नागरिक जनसंख्या नही मानव संसाधन है ।

दोहनकर्ता नही संचय कर्ता बने। प्रगतिशील राष्ट्र की यही मूल मंत्र है

किसी भी राष्ट्र का विकास मानव संसाधन के इस्तेमाल करने की कार्य कुशलता पर ही निर्भर करता है

सर्व शिक्षा अभियान कल के इंडिया के लिए उग्रवाद की फसलें तैयार कर रही हैं।

संसाधन कभी भी मायने नहीं रखती , मायने रखती है | संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर लेना | संसाधनों की प्रचुरता अहम है तो विश्व में संसाधनों की प्रचुरता अफ्रीकी मुल्कों में है | तब कहां अफ़्रीकी मुल्क अपनी विकास सही तरीके से कर पा रहे हैं | वहीं उनके संसाधन ज्यादा रहकर भी बस भरी पड़ी है | मगर जिन्हें संसाधनों का इस्तेमाल करना बेहतर आता है| वह राष्ट्र विकसित बन बैठे हैं | कुछ तो ऐसे राष्ट्र भी हैं जो एकदम ना के बराबर संसाधन होने के बावजूद विकास की नई इबारत लिख रहे हैं ज्यादा पीछे का नहीं चीन का ही ले लीजिए या चीन से सीख लेने वाली है दुनिया हम कहे इंडिया जनसंख्या वृद्धि को त्रासदी मान रही है । आने वाले समय में इंडिया का सर दर्द मान रही है । बड़े बड़े ज्ञाता , विद्वानों ने इसे इस नजरिए से देख रही है कि इसके परिणाम गंभीर होंगे । मैं मानता भी हूं कि इससे इष्ठितिया बिगड़ेगी। मगर ठहरिए और सोचिए । चुकी इंडिया की पालिसी के अनुसार हर भारतीय नागरिकों को संसाधन पहुंचाना उद्देश्य लिए है । इससे जनसंख्या बोझ लगेगी । मगर ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है पड़ोसी चीन का ही ले लीजिए उसकी जब जनसंख्या बढ़ती जा रही थी दुनिया चिन का अभिशाप मान रही थी । वही चाइना अपनी पालिसी बदल अपने नागरीको, अपने जनसंख्या को ही संसाधन मन ली । अपनी मानव संसाधन का इस्तेमाल अपने तरीके से कर लिया । नतीजा आज दुनिया के सामने है चीन विकसित कर गया। यही संसाधन के दम पर चीन सुपर पावर अमेरिका को आंखे दिखा रहा है । आज इंडिया भी चीन की तरह चीन की जनसंख्या वृद्धि दर के चालान पर है ।जो चीन कभी हुआ करती थी । अब कहिएगा चीन कहा बचा पा रही है । अपनी वह रफ्तार जो हुआ करती थी । तो इसका उत्तर भी चीन की मानव संसाधन से जुड़ी है अपने विकास की चढ़ा न पर चीन भी उस विकास को अलग नजरिए से देखना शुरू किए । उसे लगा इस विकास में विकास की पेड़ का जड़ मानव संसाधन नही । मा न व संसाधन की पॉलिसी ओझल होने लगी ।मानव संसाधन उन्हें जनसंख्या महसूस होने लगी । पॉलिसी बदली गई जनसंख्या दर धीमी होने लगी । मानव संसाधन की कमी होने लगी और जो मानव संसाधन पहले से हैं वह अपनी आयु के इस्तेमाल कर लेने समय की अंतिम पड़ाव तक पहुंचते जा रहे हैं । कार्यक्षमता की क्वालिटी में कमी आना स्वाभाविक है । जिसके परिणाम सभी को दिख रही है । इसे चीन का विकास रथ रुकना को कोई रोक भी नहीं सकता क्योंकि उसके सचयित संसाधन दोहन कर्ता संसाधन बन गए ।कल प्रोडक्ट सचयित सिद्धांत तहत बाहर जा रही थी। अब सिद्धांत दोहन करता हो गई।अब तो चीन को खुद अपने मुल्क में ही तो प्रोडक्ट पूरा कर पाना मुश्किल हो जाएगी ।चीन को यह ऐसी चोट पड़ी है कि तत्काल पॉलिसी बदलकर सिद्धांत बदलकर इस खाई को भरना संभव नहीं चीन अभी संभली फिर भी सदियां लगेगी।उस चढ़ा न तक जाने में ।