“प्रो. भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’ ने विश्वविद्यालय की स्थापना को बताया गौरवपूर्ण, 33 वर्षों में हुए समृद्धि और विकास पर किया विस्तृत चर्चा
मधेपुरा/डा. रूद्र किंकर वर्मा।
भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (बीएनएमयू), लालूनगर, मधेपुरा का 34 वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के इतिहास, उसकी उपलब्धियों और भविष्य की दिशा पर एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के संस्थापकों, प्रमुख व्यक्तित्वों और प्राध्यापकों ने अपने विचार साझा किए और विश्वविद्यालय की प्रगति को सराहा।
कार्यक्रम की शुरुआत में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. भूपेन्द्र नारायण यादव ‘मधेपुरी’ ने विश्वविद्यालय की स्थापना के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भूपेन्द्र नारायण मंडल भारतीय समाज के महान समाजवादी विचारक थे। उनके नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना हमारे लिए गर्व की बात है। उन्होंने यह भी बताया कि भूपेन्द्र नारायण मंडल की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए पहले कॉलेज चौक और फिर विश्वविद्यालय परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई थी। इसके बाद, विभिन्न लोगों के प्रयासों से विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
प्रमुख वक्ता, प्राचीन इतिहास और संस्कृति विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ललन प्रसाद अद्री ने विश्वविद्यालय की स्थापना का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य साझा किया। उन्होंने बताया कि मधेपुरा जिले की स्थापना 1981 में डॉ. जगन्नाथ मिश्र के कार्यकाल में हुई, और उसके ग्यारह वर्षों बाद 1992 में भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की स्थापना तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में हुई। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना क्षेत्रीय और सामाजिक विकास में मील का पत्थर साबित हुई।
विशिष्ट अतिथि, डॉ. रवि विचार मंच के संयोजक और विश्वविद्यालय के कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव ने कहा कि बीएनएमयू की स्थापना 10 जनवरी 1992 को हुई थी, और इसे स्थपित करने में तत्कालीन प्रधानाचार्य प्रो. रमेंद्र कुमार यादव ‘रवि’ का महत्वपूर्ण योगदान था। प्रो. यादव ने विश्वविद्यालय को एक मजबूत संस्थान बनाने की दिशा में कई सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति प्रो. रमेंद्र कुमार यादव ‘रवि’ ने इसे एक सशक्त और प्रगतिशील संस्थान के रूप में स्थापित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने बीएनएमयू के 33 वर्षों के सफर पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने इस अवधि में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन इन सबके बावजूद यह लगातार प्रगति की ओर बढ़ता रहा। उन्होंने बताया कि बीएनएमयू के कार्यक्षेत्र की शुरुआत में कोसी और सीमांचल के सात जिलों में विस्तार था, लेकिन 18 मार्च 2018 को पूर्णिया विश्वविद्यालय के अलग होने के बाद अब विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र केवल तीन जिलों, मधेपुरा, सहरसा और सुपौल में फैल चुका है। प्रो. यादव ने विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो. बी. एस. झा की भूमिका को सराहा और कहा कि उनके नेतृत्व में विश्वविद्यालय ने शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से उत्कृष्टता की नई ऊँचाइयों को छुआ है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि हम सभी को मिलकर विश्वविद्यालय की और शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हम अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाते हैं तो विश्वविद्यालय न केवल शैक्षिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी प्रगति करेगा।
इस अवसर पर कई प्रमुख शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने भी अपने विचार साझा किए। डॉ. शहरयार अहमद, डॉ. कुमार ऋषभ, विद्यानंद यादव, डॉ. दिलीप कुमार दिल, डॉ. श्याम प्रिया, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, रतन कुमार मिश्र सहित कई अन्य व्यक्तित्व इस कार्यक्रम में उपस्थित थे और उन्होंने विश्वविद्यालय के विकास और भविष्य की दिशा पर अपने विचार व्यक्त किए।
इस कार्यक्रम ने बीएनएमयू के 34 वर्षों की यात्रा को समर्पित करते हुए विश्वविद्यालय की सफलता, विकास और भविष्य के लिए जरूरी प्रयासों पर एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। साथ ही यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं, प्राध्यापकों और कर्मचारियों को प्रेरित करने वाला साबित हुआ, जो आने वाले वर्षों में इसे और ऊँचाईयों तक ले जाने के लिए तत्पर हैं।