सार्वजनिक ध्वनि प्रदूषण पर नकेल कसना जरुरी : काजल कसेर

धार्मिक,सामाजिक व सांस्कृतिक  कार्यक्रमों में ध्वनि प्रदूषण बंद हों

काज़ल कसेर,समाज व पर्यावरण एक्टिविस्ट, जांजगीर छत्तीसगढ़

सर्वप्रथम मैं सार्वजनिक स्थलों में तेज आवाज में विभिन्न धार्मिक गतिविधियों के दौरान तेज लाउड स्पीकर के पेचीदा अनुभव को साझा कर रही हूँ, जहां कई बार विनती के बाद भी आवाज कम नहीं की जाती, चाहे किसी की नाइट् शिफ्ट जॉब हो या परीक्षा….बस सबको केवल अपनी मनमानी करनी है। धर्म के नाम पर लोग मनमाना  लाउड स्पीकर चला कर ध्वनि प्रदूषण करते हैं l

10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच तेज आवाज में लाउड स्पीकर को रुकवाने हेतु हमारा कानून बना हुआ है जिसका पालन हर किसी को करना ही चाहिए, क्योंकि यह देश हर किसी का है इसलिए एक दूसरे की समस्या को समझ कर चलना जरूरी है।

मंदिर, मस्जिद एवं धार्मिक स्थलों में तेज आवाज में असमय लाउड स्पीकर पर सख्त रोक लगनी चाहिए। मंदिरों में 10 बजे के बाद लाउड स्पीकर में प्रवचन, कीर्तन न हो, ठीक वैसे ही सामान्यतः मस्जिद में सुबह 4.30-5 बजे के बीच सीमा से अधिक तेज ध्वनि में अजान की प्रकिया पर नियंत्रण किया जाए,
इससे निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ता है-
▪︎ स्कूल और कालेजों के बच्चे:- आज कल स्कूल के घंटे लंबे होने और कोचिंग क्लास के चलते अधिकतर बच्चे रात में पढ़ते हैं और सुबह के 2-3 बजे सोने जातें हैं, ऐसे में सुबह- सुबह तेज ध्वनि में लाउड स्पीकर बजने से उनकी नींद खुल जाती है और वे पूरा दिन थकान और चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं।
▪︎मेडिकल प्रॉब्लम:- कुछ लोगों को माइग्रेन, इनसोमनिया जैसी समस्या के चलते बहुत मुश्किल से नींद आती है। ऐसे में असमय लाउड स्पीकर से उनके शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ता है।
▪︎ आम जनता एवं बुजुर्ग:- आजकल रोजमर्रा की जिंदगी में थकान और भाग दौड़ के बाद लोग केवल रात में ही मुश्किल से 5-6 घण्टे की नींद ले पाते हैं, ऐसे में सुबह-सुबह तेज ध्वनि में लाउड स्पीकर का बजाना काफी परेशान कर देने वाला होता है।
▪︎शरीर और मस्तिष्क के बीच असंतुलन:- नींद की स्थिति में मस्तिष्क अल्फा स्टेट में होता है जिसकी तरंगे और फ्रीक्वेंसी कम होती है जो उठने के बाद धीरे-धीरे बीटा स्टेट में आता है l अचानक तेज ध्वनि कान में सुनायी पड़ने से मस्तिष्क की स्थिति तुरन्त बीटा स्टेट में आ जाती है जिसकी तरंगे और फ्रीक्वेंसी अधिक होती है और इस वजह से व्यक्ति में भौतिक और मनोवैज्ञानिक परेशानी बढ़ सकती है।
▪︎नवजात शिशु के परिपेक्ष्य में:- छोटे बच्चों की क्षमता तेज आवाज को सह पाने की नहीं होती, उनके कानों और मस्तिष्क की नसें काफी संवेदनशील होती है, इसलिए तेज ध्वनि पर रोक लगनी चाहिए।
▪︎ नमाज अलार्म के लिए ऐप्लिकेशन मौजूद:-अजान नमाज पढ़ने का समय बताने हेतु एक सूचना है, आजकल मोबाइल पर इसके ऐप्लिकेशन भी मौजूद हैं जो अलार्म सेट कर देने पर ऑटोमेटिक अजान बजा देते हैं ऐसे में सिर्फ अपने संप्रदाय के लोगों के लिए आस-पास के लोगों को भी नींद से जगा देना उचित नहीं है।

*वैसे ही तेज डीजे के ट्रांस म्यूजिक स्पीकर पर भी सख्त प्रतिबन्ध होनी चाहिए क्योंकि ये हमारे शरीर और मष्तिष्क को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, इससे कई लोगों की ऑन स्पॉट मृत्यु भी हो जाती है* l *बजाय इसके हमें शास्त्रीय वाद्ययंत्र जैसे ढोल, ताश आदि अपनाना चाहिए* l
*आए दिन देश में असहनीय ध्वनि से हादसे और मृत्यु जैसे केस सामने आ रहे हैं, उसके बावजूद ध्वनि प्रदूषण का सिलसिला निरन्तर जारी है l*

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