2002 के गुजरात नरसंहार पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की लड़ाई में गिरफ्तार हुए बहादुर मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ व आर.बी. श्रीकुमार को अविलंब बिना शर्त रिहा करो!*

*

*राजनीतिक दुर्भावना से काम कर रहे मोदी–शाह होश में आओ!*

*गुजरात हिंसा के पीड़ितों को न्याय देना होगा!*

*राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन*
*28 जून 2022*
*भाकपा–माले, एआइपीएफ, इंसाफ मंच*

संवाददाता दीपक कुमार सिंह जिला रोहतास बिहार

साल 2002 में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हुए गुजरात के राज्य प्रायोजित हिंसा के खिलाफ न्याय के लिए जकिया जाफरी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं.

गुजरात कत्लेआम के दौरान पूर्व सांसद एहसान जाफरी का घर जब हत्यारी हिंदुत्ववादी भीड़ ने चारों ओर से घेर लिया था तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को मदद के लिए फोन किया था. उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई और जाफरी को जिंदा जला दिया गया. उनकी पत्नी जकिया जाफरी पिछले दो दशकों से न्याय की उम्मीद में तब की नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली गुजरात सरकार की संलिप्तता साबित करने की कोशिश में रही हैं. न्याय की इस जंग में समर्पित मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ व उनका संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एण्ड पीस’ उनका साथ दे रहे हैं. खूफिया विभाग के अधिकारी आर .बी.श्रीकुमार समेत उस समय के गुजरात में सेवारत कई सरकारी अधिकारियों ने तब की गुजरात सरकार के बचाव में झूठ बोलने से इंकार करते हुए निरंतर सत्य के पक्ष में व न्याय के हक़ में बोला है.

सर्वोच्च न्यायालय ने जकिया जाफरी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने एक निचली अदालत द्वारा एस आई टी की उस रिपोर्ट को स्वीकार करने को चुनौती दी थी जिसमें गुजरात में 2002 की मुस्लिम विरोधी हिंसा के लिए नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई है. इस याचिका के खारिज होने के 24 घंटे के अंदर गुजरात एस आई टी ने तीस्ता सीतलवाड़, एस .बी. श्रीकुमार व अन्य को गिरफ्तार कर लिया है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में की गई कुछ टिप्पणियों ने बदले की भावना से की गई इन गिरफ्तारियों का रास्ता आसान बना दिया, जोकि काफी दुखद है. दिया गया फैसला पर्याप्त आधार न होने पर याचिका को खारिज कर देने तक ही नहीं रहा, बल्कि इसमें तीस्ता सीतलवाड़ पर यह आरोप भी लगा दिया की वे जकिया जाफरी की पीड़ा के उपयोग की कोशिश कर रही हैं. अतः गुजरात पुलिस की रिपोर्ट का विरोध करने वाले तीस्ता सीतलवाड व अन्य अधिकारियों को कठघरे में लाना होगा.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “न्याय के हिमायती” लोगों ने ज़किया जाफ़री के दर्द का फ़ायदा उठाया, उन्होंने हर स्तर पर अधिकारियों के ख़िलाफ़ आरोप लगाने की ज़ुर्रत की, इसलिए इन सभी को कठघरे में खड़ा करने की ज़रूरत है.

हिन्दू वर्चस्ववादी भीड़ का निशाना बने हिंसा पीड़ितों द्वारा देश के न्यायालयों में न्याय पाने की मुहिम का साथ देने को सर्वोच्च न्यायालय ने गुनाह और “साज़िश” क्यों बता दिया? क्या जनसंहार पीड़ितों को अधिकार नहीं है कि वे न्यायालयों में न्याय माँगें और इसके लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का साथ लें? सर्वोच्च न्यायालय का ऐसे कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दिया गया बयान भारत के लिए बेहद दुखदायी है. हम जकिया जाफरी, तीस्ता सीतलवाड़, आर. बी. श्रीकुमार व अन्य सभी जो नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी न्याय व सच्चाई के रास्ते से नहीं डिगे, का अभिनन्दन करते हैं. यदि सर्वोच्च न्यायालय बगैर कोई स्पष्टीकरण दिये न्याय पाने की कोशिश का अपराधीकरण कर दे और न्याय मांगने वालों को कठघरे में लाने का आह्वान करे तो यह लोकतंत्र के लिए घातक है. ये गिरफ्तारियां प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की बदले की भावना का प्रतिफलन हैं, जिसे भारत की सर्वोच्च अदालत ने आसान कर दिया.

आइए तीस्ता सीतलवाड़ व अन्य की अविलंब रिहाई और गुजरात हिंसा पीड़ितों को न्याय देने की मांग उठाएं और पूरे बिहार में भाकपा–माले, इंसाफ मंच व एआइपीएफ के संयुक्त बैनर से 28 जून 2022 को प्रतिवाद में जुलूस/प्रतिवाद सभा/पुतला दहन/नागरिक मार्च आदि के कार्यक्रम आयोजित करें.