चहक.. गौरैया की!
आ…लौट के आ फिर! भूली सी चिरैया आ लौट के आ फि
रंग लाई मेहनत और बस गई गौरैया बस्ती
मधु बघेल,
मेकओवर्स62 सेलोन एकेडमी
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
हर बरस 20 मार्च का दिन गौरैया के नाम है। वह नन्ही घरेलू चिड़िया जो बहुत आम थी…पर्यावरण की पोषक थी, किसान की मित्र थी, लगभग नदारद है। इसकी महत्ता को समझ इसकी वापसी के लिए जिन लोगों ने पहल की उनमें नासिक के रहने वाले मोहम्मद दिलावर हैं। गौरैया की लुप्त होती प्रजाति की सहायता को 2009 में ‘नेचर फॉरएवर सोसायटी’ (NFS) की स्थापना भी की गई और 20 मार्च का दिन गौरैया के नाम किया गया। दिलावर ने शहरी क्षेत्र में गौरैया की संख्या में भारी गिरावट का आंकलन किया। इसके बाद 2010 में फ्रांस में इको-सिस एक्शन फाउंडेशन के सहयोग से 20 मार्च को पहला विश्व गौरैया दिवस आयोजित किया गया।
रंग लाई जागरूकता!
गौरैया को लौटा लाने के खूबसूरत अभियान में जिन पंछी प्रेमियों की भागीदारी रही, लंबी सूची हो सकती है। इस संदर्भ में उत्तर प्रदेश के ब्लड कैंसर मरीज नरेन्द्रसिंह का नाम आता है, जो 2013 से जुड़े रहे। इसी क्रम में भरतपुर राजस्थान के चर्चित अपना घर की जीव प्रेमी टीम सहित कविता सिंह, दिल्ली तिहाड़ जेल अधीक्षक योगेन्द्र कुमार, साथी और वहां के कैदियों का अद्भुत उल्लेखनीय योगदान काबिले तारीफ और अनुकरणीय है।
दो बरस में बस गई गौरैया बस्ती
कविता बताती हैं कि शहर के महारानी जया महाविद्यालय परिसर स्थित हनुमान मंदिर में 2023 में गौरैया के करीब पचास घोंसले थे, जो खतरे में आ सकते थे। वहां उनके द्वारा निर्मित सुरक्षित घोंसले लगाए गए तो 2025, 20 मार्च तक यह संख्या दो हजार से ऊपर है और यह गौरैया बस्ती हो गई है। ऐसे ही तिहाड़ जेल अब गौरैया प्रेमियों के लिए दर्शनीय स्थल है।
दुनिया को भाया गौरैया दिवस!
गौरैया दिवस ने दुनिया भर में गति पकड़ ली है। यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के देशों ने कार्यक्रम आयोजित किए और विविध आयोजन और कार्यक्रम भी।