वैज थाली: एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी

महिला यात्री : भैया खानो मिलैगौ?
रेस्टोरेंट वेटर : हाँ हाँ अम्मा सब कछु मिलैगौ। का खांगी तुम?

महिला यात्री : ए भैया कछु रोटी दारि सबजी फबजी औरु का खांगे? आजा लाला नेंक बैठिजा इतकूँ। का खाबैगौ तू बताइदै जाइ – अम्मा अपने पोते से बोली। पोता – अम्मा मैं तो शाही पनीर खांगो।
वेटर : ठीक है अम्मा वैज थारी लैलेउ। वा में कहा है भैया – अम्मा बोली। वेटर – थारी में शाही पनीरु, दाल मखनी, राइतौ चारि रोटी मक्खन लगाइकें,सलादु और अचारु मिलैगौ अम्मा। औरु रोटी अलग ते लिंगे तौ – अम्मा बोली। वेटर : वाके अलग ते पैसा लगिंगे अम्मा। अच्छा ठीक है ला दै दै थारी अम्मा बोली।

पोता : अम्मा! मोइ सू सू आइ रही है। वेटर : हाँ हाँ बेटा पीछें खैरे हाथ माऊं चलौजा किचिन ते आगें।
पोता रेस्टोरेंट के पीछे बाथरूम जाते हुए किचिन के सामने से गुजरते हुआ चीखता है – अम्मा अम्मा! हाँ बेटा कहा भयो? अम्मा पोते की ओर दौड़ी। अम्मा अम्मा जि भैया हवाल हमें गिलासु औरु पानी दैकें आयोओ वु किचिन में मुर्गा काटि रहयो है। कहा मुर्गा हे भगवान! अम्मा सन्न। ऐं रे कढ़ी खाए तेरे मोंह पै बराइदें आगि नाशपीटे तू हमें जि मुर्गा खवावैगौ। वेटर- अरे अम्मा नाएं जितौ नॉन वैज थारी को खानों है। तुम्हाई तौ वैज है थारी दारि मखनी औरु शाही पनीर बाई। अम्मा – तू हमारौ धरमु भ्रष्ट करैगौ। चूलि में दै दै तू दारि मखनी और भार में जाए तेरौ शाही पनीरु। मुर्गा के हाथनते तू हमें खवावैगौ वैज थारी।

लेखक – गिरीश सारस्वत