आग लगी , जींदगीया तबाह हो गई और धुवा भी चला गया ,
ये कोन सी सिस्टम हे जिससे बार बार लोगो को छला गया।
किसी भी जगह पे आप इतना सारा पेट्रोल डीजल नहीं रख सकते यहां हजारों लीटर क्यू?और आया कैसे?!
बिना परमीशन के चलते गेम जॉन और कई सारी चीजे ! लेकिन चलती ही है क्यू?!
अगर लाशो का DNA हो सकता है तो आरोपी का नार्को क्यों नही?!
मिसिंग आंकड़े क्यों नही आ रहे हे बाहर?!
अगर आरोपी या अधिकारी का जमीर जिंदा हो गया हो तो कोर्ट में सच बता देना चाहिए
केसे खेलती हे राजकोट म्युनिसिपल कॉरपोरेशन शिकायत के साथ मेरा अनुभव
क्या कर सकते हो तुम और क्या करना चाहिए सरकार को?!
हाल ही गुजरात के राजकोट में एक दिल दहलाने वाला दर्दनाक हादसा हो गया जिसमे 36 से भी ज्यादा लोग आग की लपेट में आ गए और लाशो का ऐसा मंजर था की उसको पहचान करने के लिए DNA टेस्ट का सहारा लेना पड़ा । अब एक मानवीय दृष्टिकोण से देखो तो उस परिवार के बारे में सिर्फ सोचते सोचते ही मेरी और कई लोगो की आंखे बार बार गीली हो जाती है मगज सुन्न हो जाता है। अब न्याय की बात आए तो उन्हें कैसे न्याय मिलेगा । और क्या होना चाहिए क्या हुआ है अगर क्या करे तो परिवार और देश को न्याय मिले।
पहले तो यह जानना होगा कि हमारी छोटी-छोटी गलतियां एक दिन बाद रूप धारण कर लेती है। इस केस में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है थोड़ा-थोड़ा गलत काम करते-करते इतना ज्यादा गलत काम हो गया है। क्योंकि 3 सालो से मौजूद गेम जॉन में कुछ न कुछ काम चल ही रहा था जो अवैध भी था और आखिर हालात ऐसे हुए की गेम जोन के अंदर हजारों लीटर पेट्रोल और डीजल की मात्रा पाई गई। अगर आम आदमी की बाइक में पेट्रोल खत्म हो जाए तो भी उसे कितने जवाब देने पड़ते हैं और राजकोट में तो ज्यादातर पेट्रोल पंप बोटलों में भी पेट्रोल नहीं देते हैं। ऐसे ही आम आदमी बिना कागज के मोटरसाइकिल भी नहीं चला सकता और यहां पर पूरा गेम जोन चल रहा था। जिसमें अधिकारियों की मिली भगत को नकारा नहीं जा सकता जिसमें सरकार की महेरबानी को भी नकारा नहीं जा सकता इसीलिए न्याय के लिए करें तो कर किया जाए तो जाए कहां?!
यह इसलिए लिखना पड़ रहा है कि अभी तक मौत के आंकड़े सामने आए हैं लेकिन मिसिंग रिपोर्ट कितनी है और मिसिंग में से अभी भी जो सिनात नहीं हुई है वह आंकड़े अभी तक सामने नहीं है या क्लियर नहीं है। दूसरी बात जो लाशों को डीएनए मैच करके सोपा जा रहा है उसी में इसके 60% तक के मलिक का भी डीएनए मैच हुआ। अगर लाशों के लिए डीएनए रिपोर्ट करवा सकते हैं तो सच्चाई जानने के लिए आरोपी और अधिकारियों का नारको टेस्ट क्यों नहीं हो सकता!?! और यह नियम भी बना देना चाहिए के कोई भी केस में 10 या ज्यादा लोगो की मौत हो उसमे नार्को टेस्ट कराना ही पड़ेगा।
यहां आर एम सी की काम करने की पैटर्न थोड़ी अलग है आज से कुछ महीने पहले एक बंद काम चल रहा था जो बाकायदा रोड पर था जहां से हजारों लोग निकल रहे हैं । कायदे से उसको कवर अप करके वहा बांधकाम करना चाहिए और मैं वहां से निकला मेने ऑनलाइन फरियाद रजिस्टर्ड की मैं बिल्डिंग का नाम भूल गया था आर एम सी की ओर से मुझे कॉल आया और उसी ने बिल्डिंग का नाम बताया उसको सब पता था लेकिन फिर भी मुझसे वही अर्जी लिखित में मांगी गई कि जो ऑलरेडी मैंने ऑनलाइन रजिस्टर्ड करवाई हुई थी तो यह है आर एम सी का शिकायत ट्रीट करने का खेल और यहां पर काम करने का सलीका!? क्यों सिर्फ ढाई हजार फुट के बाद काम में बिल्डर को बचा लेते है । पर वह गरीब और बेसहारा लोगों पर नियम चला सकते हैं और इस केस में मुझे भी लास्ट में कॉल आया था क्या आप लिखित अर्जी करो मैंने बोला कि यह मेरे लिए नहीं है लोगों के लिए है मुझे तो पता ही है लेकिन छोड़ दो चार लोगों को मरने दो बाद में देखेंगे ऐसे करके मैंने अर्जी को वहीं पर छोड़ दिया। तो यह होता है कि जब आपको पता हो लेकिन सिस्टम आपके साथ ना हो और सिस्टम पैसे वालों और गलत लोगों के फटी जेब के अंदर नई नोट की तरह पड़ी हो । इसीलिए तो सरकार हर बार बिना कुछ सोचे समझे मुआवजा जाहेर कर देती है। क्योंकि उसे पता ही है कि कहीं ना कहीं इसमें सरकारी सिस्टम की ही गलती है जितनी गलती वह मालिक कर रहा है इस गलती को बढ़ावा देने के लिए सरकार उसको पंप मारे जा रही है और सरकार और मालिकों के विश्वास में आकर आम आदमी लाशों का ढेर बनता जा रहा है। ना तो सच बोल पा रहा है ना तो सच कह पा रहा है ना तो सच सह पा रहा है और ना तो सच सुन पा रहा है। अंत में जब अपने ऊपर आती है तब सच्चाई बहुत पसंद आ जाती है।।
