बुद्धिजीवियों ने किया बौद्ध सर्किट तथा पर्यटन स्थल से जोड़ने की मांग
दुल्हिनबाजार/12 दिसम्बर सन् 1912 में स्थापित अनेको पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे गोपाल नारायण पुस्तकालय सह संग्रहालय भरतपुरा राष्ट्रीय धरोहरों में एक है. यह पुस्तकालय सह संग्रहालय पटना जिले के पालीगंज अनुमंडल से मात्र तीन किलोमीटर पूरब पालीगंज – मसौढ़ी मुख्य सड़क पर भरतपुरा गांव में स्थित है. अभिलेखागार बिहार सरकार के सर्वे के अनुसार इस पुस्तकालय सह संग्रहालय का स्थान पूरे भारत देश मे सातवां है. उसके बावजूद भी सरकार के उदासीन रवैये के कारण यह पुस्तकालय सह संग्रहालय अबतक पर्यटन स्थल से नही जुड़ पाया है. बीते 12 दिसम्बर को स्थापना दिवस के अवसर पर पहुंचे बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी सहित पूर्व में भी बहुत से दिग्गज नेताओं ने इसे बौद्ध सर्किट तथा पर्यटन स्थल से जोड़वाने का आश्वासन दिया था. लोगो को उम्मीद था कि सीएम द्वारा प्रगति यात्रा के दौरान इसे पर्यटन स्थल तथा बौद्ध सर्किट से जोड़ने की घोषणा करेंगे. लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ. यहां से मात्र एक किलोमीटर दूर ओलर्क सूर्यमन्दिर को पर्यटन स्थल से जोड़ने की घोषणा सीएम नीतीश कुमार द्वारा की गई. लेकिन गोपाल नारायण पुस्तकालय सह संग्रहालय का कही जिक्र तक नही किया गया. जिसे देख इलाके के बुद्धिजीवियों ने बुद्धिजीवियों ने इसे बौद्ध सर्किट तथा पर्यटन स्थल से जोड़ने की मांग किया है.
- क्या कहते है जिम्मेदार लोग *
पुस्तकालय सह संग्रहालय में गाइड के रूप में कार्यरत आर्चना सिन्हा व कम्प्यूटर संचालिका सौम्या कुमारी ने बताई की प्रतिदिन यहां पांच सौ से अधिक पर्यटक राज्य व देश के बिभिन्न इलाके से आते है. जबकि दिन प्रतिदिन पर्यटकों की संख्या में बृद्धि हो रही है. वही उनका मानना है कि यदि इसे पर्यटन स्थल से जोड़ा जाए तो यहां काफी संख्या में बिदेशी पर्यटक आएंगे व यहां का बाजार काफी विकसित होगा. वही उन्होंने बताई की यहां मौजूद दुर्लभ वस्तुओं को दिखलाने के लिए प्रोजेक्टर भी लगाई गई है.
इस पुस्तकालय सह संग्रहालय के सचिव मुकेश धारी सिंह ने बताया कि इसकी ख्याति काफी बढ़ चुकी है. यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या में कई राज्यो व निकटवर्ती इलाके के अलावे देश के बिभिन्न कोने से लोग इसे देखने के लिए आते है. जिसे देखते हुए मैं सरकार से यथाशीघ्र इस धरोहर को बौद्ध सर्किट से जोड़ने व पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का मांग करता हूँ.
