सीमांचल
जाड़े की कंपकंपाती ठंड ढलान पर है। सूर्य की गरमी के साथ साथ राजनीतिक सरगर्मी भी सीमांचल में धीरे धीरे बढ़ती जा रही है।
जदयू व राजद के बीच राजनीतिक तलाक़ के बाद दोनों ही पार्टियों के रास्ते अब अलग-अलग हैं। लालूजी अस्वस्थ हैं इसलिए परोक्ष रूप से पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को ही राजद सुप्रीमो माना जा रहा है। राजद की कमान पूरी तरह तेजस्वी के हाथ है। पार्टी की अच्छाई और बुराई का ठीकरा भी अब उनके ही माथे फूटना तय है। बिहार में सरकार से अलग होने के झटके से उबरते ही लोकसभा चुनाव की चुनौती सामने दिख रही है। चुनावी समर में कार्यकर्ताओं का जोश बनाए रखने के लिए तेजस्वी यादव कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। लेकिन उनके सामने आगामी चुनाव में कई चुनौतियां भी हैं।
सीमांचल में एमआइएम फैक्टर के तोड़ के लिए अंदरूनी कलह को खत्म करते हुए पार्टी की एकजुटता आवश्यक होगी। हालांकि राजनीति के जानकार कम उम्र में तेजस्वी यादव को राजनीति का चमकता खिलाड़ी मानने लगे हैं। सरकार बदलने के बाद बिहार में राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है यह जानने की उनकी कोशिश रही होगी। खासकर सीमांचल में उनकी विशेष नजर है। शायद इसलिए तेजस्वी जन विश्वास यात्रा पर निकले हैं। उन्हें बखूबी मालूम है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बल पर चुनावी समीकरण बदलते और बिगड़ते हैं। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने में तेजस्वी यादव पूरी तरह डटे हैं। कई स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं से रूबरू होकर बुस्टर डोज भी पिला चुके हैं। अब पटना में रैली के माध्यम से हवा का रूख बदलने की कोशिश होगी।
लेकिन पिछले दिनों एआइएमआइएम नेता बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के सीमांचल में किशनगंज व पुर्णिया के कई विधानसभाओं में जनसंपर्क अभियान चलाने से राजद महागठबंधन के शीर्ष नेतृत्व के कान खड़े हो गए हैं। सीमांचल में इंडिया गठबंधन के शीर्ष नेताओं को अल्पसंख्यक वोट सुरक्षित रखने की कड़ी पहरेदारी करनी होगी। अल्पसंख्यक वोट
बैंक में ध्रुवीकरण की जुगाड़ में एआइएमआइएम पूरजोर कोशिश में है क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में बिना पार्टी संगठन और सुनियोजित योजना के एआइएमआइएम द्वारा पांच सीटों पर चुनावी जीत ने राजद महागठबंधन को भारी नुक़सान पहुंचाया था। अमूमन एमआइएम को मिली पांचों सीटें महागठबंधन की सुरक्षित सीटें थीं। पांचों सीटें हाथ से खिसक जाने का जख्म
राजद महागठबंधन का अबतक नहीं भर पाया है। इसलिए महागठबंधन सीमांचल में इस बार आगामी लोकसभा चुनाव में फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रही है ताकि अल्पसंख्यक वोटरों का बिखराव न हो। पार्टी के असंतुष्ट और नाराज नेताओं को फिर से जोड़ने की पूरी कोशिश हो रही है। एआइएमआइएम के आगामी लोकसभा चुनाव में कूदने की बात को लेकर महागठबंधन की सुरक्षित मानीं जाने वाली किशनगंज लोकसभा की कांग्रेस पार्टी की सीट को बचाना इंडिया गठबंधन के लिए कठिन नहीं तो आसान भी नहीं होगा। उपर से मोदी लहर से भी डटकर मुकाबला करना होगा। किशनगंज के अतिरिक्त अररिया , पुर्णिया, कटिहार संसदीय सीटों पर भी एआइएमआइएम की नजर है। यहां भी प्रत्याशी खड़े करने की रणनीति अंदरखाने चल रही है। यहां ओवैसी फैक्टर चला तो अल्पसंख्यक वोटरों का डिवीजन होगा जिसका नुकसान स्पष्ट तौर पर इंडिया गठबंधन को ही होगा।
इसलिए सीमांचल में मुस्लिम वोटरों का रूझान जानने की बेताबी इंडिया गठबंधन नेताओं को अभी से है। तेजस्वी यादव मुस्लिम वोटरों की नब्ज टटोलने की भी कोशिश सीमांचल में अपनी विश्वास यात्रा के क्रम में करते रहे। मुस्लिम वोटरों के अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के लिए अररिया, किशनगंज, पुर्णिया, कटिहार के जनसभाओं में भाजपा पर लगातार हमलावर रहे। जदयू व नीतीश कुमार को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी। उन्होंने कहा कि ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग से उनके पिता लालू प्रसाद यादव कभी नहीं डरे। मैं भी उन्हीं का बेटा हूं। आप सबों का साथ रहा तो मैं भी लालूजी के नक्शे-कदम पर चलता रहूंगा। उपस्थित भीड़ ने जमकर तालियां बजाकर खुशी और समर्थन जताया।
सीमांचल के प्रत्येक जिले में उनके स्वागत में सड़कों पर उतर आए भीड़ देखकर राजद नेतृत्व गदगद दिखे। भीड़ का मिजाज जानने को लेकर तेजस्वी यादव के साथ राजनीति के पंडित राज्यसभा सांसद डॉ मनोज झा, संजय यादव, राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव, पूर्व सांसद सरफराज आलम, पूर्व आपदा मंत्री शाहनवाज आलम,विधान पार्षद कारी शोएब, प्रदेश महासचिव अरूण यादव भी साथ चल रहे थे।
लेकिन यह भीड़ वोट में कितना बदलेगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। गौरतलब है कि
विधानसभा चुनाव 2020 में ओवैसी ने एमवाइ समीकरण तोड़कर पांच महत्वपूर्ण सीटों पर कब्जा जमा लिया था। लेकिन उनके चार विधायकों ने राजद में चले गए जिससे एआइएमआइएम को बड़ा झटका लगा। अमौर विधानसभा में सिर्फ एक विधायक अख्तरूल इमान एमआइएम में रह गये हैं बावजूद एआइएमआइएम चर्चा में है। पिछले दिनों बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी द्वारा सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत बनाने की फिर से कोशिश हो रही है इससे महागठबंधन खेमे में बेचैनी बढ़ी है। लेकिन चार विधायकों के पाला बदलने के बाद सीमांचल में एमआइएम की पकड़ कमजोर हुई है या बरकरार है यह तो आगामी लोकसभा चुनाव परिणाम से स्पष्ट होगा।