मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक नवविवाहिता केर आस्थाक पाबैन मधुश्रावणी 25 जुलाई सं भेल शुरू: कविता मिश्रा

एक पखवारा धरि चलय वला अहि पाबैन टेमी रस्म अदायगीक बाद 7 अगस्त कै होयत समापन

अररिया/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी से आरंभ एवं शुक्ल पक्ष तृतीया को संपन्न होने वाली मैथिल ब्राह्मण एवम कर्ण कायस्थ परिवार के नवविवाहिता का पारंपरिक,मिथिला संस्कृति व भक्ति का पर्व मधुश्रावणी पूजा बुधवार को नहाय खाय के साथ अरवा भोजन ग्रहण कर शुरू हो गया। एक पखवाड़ा तक चलने वाली इस पूजा में पंडितों की भूमिका भी महिलाएं ही अदा करती हैं।
मिथिलांचल के लोकपर्व मेंनवविवाहिता महिलाओं द्वारा एक अनोखा पर्व मनाया जाता है जिसे मधुश्रावणी व्रत कहा जाता है। मधुश्रावणी पर्व श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि गुरुवार से शुरू हो रहा है। यह पर्व 25 जुलाई से 7 अगस्त तक चलेगा।

समापन के दिन नवविवाहिता को देनी पड़ती है अग्नि परीक्षा

मधुश्रावणी के व्रत के साथ अग्निपरीक्षा भी देनी होती है।समाजसेविका कविता मिश्रा कहती हैं कि इस पर्व में मिथिला की नई दुल्हनों को अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूजा अर्चना की जाती है। इस अनुष्ठान के पहले और अंतिम चरण में बड़े विधि-विधान से साथ पूजा की जाती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान माता पार्वती की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है। इसके साथ ही इस पर्व की अनोखी परंपरा भी मिथिला में देखने को मिलती है।
अग्निपरीक्षा में दुल्हन का जलाया जाता है घुटना
बिहार के मिथिलांचल में प्यार का पता लगाने के लिए एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है जिसमें महिला को अग्निपरीक्षा देनी होती हैं। जिसमे महिला का घुटना जलाया जाता है। पति अपनी पत्नी के घुटने पर पूजा घर में रखे गए दीपक की बाती से प्यार के साथ उसका घुटना जलाता है। इससे दोनों का करुण सार देखने को मिलता है।जब महिला को जलाया जात है। वह उफ्फ तक नहीं करती। ऐसा माना जाता है कि इस परीक्षा में विवाहिता के घुटने में जितना बड़ा फफोला पड़ता है। पति-पत्नी का प्यार उतना ही गहरा होता है।