथ 9 सदस्य विद्यमान रहते हैं जिसमें पहला समस्त पापों का बाप लोभ असत्य चोरी अनार्यता दारिद्रय कपट कलह दम्भ हिंसा। विशेष रुप से कलयुग का निवास जुआ शराब कोठा और हिंसा में बताया गया है। कथा नित्य संध्या 4:00 से 7:00 तक 2 जुलाई तक चलेगी। कथा में विशेष रुप से अखिलेश उपाध्याय, राजेश यादव, मिथिलेश, जिउत यादव, फुन्नु राय, प्रहलाद राय, राम सिंहासन राय, अवधेश राय, हीरालाल, नीतीश कुमार तथा समस्त ग्रामवासी लगे हुए हैं।