शारीरिक पीड़ा से उबर कंचन ने फाइलेरिया मरीजों को जागरूक करने की उठाया बीड़ा



एमएमडीपी एवं पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क से जुड़ने के बाद मिलने लगी नई जिदंगी



कटिहार ।

“बीते 15 वर्षों तक शारीरिक व मानसिक समस्याओं से जूझती रही हूँ। शारीरिक पीड़ा ने कब मानसिक घाव को जन्म दिया अच्छे से याद नहीं। अच्छे से चल नहीं पाने की पीड़ा समाज के सामने गर्व से खड़ा होने में बाधक ही रही। न जाने कितनी शारीरिक वेदनाएं झेलीं। जिंदगी बोझ सी लगने लगी थी। तभी मेरी जिदंगी में उम्मीद की नई किरण की दिखाई दी। इस किरण ने न केवल जिंदगी जीने की चाहत बदल दी। बल्कि, हाथीपांव से ग्रसित अन्य मरीजों कों प्रेरित करने का आत्मविश्वास भी जगा दिया। आज मेरी जिंदगी बदल गयी है”। यह कहते हुए 36 वर्षीय कंचन देवी राहत भरी सांस लेती हैं। दर्द से शुरू होने वाली कंचन की कहानी आज सफलता की कहानी प्रतीत हो रही है। आज वह पेशेंट नेटवर्क की सहायता से अपनी जिंदगी के साथ दूसरों की जिंदगी बदलने की राह पर निकल चुकी है।


*पेशेंट सपोर्ट नेटवर्क हमारे लिए हुआ वरदान साबित*
कंचन का पैर आज पहले से सही होने लगा है। इस चमत्कार की उम्मीद शायद कंचन को भी नहीं थी। वह तो सामान्य सी बात समझ कर उस एमएमडीपी प्रशिक्षण शिविर में पहुंची थी। जहां उसे लगा था कि यहां तो सिर्फ फाइलेरिया की दवा मिलेगी। लेकिन, यहां उसे सिर्फ मर्ज की दवा हीं नहीं मिली। बल्कि, जीने की नई जिंदगी भी मिल गई। साथ ही साथ फाइलेरिया मरीजों को प्रेरित करने की प्रेरणा भी मिली। यह सब संभव हुआ पेशेंट नेटवर्क की मदद से। उनका कहना है “सचमुच मेरे जीवन के लिए पेशेंट नेटवर्क एक वरदान साबित हुआ।”
महादलित टोला निवासी व हाथी पांव से ग्रसित कंचन देवी को नई जिंदगी का पहला पड़ाव स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयोजित एमएमडीपी प्रशिक्षण सह किट वितरण समारोह में मिली। बसगढ़ा गांव के उच्च विद्यालय में आयोजित इस शिविर में हमें लगा था कि यहां सिर्फ फाइलेरिया की दवा मिलेगी। पर, सिर्फ दवा ही नहीं, वहां मुझे इस बीमारी से बचाव के बारे में समझाया गया। साथ ही किट में मिले सामग्री से फाइलेरिया यानी हाथी पांव को कैसे साफ-सफाई करनी है इसकी जानकारी मिली। वह कहती हैं” मैनें उनकी बातों को ध्यान से सुना और उसका अनुसरण किया। नियमित पैर की सफाई करनी शुरू की। निरंतर आज भी करती आ रही हूं। जिसका सकारात्मक परिणाम भी दिख रहा है। पैर में काफी हद तक सूजन कम हो गया है। अब मैं अपने को सामाजिक, मानसिक व शारीरिक बोझ से उबरता हुआ महसूस कर रही हूं। कंचन कहती हैं कि रामपरी फाइलेरिया पेशेंट नेटवर्क नेटवर्क से जुड़ने के समय घर के आसपास रहने पर तरह-तरह की बातें करते थे। नेटवर्क के साथ जुड़ने से काई फायदा नहीं होता है। लेकिन मन में एक तरह से विश्वास जगी कि इससे जुड़ने के बाद मुझे फायदा हो सकता है। हालांकि अब मैं बेहतर महसूस कर रही हूं। जिसका पूरा श्रेय एमएमडीपी एवं पेशेंट नेटवर्क समूह को देती हूं।”