महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का 17 वां महा परिनिर्वाण दिवस आज

अपराह्न कालीन सत्र में वक्ताओं द्वारा उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर डाला जाएगा प्रकाश

इस मौके पर पंच वक्त का ध्यानाभ्यास, स्तुति विनती,पुष्पांजलि, भंडारे की रहेगी व्यवस्था

पटना/डा. रूद्र किंकर वर्मा।

बीसवीं सदी के महान संत प्रात: स्मरणीय अनंत श्री विभूषित परमाराध्य सदगुरू महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के मस्तिष्क स्वरूप व उनके उत्तराधिकारी रहे महर्षि संतसेवी जी महाराज का महा परिनिर्वाण दिवस 4 जून को है देश-विदेश मेंं संतमतावलंबियों द्वारा इस पुण्य तिथि के मौके पर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई है। सिध्द पीठ कुप्पाघाट आश्रम , सबौर आश्रम, अवतरण डीह गमहरिया सहित सभी सत्संग आश्रमों सार्वजानिक स्थलों पर पंच वक्त का ध्यानाभ्यास, स्तुति विनती,पुष्पांजलि, अपराह्न कालीन सत्र में वक्ताओं द्वारा उनके व्यक्तित्व कृतित्व , जीवन दर्शन ,गुरु महिमा आदि पर प्रकाश डाला जायेगा। बता दें कि
गुरू – शिष्य परंपरा मेंं विश्व मेंं सबसे ज्यादा अपने गुरू की सेवा करने वाले महर्षि संतसेवी जी महाराज अपने गुरूदेव के गूढ़ ज्ञान को विश्वव्यापी बनाने मेंं उनकी अप्रतीम योगदान सर्वविदित है । महर्षि संतसेवी जी महाराज का आविर्भाव 20दिसंबर 1920ई. को बिहार राज्यांतर्गत मधेपुरा जिले के ग्राम गम्हरिया में कर्ण कायस्थ कुलभूषण बाबू बलदेव लाल दास के सुपुत्र के रुप में हुआ था। इनका बचपन का नाम महावीर था। मात्र 19वर्ष की अवस्था में संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज से दीक्षित होकर सदा के लिए अपने गुरु के साथ रहने लगे। 40 वर्षों तक अपने गुरु महर्षि मेँहीँ की सेवा कर अनुपम गुरु भक्ति का आदर्श उदाहरण संत साहित्य में पेश किया। इनकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरुदेव महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने कहा था कि “संतसेवी जी, आपकी तपस्या मेरी सेवा है। मेरे बिना आप नहीं रह सकते और आपके बिना मुझको नहीं बनेगा। मैं वरदान देता हूँ कि जहाँ मैं रहूंगा वहाँ आप रहेंगे ।आप मेरे मस्तिष्क हैं।”गुरु सेवा के कारण महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने इनका नाम महावीर से ‘संतसेवी ‘ रखा और कालांतर में वे इसी नाम से विश्व विख्यात हुए।