आज अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर विशेष : रोग के खिलाफ योग, नहीं तो फिर भोग

यह योग ही ऐसा होता है ,जो हर रोग पर विजय पता है । वह चाहे शारीरिक रोग हो या मानसिक रोग। इसका आध्यात्मिक पक्ष ही यह भी प्रमाणित करता है कि योग से सब कुछ किया और पाया भी जा सकता है।
मृत्यु के खिलाफ भी जीवन का यह योग हर रोग के खिलाफ भी सफलता प्रदान करने वाला होता है। माना जाता है कि जीवन में योग नहीं है। इसीलिए रोग है और जब रोग है तो फिर उसका भोग भी है । मतलब योग की उपेक्षा करने वाले को रोग भोगना ही पड़ता है। – – – और अगर जीवन में योग है तो फिर असमय मौत पर विजय पाने के साथ ही असंभव को संभव भी बनाया जा सकता है। यहां तक की न केवल शारीरिक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है ,बल्कि जीवन यात्रा को भी उम्र बढ़ाने के रूप में और ज्यादा लंबा किया जा सकता है।


आज 21 जून को पूरा विश्व योग दिवस मना रहा है। यह योग ही ऐसा होता है ,जो हर रोग पर विजय पता है । वह चाहे शारीरिक रोग हो या मानसिक रोग। इसका आध्यात्मिक पक्ष ही यह भी प्रमाणित करता है कि योग से सब कुछ किया और पाया भी जा सकता है।
मृत्यु के खिलाफ भी जीवन का यह योग हर रोग के खिलाफ भी सफलता प्रदान करने वाला होता है। माना जाता है कि जीवन में योग नहीं है । इसीलिए रोग है और जब रोग है तो फिर उसका भोग भी है । मतलब योग की उपेक्षा करने वाले को रोग भोगना ही पड़ता है। – – – और अगर जीवन में योग है तो फिर असमय मौत पर विजय पाने के साथ ही असंभव को संभव भी बनाया जा सकता है। यहां तक की न केवल शारीरिक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है ,बल्कि जीवन यात्रा को भी उम्र बढ़ाने के रूप में और ज्यादा लंबा किया जा सकता है।
अगर योग के महत्व पर और चर्चा करें तो फिर भारत के प्रतिनिधित्व वाली यह वैश्विक परिघटना प्राचीन भारतीय योग पद्धति तथा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण पर इसके गहन प्रभाव को मान्यता देती है। योग शब्द संस्कृत शब्द ‘युज’ से निकला है, जिसका अर्थ है ‘जोड़ना’ या ‘एकजुट करना’, तथा यह मन, शरीर और आत्मा में सामंजस्य लाने के दर्शन का प्रतीक है।
एक तरह से योग केवल शारीरिक आसनों से कहीं अधिक है, क्योंकि यह स्वास्थ्य के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण है, जो श्वास व्यायाम, ध्यान और नैतिक सिद्धांतों को एकीकृत करता है। योग शास्त्रों के अनुसार योग का अभ्यास व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक चेतना के साथ जोड़ता है, जो मन और शरीर, मनुष्य और प्रकृति के बीच पूर्ण सामंजस्य का संकेत देता है।
जैसा कि विद्वान मनीषी भी जानते हैं कि योग भारत की संस्‍कृति का अभिन्‍न अंग रहा है। युगों पहले से ऋषि मुनि यहां योगाभ्‍यास करते आए हैं, लेकिन अब भारत से निकलकर योग दुनिया के तमाम हिस्‍सों में पहुंच चुका है।
जहां तक भारत में योग दिवस को मनाने का सवाल है । अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर योग दिवस को मनाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को जाता है।
इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 में संयुक्त महासभा में दुनिया के तमाम देशों से योग दिवस को मनाने का आह्वान किया था। पीएम मोदी के इस प्रस्‍ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्‍वीकार कर तीन माह के अंदर अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन का भी ऐलान कर दिया था। जिसके बाद ही पहली बार 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस मनाया गया। हर साल योग दिवस के लिए एक अलग थीम निर्धारित की जाती है। साल 2024 की थीम – ‘स्वयं और समाज के लिए योग’ (Yoga for Self and Society) है। “स्वयं और समाज के लिए योग” विषय इस प्राचीन अभ्यास के सार को पूरी तरह से दर्शाता है।
जो लोग योग की महिमा को जानते हैं ,उनके मुताबिक योग केवल व्यक्तिगत कल्याण के बारे में नहीं है, यह आंतरिक आत्म और बाहरी दुनिया के बीच संबंध को बढ़ावा देता है। योग को एक संतुलनकारी क्रिया के रूप में कल्पना करें, जो मन और शरीर में सामंजस्य स्थापित करती है, विचार को क्रिया के साथ जोड़ती है, तथा अनुशासन को व्यक्तिगत पूर्णता के साथ जोड़ती है। शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आत्मिक पहलुओं को एकीकृत करके, योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र मार्ग प्रदान करता है, जो हमारे तेज-रफ्तार जीवन में शांति का एक अत्यंत आवश्यक स्रोत है।
आज 21 जून को मनाया जा रहा योग दिवस भारत समेत दुनियाभर में दसवां योग दिवस है। इस दिन को मनाने का उद्देश्‍य लोगों को योग के जरिए स्‍वस्‍थ और निरोगी जीवन के प्रति जागरुक करना है।
योग के संदर्भ में एक सवाल यह भी कि 21 जून की तारीख ही क्‍यों.? तो फिर ऐसा इसलिए क्योंकि 21 जून को साल का सबसे लंबा दिन माना जाता है। इसे ग्रीष्म संक्रांति भी कहते हैं। इसके बाद सूर्य धीरे-धीरे दक्षिणायन होने लगता है। इस दिन को योग और अध्यात्म के लिए बेहद खास माना जाता है। यही वजह है कि 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया। – – – और अब अगर योग परंपरा की चर्चा की जाए तो फिर यह परंपरा- योग एक ऐसी प्रथा है, जिसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले भारत में हुई थी। इसे मनाने से इसके ऐतिहासिक महत्त्व को स्वीकार किया जाता है। समग्र स्वास्थ्य- योग शारीरिक व्यायाम से कहीं आगे जाता है। इसमें मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को सम्मिलित किया गया है, तथा समग्र कल्याण की भावना को बढ़ावा दिया गया है। दुनिया का लगभग हर व्यक्ति किसी ने किसी रोग से पीड़ित है। और अगर इसके खिलाफ कोई है तो वह है योग। मतलब रोग के खिलाफ योग ,नहीं तो फिर दुख दर्द ,तनाव और अशांति भोग।

सुनील बाजपेई