रिश्वत अकेले नहीं आती है ,देने वाली की बदुआ, मजबूरियां, दुख ,वेदना ,किरोध, तनाव, चिंता भी नोटों से लिपटी हुई होती है—- मोहम्मद इरशाद रजवी*

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समाज जागरण
संवाददाता फहीम सकलैनी


*एक बहुत ही गंभीर लेख मोहम्मद इरशाद रजवी की कलम से*

धौरा टांडा (बरेली)—– , सबसे पहले आपको बताते चलें कि कानून के मुताबिक अब तक रिश्वत लेना ही अपराध माना जाता था, लेकिन अब रिश्वत देना भी अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है. अपने फायदे या अप्रत्यक्ष रूप से काम को प्रभावित करने के लिए रिश्वत देने के आरोपी पर 3 से लेकर 7 साल तक जेल और जुर्माना लगाया जा सकेगा कुछ रिश्ते अपने फायदे तथा दूसरों को नुकसान देने के लिए दी जाती है इसमें भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का कार्य रिश्वत देने व रिश्वत लेने दोनों का सहयोग बराबर रहता है तथा कुछ रिश्वत गरीब के हाथों से दी जाती है वह रिश्वत गरीब अपनी मजबूरी में ही देता है गरीब के हाथों से दी हुई रिश्वत वाले नोटों से लिपटी हुई बद्दुआ ,मजबूरियां ,दुख, बेदना ,क्रोध, तनाव व चिंता होती है रिश्वत वाले पैसों के साथ-साथ रिश्वत लेने वाला व्यक्ति इन सारी चीजों को भी स्वीकार करता है और रिश्वत लेने वाला व्यक्ति इन सारी चीजों को बहुत बारीकी से जानता है कि इस रिश्वत वाले पैसों में इन उपर्युक्त सारी चीजों का होना भी संभव है लेकिन उसको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है वह केवल ये चाहता है कि मैं दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बन जाऊं लेकिन वह इस बात से विल्कुल
अनजान है कि हर व्यक्ति इस जहां में खाली हाथ आया है और खाली हाथ ही वापस जाएगा , व्यक्ति केवल अपना कर्म ही अपने साथ लेकर जाएगा