बैठकी: भारत से सीखो बेशर्मी और भूलना

बैठकी का समय होते हीं,कॉलबेल की आवाज से उत्साहित दरवाजा खोला फिर क्या था!बैठकी जमनी थी,जम गई…..

सरजी,विगत 4 जुलाई को ब्रिटेन में 650 संसदीय सीटों के लिए मतदान हुआ। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री रहे ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी और मुख्य विपक्षी दल कीर स्टार्मर की लेबर पार्टी के बीच हुआ जिसमें ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को जबरदस्त हार का मुख देखना पड़ा है।इस चुनाव में कुल 650 सीटों में कंजरवेटिव पार्टी को मात्र 121 सीटों पर जीत से संतोष करना पड़ा है और मत प्रतिशत से ऋषि सुनक के दल को 23.7 प्रतिशत वोट मिला जो पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग 20 प्रतिशत का नुकसान झेलना पड़ा है। दुसरी ओर लेबर पार्टी पिछले चुनाव से मात्र 1.7 प्रतिशत अधिक वोट लेकर 412 सीटों पर बम्पर जीत हासिल की है।अपनी हार स्वीकार करते हुए निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने जनता से माफी मांगी और कहा –“आई एम सॉरी”। ऋषि सुनक ने लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को शुभकामनाएं और बधाइयां भी दी।–मास्टर साहब चुप हुए।

ए मास्टर साहब! अब ब्रिटेन के इस चुनाव परिणाम और राजनीतिक चरित्र की तुलना भारत से की जाय तो विगत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, कुल संसदीय सीटों का 18 प्रतिशत अर्थात 99 सीटें और मत प्रतिशत का 21 प्रतिशत प्राप्त की है और तब इसका नेता,राहुल खान लगातार चिल्ला रहा है कि मैं जीत गया.. मैं जीत गया.!!!
दुसरी ओर कांग्रेस से 141 प्रतिशत अधिक अर्थात 240 सीटें तथा 75 प्रतिशत अधिक मत(कुल मत का 36.56 प्रतिशत) पाने वाले प्रधानमंत्री को हारा हुआ बताकर लगातार अपमानित कर रहा है।–सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।

ए भाईजी! तब तो कंजरवेटिव पार्टी के हारे हुए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को भारत के विपक्षियों से कुछ सीखने की आवश्यकता है!!–उमाकाका मुस्कुराये।

उ का ए काकाजी!!–मुखियाजी प्रश्न किये।

अजी,जिस तरह हार के बावजूद कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां, संसद में और संसद के बाहर जिस बेशर्मी और बेईमानी का व्यवहार कर रहीं हैं उस व्यवहार को सीखने के लिए तत्काल ऋषि सुनक को भारत का दौरा करके विपक्षी नेताओं से भेंट करनी चाहिए।–कहकर उमाकाका हाथ चमकाये।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में……
काकाजी, ब्रिटेन के मतदाताओं को भारत से भुलने की आदत भी सीखनी चाहिए।–कुंवरजी अखबार उठाते हुए।

उ का ए कुंवर बाबू!! तनी साफ-साफ बोलीं।–मुखियाजी कुंवरजी की ओर।

याद है न मुखियाजी!! 1975 की वो इमरजेंसी! जिसने भारतीय लोकतंत्र को तार-तार कर दिया था। कैसे हम भारत के लोग उस त्रासदी को भूलकर पुनः इंदिरा गांधी को सत्ता पर बैठा दिये। उसी इमरजेंसी में संविधान के नीति निदेशक तत्वों का गला घोटते हुए जबर्दस्ती उसमें सेक्यूलर और सोसलिस्ट शब्द घुसेड़ दिया गया।कांग्रेस ने दशकों बार संविधान बदला। इस तरह बदला कि जल्द से जल्द हिंदूओं के देश भारत का इस्लामीकरण हो जाय लेकिन हम, कांग्रेस के सारे कुकर्मों को भूल गये।विगत चुनाव में मोदीजी के विरुद्ध विपक्षियों के प्रचार कि मोदी आयेगा तो संविधान बदल देगा पर विश्वास करके भाजपा की सीटें कम कर दी।–कुंवरजी मुंह बनाये।

मुखियाजी, सुना नहीं आपने! सदियों तक रामलला, फटे टेंट में थे और अब बारिश की कुछ बूंदे निर्माणाधीन ढ़ाचे में आ गया तो छाती पीट रहे हैं। छोड़िये न! हजारों सिखों का राजनीतिक रूप से प्रायोजित नरसंहार हुआ लेकिन कुछ हीं सालो बाद हीं वहां कांग्रेस की सरकार बन गई। लोग भूल जाते हैं कि कैसे कोविड जैसी महामारी में मोदीजी ने देशवासियों की रक्षा में, वैक्सीन का देश में हीं इजादकर और सभी को मुफ्त मुहैया कराकर लोगों की जान बचाई। जबकि यही विपक्षी उस समय वैक्सीन का मजाक उड़ा रहे थे।–डा.पिंटू मुंह बनाये।
क्या बात कही डा.साहब ने!! मोदी सरकार ने 140 करोड़ देशवासियों को मूफ्त, दो-दो डोज वैक्सीन का लगवाकर ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पुरा विश्व हैरान हो गया था। लेकिन भारतवासियों के भूलने की लत का क्या कहना!! यहां लोग पक्का मकान मिलते हीं टूटा छप्पर भूल जाते हैं। मुफ्त में गैस कनेक्शन मिलते हीं धुआं देता वो चुल्हे की त्रासदी भूल जाते हैं।–मास्टर साहब बोल पड़े।

इसी तरह मुखियाजी, रामभक्तों को गोलियों से भूनने वाले को, मुजफ्फरनगर नगर के दंगे को हवा देने वाली समाजवादी पार्टी को,यूपी में सपा के जंगलराज को लोग भूल जाते हैं और फिर उसी पार्टी को वोट देते हैं। अयोध्या तो हाल-फिलहाल,हमारी भूल जाने की प्रवृत्ति की मिसाल है। छोड़िये!जातिवादी जहर, हम हिंदूओं को, मुगलकाल से लेकर अबतक मारता, उजाड़ता रहा है लेकिन हम तो उसे हर समय भूलने को तत्पर रहते हैं। अब इससे बुरी स्थिति क्या हो सकती है!!–सुरेंद्र भाई आहत लगे।

देखिये इस बार का चुनाव,ये साबित कर गया कि प्रजातंत्र, मूर्खो की जमघट है। तभी तो इस चुनाव में बेधड़क झूठ-फरेब का बोलबाला रहा और किसी हद तक लोगों ने उसे सत्य समझा। हां इतना जरूर है कि हमारे देश के विपक्षियों को ब्रिटेन के राजनीतिक आदर्श से सीख लेनी चाहिए। जनता को कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि हमारे यहाँ प्रजा को विकास और राष्ट्रवाद से मतलब नहीं होता,ये सिर्फ धर्म,जाति और लालच के चश्मे से वोट करती है।अच्छा अब चला जाय।–कहकर डा.पिंटू उठ गये इसके साथ हीं बैठकी भी…..!!!!!
प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)