न प्रश्न पत्र न ही उत्तर पुस्तिका फिर कैसे हो रहा परीक्षा?
राहुल कुमार गुप्ता, संवादाता विष्णुगढ़,दैनिक समाज जागरण।
विष्णुगढ़।झारखंड समेत पूरे देश के शिक्षा व्यवस्था पर बारीकी से समझने की प्रयास किया जाय तो निश्चित मानो रूह कांप जाएगा । एक जमाने में अंडरवर्ल्ड का धाक और उनके खौफ से जिस प्रकार जमी से लेकर आसमान कांपा करता था।आज अगर शिक्षा व्यवस्था को बारीकी से समझा जाय तो उससे भी भयावह स्थिति बनी हुई है। जिसके कब्जे में सरकारी और निजी विद्यालय इस कदर हो चुका है कि उनके एक सफेद कागज के खरीद का हिस्सा शिक्षा के सिंडिकेट तक जा रहा है। सुनियोजित तरीके से सरकारी विद्यालयों के मनोबल और व्यवस्था को कुचला जा रहा है।ताकि लोगों लोगों का विश्वास सरकारी स्कूलों से मोह भंग हो और फिर विकल्प में निजी विद्यालय को देखे, ताकि सिंडिकेट को मोटी रकम मिल सके। इस जाल को बुनने में सरकार से लेकर सरकारी बाबू और उद्योग से लेकर उद्योगपतियों का हाथ है । जिसे देश की भोली भाली जनता समझ नहीं पा रही है।
जिसका ताजा उदाहरण झारखंड के सरकरी विद्यालयों में वर्ग एक से सात तक के वार्षिक परीक्षा से आंका जा सकता है। न प्रश्न पत्र न ही उत्तर पुस्तिका फिर परीक्षा कैसे । इस बावत पूछे जाने पर शिक्षक ने कि विभाग मोबाइल पर प्रश्न पत्र भेज दिया , शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर लिख देंगे और तक बच्चे अपने कॉपी में लिखेंगे।
चूंकि सरकार और विभाग का आदेश जारी है शिक्षक अपने विवेक और साधन से परीक्षा आयोजित करा लें ।
*आइए समझाते हैं आसान शब्दों में* सरकार हर गांव में स्कूल खोल रखी है जहां न तो शिक्षक है न आवश्यक सुविधा दिन ढलते जानवर, जुआड़ी, नशेडी अपना अड्डा बनाने लगता है, सुबह होते होते जानवरों का गोबर और नशेड़ियों के बोतलों का ढेर लग जाता है। सुबह विद्यालय खुलता है बच्चे उस गंदगी को साफ करते हैं फिर दोपहर होते होते थालियों का घंटी बजने लगता है। मास्टर साहब चूल्हा और सरकारी बाबुओं के अलुल जलूल फरमान के जुगाड में समय कर देते है।
इस इस्थिति को देख मध्यम आमदनी वाले परिवार आस पड़ोस के निजी विद्यालय में और संपन्न परिवार बड़े बड़े निजी स्कूलों में अपने बच्चों के भविष्य ढूंढने लगते हैं जहां की प्रबंधन पहले से ही सिंडिकेट के जाल में फंसा हुआ है जहां से तरह तरह के रंग बिरंगी शुल्क वसूली जाती है।
