दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक शोधार्थी समन्वय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों के साक्षात्कार में सभी अभ्यर्थियों को बराबरी का मौका देने की मांग की है । अभ्यर्थियों ने कहा कि सभी लोगो ने अलग-अलग समय पर एम. ए.पास किया है। अभ्यर्थियों का कहना है कि एक दौर में बी. ए. और एम. ए. का प्रतिशत आज के दौर से कम हुआ करता था। इसके कारण हम लोग वर्तमान ए. पी. आई. सिस्टम में पिछड़ रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के नए नियम के कारण हम लोग साक्षात्कार तक पहुंचने में असमर्थ हों रहे हैं। यदि पुराने नियम से हों तो हम सभी साक्षात्कार का हिस्सा बन पाएंगे। इस बावत हमने ई सी सदस्य सुनील शर्मा को ज्ञापन सौंप कर आग्रह किया है कि हमारी समस्या की ओर ध्यान दिया जाए। डूटा उपाध्यक्ष सुधांशु कुमार ने कहा कि हम पूरी तरह से इस मुद्दे पर अभ्यर्थियों के साथ है। सभी को मौका मिले तो अच्छी बात है। शोधार्थी और विभिन्न कॉलेज में अपनी सेवा दे चुकी जया शर्मा ने कहा कि स्क्रीनिंग क्राइटेरिया में न्यूनतम अर्हता को ध्यान रखा जाना चाहिए ।एक अन्य शोधार्थी और गेस्ट शिक्षक रही त्रिवेणी ने बताया कि पिछले कुछ दशकों में बी. ए., एम. ए. के अंक प्रतिशत में बहुत बदलाव आए हैं। नब्बे के दशक में साठ प्रतिशत वाला व्यक्ति विश्वविद्यालय टॉपर हो जाता था । शोधार्थी और शिक्षक रहे घनश्याम ने कहा कि आज हालात ये है कि हिंदी विषय में भी बच्चो के अस्सी प्रतिशत अंक आ रहे हैं। इन अंकों की दौड़ में पहले के लोग पिछड़ रहे हैं। उनका स्कोर बाद के स्नातक और परास्नातक लिए लोगो से बहुत कम हो जाता है। इसे केवल न्यूनतम अर्हता पर ही रियायत दे कर ही उनको मौका दिया जा सकता है। शोधार्थी या पूर्व के स्नातक लोग इस पीड़ा को दोहरे तौर पर झेल रहे हैं एक तो नंबर कम है ,ऊपर से स्क्रीनिंग कमिटी के नियम एक पर चालीस बुलाने का है। इसको पुन: निरीक्षण की जरूरत है । दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक शोधार्थी समन्वय समिति के संयोजक अनिरुद्ध सुधांशु ने कहा कि इस क्राइटेरिया खासकर चालीस वाले पर फिर से विचार कर विश्वविद्यालय प्रशासन फिर से समीक्षा करे। और सभी न्यूनतम अर्हता वाले लोगो को मौका दे।
अपनी मांगों को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक शोधार्थी समन्वय समिति कला संकाय पर शांति पूर्ण धरना देगी। और इस बाबत कुलपति और डीन ऑफ कॉलेजेज को भी ज्ञापन देंगे।