गुरूकृपा से ही ज्ञानलाभ सम्भव है: संत देवराहाशिवनाथ

दैनिक समाज जागरण
आरा,, अख्तर शफी निक्की

परमपूज्य त्रिकालदर्शी, परमसिद्ध,विदेह संत श्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज का आज गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं के द्वारा षोडशोपचार विधि से पूजा अर्चना जगदीशपुर के श्रीदेवराहा धाम सिअरुआ में की गई।वहीं लगभग सत्तर हजार श्रद्धालुओं ने गुरु पर्व के अवसर पर संतश्री के दर्शन लाभ लिए।वहीं पूजा अर्चना के बाद भक्तों को संबोधित करते हुए संतश्रीदेवराहाशिवनाथजी ने कहा कि हर समय जीव को अपने गुरु की पूजा अर्चना करनी चाहिए।इससे जीव की आध्यात्मिक उन्नति होती है।वैसे तो आध्यात्मिक जगत में सदगुरू का विशेष महत्व एवम स्थान है।गुरु की कृपा के बिना ईश्वर को पाना असंभव है।जो गुरु से विमुख है वह कभी भी अपने आत्म और ईश्वर को नहीं जान सकता।गुरु और ईश्वर ब्रह्म तत्व के ही दो रूप या तत्व हैं।गुरुतत्व ईश्वरतत्व से अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण इसीलिए है कि वही ईश्वर तत्व से जीव का साक्षात्कार कराता है।संतो,महात्माओ ने गुरुतत्व की महत्ता को अवर्णीय और अनिर्वचनीय कहा है।इस जगत में कोई ऐसा जीव नहीं जो गुरु से विमुख हो या गुरु के बिना ईश्वरलाभ किया हो।गुरु के बिना जीव को क्षणिक ईश्वरियानुभती हो सकती है परंतु ईश्वरलाभ नहीं।जैसे लकड़ी के दरवाज़े पर पेंट करने से पहले प्राइमर चढ़ाया जाता है और फिर उसके ऊपर पेंट।ऐसा पेंट दरवाजे के जीवनकाल तक बना रहता है। वहीं दूसरी ओर बिना प्राइमर चढाये यदि पेंट चढ़ाया जाय तो पेंट चढ़ तो जाता है और रंग चटख भी हो जाता है परंतु शीघ्र ही रंग झरकर बेरंग बदरंग हो जाता है।वैसे ही ईश्वरप्राप्ति के लिए सदगुरू की जरूरत है।सद्गुरु जीव को धीरे-धीरे सत्कर्म में प्रवृत्त कर परमात्मा से नजदीकीकरण करा देता है जिससे जीव धन्य हो जाता है।जो जीव गुरु के बताए मार्ग पर चलता है,गुरु को ध्यान में रखकर उठता-बैठता,चलता-फिरता है वह शिव को पाता ही नहीं बल्कि स्वयं शिव हो जाता है,’जीवम भवेत शिवम’।गुरु से विमुख हो कुतर्कों में उलझा जीव जन्म-जन्मांतर तक मारा-मारा फिरता है।कहा भी गया है,’गुरु के बिना सीखे योग,छीजे काया,बढ़े रोग।वहीं आज संतश्रीदेवराहाशिवनाथजी महाराज के दर्शनार्थ भारत के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु भक्त हजारों की संख्या में पहुंचे।लगभग पचहत्तर हजार श्रद्धालुओं ने महाप्रसाद ग्रहण किये।