जंगल के साथ आदिवासियों के रिश्ते की सामूहिक अभिव्यक्ति है सेंदरा

सुनील कुमार गुप्ता, दैनिक समाज जागरण, अनुमंडल संवाददाता चांडिल

सरायकेला झारखंड : – आज दिनांक 15 फरवरी 2023 दिन शनिवार, चांडिल के दलमा पर्वत के रहने वाले लोगों के लिये जनजातीय लोक जीवन की अनेक परंपराओं में से एक है सेंदरा l एक ओर आधुनिकता की दौड़ व शहरी औद्योगिक जीवन शैली के प्रभाव में जंगल से जुड़ी सांस्कृतिक परंपराएं कमजोर और लुप्त हो रही हैं, वहीं, सेंदरा आज भी गर्मी के मौसम में विशिष्ट और विराट आयोजन के रूप में जारी है l झारखंड के वन्य क्षेत्र में वार्षिक शिकार के सामूहिक आयोजन को सेंदरा के नाम से जाना जाता है l पूर्वजों के समय से शुरू हुई इस परंपरा का दलमा पहाड़ पर आज भी पालन हो रहा है l इस वर्ष दलमा में सेंदरा के लिए एक मई की तिथि निर्धारित की गई है l वास्तव में सेंदरा उस समय की परंपरा है जब जंगल में शिकार करना एक नियमित गतिविधि हुआ करती थी l जंगलों में जानवरों की बहुलता के कारण प्राकृतिक संतुलन की दृष्टि से भी सेंदरा किया जाता था l इसके लिए परंपरागत हथियार, भाला, और तीर-धनुष आदि का उपयोग होता था, जो आज भी कायम है l पहले मनोरंजन के साधन भी कम थे, तब सामूहिक रूप से शिकार करना भी एक मनोरंजन होता थाl

सोमवार को ही होता है दलमा शिकार

दलमा शिकार सोमवार के दिन ही करने की परंपरा रही है l पूर्व में वैशाख महीने के दूसरे सोमवार को दलमा पहाड़ में दिशुवा शिकार किया जाता था l वैशाख माह के दूसरे सोमवार को अमावश रहने पर तीसरे सोमवार को शिकार किया जाता था lबुद्ध पूर्णिमा को अयोध्या पहाड़ पर दिशुवा शिकार किया जाता है l दलमा शिकार अयोध्या पहाड़ पर होने वाले दिशुवा शिकार के पहले वाले सोमवार को करने की परंपरा है l दलमा पहाड़ पर शिकार के दौरान जानवरों को मारने के लिए पारंपरिक हथियारों का ही प्रयोग किया जाता है l शिकार में बंदूक या अन्य अग्नेयास्त्र, जाल आदि का उपयोग करना वर्जित है l सेंदरा मनाने वालों का मानना है कि इसमें किसी प्रकार की बहादुरी नहीं है l आदिवासी समाज में एक कहावत है कि जो शिकार पर अयोध्या नहीं जाता वह मातृ गर्भ का है l जो पुरुष गर्भ का है वह शिकार पर जाता है l सेंदरा में पारंपरिक हथियारों के साथ झारखंड के विभिन्न स्थानों के अलावा पश्चिम बंगाल और ओड़िशा से भी सेंदरा वीर दलमा पहुंचते हैं l

जानवरों का शिकार करना ही नहीं है सेंदरा, मारांग बुरु की होती है पूजा

सेंदरा के दौरान वीर सिंगराई कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है l सामाजिक मान्यता के अनुसार वीर सिंगराई सामाजिक पाठशाला है l इसमें युवा वर्ग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं l कार्यक्रम में युवाओं को पारिवारिक जीवन के मूल मंत्रों की जानकारी दी जाती है l इस अवसर पर समाज के बुजुर्ग नौजवानों को सामाजिक व पारिवारिक जीवन के गूढ़ रहस्यों की जानकारी देते हैं l जंगल शिकार के दौरान विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा फूहड़ हंसी का आयोजन किया जाता है l विश्राम स्थल पर नाच-गान और नाटक के माध्यम से कई प्रकार की सामाजिक और आध्यात्मिक जानकारी दी जाती है l विश्राम स्थल में ऐसे मामले भी सुलझाये जाते हैं, जिसका समाधान गांव या पंचायत की बैठक में नहीं हो सका हो l मौके पर नव दांपत्य जीवन का सुखद संचालन करने, अवैध संबंध के दुष्प्रभाव आदि समेत कई प्रकार की जानकारी कहानी के रूप में सुनाई जाती है l सेंदरा में आदिवासी समाज का हर वर्ग शामिल होता है l आदिवासी समाज का हर व्यक्ति सेंदरा के दौरान जानवरों का शिकार करने के लिए ही दलमा नहीं पहुंचता है l आदिवासी समाज दलमा में मारांग बुरू की पूजा अर्चना करते हैं और दलमा पहाड़ का दर्शन भी करते हैं l

समय के साथ बदलने की जरूरत : कपूर बागी (सामाजिक कार्यकर्ता )

दलमा के तराई में स्थित चाकुलिया गांव के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कपूर बागी ने बताया कि वास्तव में सेंदरा जंगल के साथ आदिवासियों के रिश्ते की सामूहिक अभिव्यक्ति है l सेंदरा जंगल पर समुदाय के हक का एकजुट एलान है l दलमा में किया जाने वाला सेंदरा वास्तव में देश शिकार है l समय के साथ सेंदरा का उत्साह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है lइसके साथ युवाओं में सेंदरा के प्रति रुझान नहीं है l उन्होंने कहा कि समय के साथ परंपरा में बदलाव करने की दिशा में समाज को सोचने की आवश्यकता है l वर्तमान में ना प्राकृतिक संसाधन पहले की तरह बचे हैं और ना जानवर , इसलिए इसके संरक्षण की दिशा में भी समाज को आगे आने की जरूरत है l वन विभाग के भरोसे रहने पर भविष्य में आदिवासियों को परंपरा निभाने के लिए भी दिक्कत होने लगेगी l वन विभाग को प्रतिवर्ष सेंदरा रोकने के नाम पर लाखों रुपये मिलते हैं, जिसका बंदरबांट किया जाता है l अब समाज को नए सिरे से सोचते हुए ऐसे सरकारी राशि के बंदरबांट को रोकने के साथ अपनी परंपरा का निर्वाह करते हुए प्रकृति और जंगली जानवरों का संरक्षण करना होगा l