- इतिहास *
बताया जाता है कि इस पुस्तकालय सह संग्रहालय की स्थापना 12 दिसम्बर सन 1912 में स्थानीय जमींदार गोपाल नारायण सिंह ने करवाया था. सन 1934 में आए भयानक भूकम्प से इसकी भवन ध्वस्त हो गया था पर स्व0 रघुराज नारायण के कठिन प्रयास से यह पुनः जीवंत हो उठी है. वही शताब्दी वर्ष के अवसर पर 9 दिसम्बर 2012 को आये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग से इसके भवन को भब्यता व बौद्धिष्ट कला के रूप में विकसित किया गया है. वही 12 फरवरी 2016 को पहुंचे केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव ने इसे बौद्धिष्ट सर्किट व पर्यटन स्थल से जोड़ने का आश्वासन दिया था जो प्रक्रिया में है. ज्ञात हो कि सन 1973 में असमाजिक तत्वों के लोगो द्वारा चार बहुमूल्य पाण्डुलिपियाँ चुरा ली गयी थी. जिसमें से तिन को कुछ समय बाद केंद्रीय जाँच ब्यूरो द्वारा अनुसन्धान कर प्राप्त किया गया. तब से राज्य सरकार इस धरोहर की शुरक्षा को देखते हुए यहां स्थाई रूप से पुलिस कैम्प लगवा रखी है. वही संग्रहालय सह पुस्तकालय के भवनों के अंदर महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाई गई है.
- क्या है पुस्तकायल सह संग्रहालय में *
आज भी यहाँ 8426 सचित्र पाण्डुलिपियाँ, एक हजार दुर्लभ मुगलकालीन चित्रक, दो सौ प्राचीन पालकालीन मूर्तियों सहित एक हजार प्राचीन पंचमार्क सिक्के व दस हजार मुद्रित पुस्तकें है. इस पुस्तकालय सह संग्रहालय में 780 A.D.में ताड़ के पत्ते पर लिखी गयी महाभारत ब्रह्मिलिपि का उदाहरण है. वहीं हजारो वर्ष पूर्व अरबी भाषा में लिखी गयी स्वर्णचित्रित शाहनामा का मूलप्रति यहां मौजूद है. इसके अलावे यहां स्वर्णचित्रित सिकन्दरनामा में सोने व नीलम का समायोजन दिखाई पड़ता है. वही अकबर के समकालीन नवरत्नों में से एक बसावन के द्वारा चित्रित साधु का पेंटिंग के अलावे 1200 A.D. में कौवे के पंख पर निर्मित मानव युगल का चित्र व 800 A.D.का पीपल के पत्ते पर आलिंगन के स्थिति में स्त्री- पुरुष का चित्र है. स्वर्णचित्रित गीतगोविंद, गुलचिराग, त्रिपुटसुन्दरी पट्टलम् के साथ प्राचीन मुगलकालीन शाहजहाँ से लेकर फरुखशाह तक का दस्तावेज यहाँ सुरक्षित है. जबकि गांधीजी के द्वारा अपनी हाथों से लिखी गयी 30 पत्रक भी है जो स्वतन्त्रता संग्राम की याद दिलाती है. इस पुस्तकालय सह संग्रहालय में सूर्य, विष्णु, उमा महेश्वर,तथा गणेश की पाषाण प्रतिमाएँ, सिक्के, मृदभांड, कास्य प्रतिमाएँ मृण्मुर्तियाँ तथा अभिलेख मौजूद है. जिनमे अधिकांश मूर्तियाँ 8वीं से 12वीं सदी की अर्थात पालकालीन है. वही सूर्य की प्रतिमा से बोध होता है की समस्त देव प्रतिमाओं में सूर्य ही एक मात्र देवता है जिन्हें पैरो में जूता पहने हुए दिखाया गया है. शंख, चक्र,गदा एवं पदम् से अलंकृत विष्णु के प्रतिमा में पैरों के दोनों ओर एक पुरुष व एक महिला का अंकन है जिसे चक्र पुरुष व गदा देवी के रूप में जाना जाता है. वही पंचमार्क सिक्के के अलावे गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्के संग्रहालय की शोभा बढ़ाती है जो बिड़ले ही संग्रहालयों में देखने को मिलते है. जबकि यहां मौजूद मध्यकालीन पांडुलिपियों के साथ मध्यकालीन सिक्के इतिहासकारों व पुरातत्वविदों को हमेशा आकर्षित करती रही है.
फोटो:- दुल्हिन बाजार के भरतपुरा गांव स्थित गोपाल नारायण पुस्तकालय सह संग्रहालय. कौवे की पंख पर निर्मित 1200 AD का मानव युगल की तस्वीर व प्राचीन सिक्को का संग्रह.