….. लिअ ये सुंदरी सफरी सिंदूर, ताहि लए गौरी अराधू ये, मधुश्रावणीक पहिल दिन

अपनी सुहाग की अक्षुण्णता के लिए ससुराल में मधुश्रावणी पूजन कर रही है गुड़िया और जूही

मायके धानापट्टी नेपाल में पूजा में बैठी शंकर ठाकुर की पुत्र वधू सुष्मिता

खासतौर पर नव विवाहिता इस पर्व को अपने मायके में रहकर ही मानती है।इस पर्व को नवदम्पत्तियों का मधुमास कहा जाता है। इस पर्व के दौरान नव विवाहिताएं ससुराल के दिये कपड़े-गहने ही पहनती है। यहां तक कि 15 दिनों तक भोजन भी ससुराल से भेजे गए भोजन सामग्री का ही करती है।

बलुआबाजार/नेपाल/डा. रूद्र किंकर।

मधुश्रावणी पर्व मिथिलांचल की अनेक सांस्कृतिक विशिष्टताओं में एक है। मिथिलांचल में नव विवाहिताओं द्वारा की जाने वाला यह व्रत अपने सुहाग की रक्षा की कामना के साथ किया जाता है। नागपंचमी से शुरू होकर यह पर्व टेमी के साथ संपन्न हो जायेगा। इस पर्व में गौरी शंकर की पूजा तो होती ही है साथ में विषहरी व नागिन की पूजा होती है। इस पर्व को नवदम्पत्तियों का मधुमास कहा जाता है। इस पर्व के दौरान नव विवाहिताएं ससुराल के दिये कपड़े-गहने ही पहनती है। यहां तक कि 15 दिनों तक भोजन भी ससुराल से भेजे गए भोजन सामग्री का ही करती है। खासतौर पर नव विवाहिता इस पर्व को अपने मायके में रहकर ही मानती है। विवाहिता पर्व के दौरान प्रतिदिन गौरी, चनाय एवं विषहारा नाग देवता की पूजा के बाद कथा सुनाने वाली महिला कथा सुनाती है। जिसमे शंकर-पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति-पती के बीच होने वाली बाते जैसे नोक झोंक, रूठना मनाना, प्यार, मनुहार जैसे कई चरित्रों के जन्म, अभिशाप, अंत इत्यादि की कथा सुनाई जाती है, ताकि नव दंपती इन परिस्थितियों में धैर्य रखकर सुखमय जीवन बिताये। यह मानकर कि यह सब दांपत्य जीवन के स्वाभाविक लक्षण हैं।नव विवाहिताएं पूरी निष्ठा के साथ दुल्हन के रूप में सज-धज कर ये पर्व मनाती हैं, शादी के पहले साल के श्रवण महीने में नव विवाहिताएं मधुश्रावणी का व्रत करती हैं, श्रावण माह के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से इस व्रत की शुरूआत तेरह दिनों तक यह क्रम चलता रहता है फिर अंतिम दिन बृहद पूजा होती है। इस दिन टेमी दागने की प्रथा है।
मधुश्रावणी पर्व में व्रती नमक के बिना, मीठा भोजन, अरवा भोजन, खाती है, इन दिनों सुहागन व्रत रखकर मिट्टी और गोबर से बने विषहरा और गौरीशंकर की विशेष पूजा कर कथा सुनती हैं, कथा की शुरूआत विषहरा के जन्म से होती है, मधुश्रवणी व्रत के अंतिम दिन टेमी दागने की प्रथा सदियों से चली आ रही है, इस बार 07 अगस्त को इस पर्व का समापन होगा। टेमी दागने के क्रम में महिलाओं द्वारा नवविवाहिता के दोनों पैर व घुटनों को एक जलती हुई दीये की बाती से जलाती है
मानना है कि तीन फफोले उगने से लड़की को भागयशाली माना जाता है। पंद्रह दिनों के रीति-रिवाज भावपूर्ण गीत एवं सामाजिक मेल- मिलाप के बाद नव दंपत्ति विभिन्न तरह के अनुभवों के साथ अपनी जीवन यात्रा पर मजबूत कदमों के साथ चल पड़ते हैं। मैथिली गीत गाते हुए फूल तोड़ने बाग-बगीचा जाती हैं। नवविवाहिता जब नवविवाहिता सज-धज कर फूल लोड़ने के लिए बाग-बगीचे में सखियों संग निकलती हैं तब घर-आंगन बाग-बगीचा, खेत-खलिहान व मंदिर परिसर में इनकी पायलों की झंकार व मैथिली गीतों से माहौल मनमोहक हो जाता है। जब अपने मायके व ससुराल से नवविवाहिता की टोली निकलती है तो उनका रूप, श्रृंगार, गीत और सहेलियों में प्रेम देखते ही लगता है कि शायद इंद्रलोक यहीं पर है। बता दें कि नवविवाहिताएं इस पर्व को अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए करती हैं।