अगर इतना पढ़कर और सुनकर किसी भी आरोपी और अधिकारी जो इस और इससे पहले कोई भी केस से जुड़े हुए हैं और इस मंजर को देखकर उसका जमीर जाग गया है तो जो कोर्ट में जो भी किया है वह सच बता दो जिसको जितना भी दिया है खुल कर जाहिर कर दो और अपने पापों की प्रायश्चित कर लो याद रखना एक न एक दिन कर्मों की थियरी वापस तुम्हें उसे मुकाम पर लेकर आएगी जहां तुमने तुम्हारे पास पावर होने के बावजूद भी इन बेसहारा लोगों को इस हाल में छोड़ दिया है।
अगर आम आदमी भी चाहे तो ऐसी सब जगह पर वह ऑब्जेक्शन लेकर कंप्लेंट कर एक बार सिस्टम को जगा सकता है उसे बाहर नहीं आना है सिर्फ लेटर लिखना सीखना है। और मेल करना है। शुरुआत करनी है मांग करके ऐसे ऐसे कांडों से की जो भी आरोपी है उसका नार्को टेस्ट की मांग करें और नार्को टेस्ट का खर्चा भी 55 से ₹60000 ही है अगर इतने में किसी के अंदर का सच बाहर आ सकता है तो ऐसे ऐसे कांड में इससे अच्छा रास्ता कोई और नहीं है। आम आदमी ऐसे सभी पापों से बच सकता है जो देखा है लेकिन नजरअंदाज कर देता है। यह ठान लेना है की शाम को दो रील काम देखेंगे वीकेंड में घूमने नहीं जाएंगे लेकिन थोड़ा बहुत भी जो गलती हो रहा है जिससे भविष्य में बहुत ज्यादा नुकसान होने वाला है उसकी कंप्लेंट करके ही रहेंगे। भले ही रिजल्ट आए या ना आए यह आम आदमी की और हर नागरिक की सोच होनी चाहिए।
याद रखना गलत चीजों को जब तक नजर अंदाज करते जाओगे तो वह तुम्हारे आसपास घूमती रहेगी और एक दिन तुम भी उसका शिकार हो जाओगे हमारे यहां गुजराती में तो एक बढ़िया कहेवत भी है की
पीपर पान खरणता हस्ती कुपड़िया
मुझ बीती तुज वीत्से से धीरी बापुडीया
यानी की अगर तुम ऐसी चीज पर हसते और देखते रहोगे तो एकदीन तुम्हारी भी वही बारी आएगी।
और अगर सरकार को जरा सी भी गिल्टी फील हो रही है तो तात्कालिक से सारे केस में नार्को टेस्ट करवा के सच उगल वाली या जाना चाहिए और सभी जिम्मेवार लोगों अधिकारियों और नेताओं को आजीवन कारावास में भेज देना चाहिए। जब तक आप मुंह मोड़ के चलोगे और मुहाबजे देते रहेंगे तब तक आपकी चलेगी यह चीजों से सरकार को बाहर निकल जाना चाहिए। कभी ना कभी आपकी नजर अंदाजी या कोई स्पेशल केस में आपकी मीठी नजर सामने वालों को जाने या अनजाने में गुनाहित प्रवृत्ति करने में मदद करती है यह सरकार को समझना होगा यह पूरे देश की सरकार को समझना होगा जो गलत है वह गलत ही है करने वाला कोई भी हो खुद भगवान भी हो तो भी नैतिक मूल्यों को जिंदा रखने के लिए उसे गलत कहना सीखना पड़ेगा। क्योंकि सारी सिस्टम और सारे मसले इस लोकशाही के अंदर हमने सरकार पर विश्वास रखकर उसके हाथों में सौंप दिए हे । इसीलिए उसे भी यह समझकर जिम्मेवारी लेनी होगी।लेकिन अभी सरकार उसका गलत इस्तमाल कर रही हे जो ऐसी घटनाओ से साफ दिख रहा है और साबित हो रहा है।
अब देखते हैं के इस केस के बाद क्या होता है जैसे भूतकाल मैं गुजरात में हुए ऐसे सभी कांडों के आरोपी को जमीन मिल गए हैं और सब कैस और उसके परिवार न्याय की राह देख रहे हैं इस केस में भी अंत ऐसा ही आएगा । या कोई आश्वासन दिखा कर थोड़ा बहुत रो कर हमारे सभी छोटी-छोटी भूलों को बड़ा रूप देने का काम जारी रखने के लिए आगे आएगा। या कोई ऐसा नेता सिस्टम में निकलेगा की जो सही को सही जगह रख दे और गलत को सजा देने की हिम्मत ताकत और जुररत रखें।और सभी परिवारों को न्याय देने के लिए आगे आए क्योंकि कानून बनाने के लिए हमने नेताओं को चुना हे। चुना लगाने के लिए नही?!
जय हिंद
लेखक प्रतीक संघवी राजकोट गुजरात