जिला मुख्यलय मेनहीं है व्यस्थित यातायात…?


चौराहों पर गप्प दरबार करते नजर आते हैं पुलिस कर्मी
विजय तिवारी
समाज जागरण
उमरिया।क्या यह कहा जा सकता है कि उमरिया जिला मुख्यालय है, क्या यह भी सच है कि यहां कलेक्टर, एसपी सहित अन्य प्रशासनिक अफसर बैठते हैं। जिनकी नज़र शहर सहित जिले में प्रशासनिक व्यवस्थाओं को लेकर रहती है। लेकिन इतने सारे अफसरों के होने के बावजूद अगर व्यवस्थाओं पर ग्रहण लग जाये और सारी की सारी व्यवस्था सब कुछ व्यवस्थित होने के बाद भी छिन्न- भिन्न हो तो उसे प्रशासनिक निकम्मेपन का ही हवाला देंगें। ऐसा ही कुछ शहर की यातायात व्यवस्था को लेकर देखा जा रहा है। जो पूरी तरह से बेपटरी है, लेकिन किसी भी अफसर को यह फुर्सत नहीं है कि इस अव्यवस्था पर अपनी धारदार कलम का इस्तेमाल कर सकें-या फिर मौके पर पहुंचकर कार्यवाही कर सकें।शहर में जिस तरह से गाँधी चौक से लेकर बस स्टैंड तक अव्यवस्थित यातायात दिखाई देता है और खुद यातायात प्रभारी या फिर अन्य यातायात पुलिस कर्मियों के वाहन बीच सड़क पर खड़े नजर आते हैं, इससे बड़ी अव्यवस्था का उदाहरण और क्या देखा जा सकता है। डियूटी पर तैनात पुलिस कमी वाहनों को इधर-उधर खड़ा होने के बावजूद उन पर नियंत्रण कर पाने में असफल नजर आते हैं, क्योंकि उन्हें अपने ही काम से फुर्सत नहीं है और कई पुलिस कमी तो तम्बाखू को ठोंकते हुये नजर आते हैं। मजे की बात तो यह है कि इसमें एक पुलिस कर्मी शामिल नहीं होता बल्कि इस पूरी व्यवस्था में अधिकांश ही तम्बाखू का सेवन करते हुये नजर आते हैं। 8 घण्टे को डियूटी कर अपने-अपने घरों को खिसकने वाले कर्मचारी केवल डियूटी के दौरान दरबार करते नजर आते हैं। जिसका उदाहरण कई जगहों पर देखा जा सकता है। अनेक व्यस्ततम चौराहों एवं मार्केट क्षेत्र में यातायात पुलिस सहित थानों के पुलिस कर्मियों की डियूटी भी लगाई जाती है लेकिन उनसे इस बात से मतलब नहीं था कि चौराहे की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखे। इन शाहबान को तो दरवार से ही मतलब नहीं। अनेक चौराहा के आसपास पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का कार्यालय मौजूद है और यहीं से जिले का संचालन भी होता है। लेकिन यहीं यातायात की अव्यवस्था दिन भर देखने को मिलती है। पुलिस तो केवल फर्ज निभा रही है, पुलिस के अफसर देखकर भी अजान बने हुये है।

हम तो सफेद पट्टी के बाहर ही खड़े होंगें, जो करना है कर लो।शहर की कानून व्यवस्था को सुदृढ करने के लिये एक कोतवाली संचालित हैं और शहर की यातायात व्यवस्था को संचालित करने के लिये यातायात विभाग खोला गया है। जहां यातायात प्रभारी से लेकर सिपाही तक की पदस्थापना की गई है और उसका यातायात थाना ही स्वतंत्र रूप से संचालित है। इसका सीधा नियंत्रण जिले के पुलिस कसान के माध्यम से होता है। यातायात पुलिस केनिकम्मे पन का सीधा दाग पुलिस कप्तान के ऊपर ही लगेगा। इस बात से वेफिक्र होकर शहर की यातायात पुलिस काम कर रही है और पूरी तरह से छिन-भिन्न हो चुकी यातायात व्यवस्था में पुलिस को केवल अपनी व्यवस्थाएं ही नजर आ रही हैं। उसके अलावा पुलिस के पास कुछ भी नहीं है।शहर में सड़कों तक फैला फुटपाथ दुर्घटनाओं को निमंत्रण दे रहा है, लेकिन यातायात विभाग नगर पालिका पर दोसा रोपण करती है

अनेक चौराहा एवं मार्केट एरिया में फैली वाहनों की कतारे इस बात की गवाही है कि नियंत्रण नाम की चीज इस शहर से खत्म हो चुकी है। शहर की छोटी से छोटी दुकानों का सम्पूर्ण सामान सड़क तक फैला हुआ है जिसमें नगर पालिका के सम्मिलित सहयोग से व्यवस्थित किया जा सकता है। लेकिन यह सामंजस्य की कमी ही कही जा सकती है कि इस प्रयास की ओर अब तक इन दो विभागों ने गौर ही नहीं किया जिसके कारण नगर की यातायात व्यवस्था अवस्थित हो चुकी है ।ओव्हर लोड वाहनों पर कार्यवाही करने की बात हो तो बात समझ में आती है, लेकिन कागजी रूप में भले ही इंट्री वसूली का काम बंद हो चुका हो, पर आज भी पुलिस इंट्री वसूली करने से नहीं चूक रही। शहर के तीन प्रमुख स्थलों पर यातायात पुलिस की कार्यवाही के नाम पर जो वसूली होती है उसकी कोई नहीं रोक सकता। चपहा कॉलोनी के आगे करकेली रोड में, चंदिया रोड के आसपास, मानपुर रोड पर खड़े होकर चेकिंग के नाम पर जिस तरह से दबंगई के साथ वसूली होती है उसमें मरता क्या न करता मजबूरन वाहन बालको को दक्षिणा चढ़ानी ही पड़ती है। यूं तो मुख्यालय में यातायात प्रभारी की पदस्थापना है लेकिन उनकी पूरी टीम जिस तरह से वसूली अभियान छेड़े हुये है व्ह कुछ कम नहीं। यहां तक कि ट्रकों एवं अन्य वाहनों की मासिक वसूली भी निर्धारित है जो जांच के नाम पर वसूल ली जाती है और इसके कोई प्रमाणित दस्तावे भी नहीं है। लेकिन वर्दी की दबंगई के आगे किसकी मजाल है कि सच को बोल दे, यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले ऑटो जिनमें ओव्हर लोड निर्धारित रहता है ।