और इससे सबसे बड़ा रोड़ा उसके वही मानव संसाधन है जो इस्तेमाल हो रहे हैं थे मगर अब वह बिन इस्तेमाल किए संसाधन बनते जा रहे हैं। क्योंकि ऐसी स्थिति जब आएगी मानव संसाधनों को तब उसे इस्तेमाल किस तरीके से किस सिद्धांत तहत होगी इसका अता पता ना था ।ना आज है । अब चीन क्या बना देगी । हां बना तो जरूर देगी मगर समय चक्र घूमते घूमते बहुत आगे निकल गई । अब चीन अपने इस संसाधन का बवंडर संभाले उसे धमकियां देना शोभा नहीं देती क्योंकि यह वजन जो था मानव संसाधन के कारण व खोखली हो गई ।कब गिर जाएगी पता नहीं । अब इंडिया पर आइए। आज इंडिया जनसंख्या दर में चरम पर है । चलिए हम भी खुद को संसाधन मानव संसाधन समझ ले मगर संभलकर पलिसिया बनाने की जरूरत सरकार को है । जहां हमेशा एक संसाधन अपनी हर पड़ाव मे संसाधन ही रहे ना की जनसंख्या बन जाए वरना हमारी यही संसाधन मानव संसाधन दोधारी तलवार पर चला देगी। ज्यादा खाने से पेट खराब हो जाती है । तो क्या हम खाना खाना ही छोड़ देंगे कि खाना प्रकृति नियम खाएंगे मगर ज्यादा नहीं खाएंगे ।काहे का पेट खराब होगी । लेकिन इंडिया की पॉलिसी उससे भी गंदी अर्थहीन है । जैसे शिक्षा को देखिए इंडिया की विश्व बैंक को जब यह ज्ञात हुई कि इंडिया की इस समय अवधि में युवाओं का बोलबाला रहेगा । क्योंकि इंडिया विकासशील मुल्क है । शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा को बेहतर व्यवस्था जुटाने में इंडिया को धन की आवश्यकता होगी इसलिए कम ब्याज दर में धन उपलब्ध कराई गई । इंडिया की केंद्र सरकार क्या पकड़ती राज्य सरकार विश्व बैंक की इस ऑफर को लपक ली । विश्व बैंक जानती थी कि इंडिया की प्रारंभिक शिक्षा का स्तर क्या है । कितनी सुलभ है । इसलिए सर्व शिक्षा अभियान तहत राज्यों को धन मुहैया कराया गया । चलिए धन की आंकड़े नहीं लिखता । मगर सच्चाई यह है कि राज्य सरकारों ने विश्व बैंक से लिए सर्व शिक्षा अभियान के पैसे को अपनी दूसरी योजनाओं में शिफ्ट कर दी क्योंकि इसका भंडा ना फूट जाए स्कूल व्यवस्था जहां-तहां बिना प्लानिंग के कर दी गई । शिक्षकों की क्वालिटी ऐसी की घर का भी उनका बच्चा उनसे ना पढ़े। किसको पढ़ाना है। क्या पढ़ाना है । ना टीचर को पता है ना सरकार को । कोई उद्देश्य किस को पढ़ाना बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर पूरे तामझाम के साथ खुल गई सर्व शिक्षा अभियान की दुकान । उद्देश्य इस दुकान के नाम पर विश्व बैंक के रुपयों को किस्त दर किस्त लेते रहे । बच्चों के लिए जो रुपए मिले कुछ खाया सरकार ने और पेपर को ठीक करने के लिए जो भेजा गया वह लगभग खा गई सिस्टम । बच्चों तक कुछ भी शिक्षा ना पहुंचे ऐसा नहीं सर्व शिक्षा अभियान कि कर्मठता ऐसी है कि इसकी व्यवस्था शिक्षा को फार्मूला में बदल दिया यानि सर्व शिक्षा अभियान के फैलाव के लिए शिक्षा की फार्मूला तैयार कर दी वह फार्मूला ऐसा नहीं कि पढ़ने में बच्चे उबेगे। फार्मूला ऐसी बन गई की किताब कॉपी से एकदम से पेट भरने वाली खिचड़ी बन गई
बच्चे स्कूल आइए और अपना पेट भर भर कर खिचड़ी का पढ़ाई खाइए पेट में खिचड़ी डालिए। सब पढ़ाई खुद-ब-खुद याद हो जाएगी । पढ़ने पढ़ाने की जरूरत नहीं । वह भी खिचड़ी है जो घटिया चावल से भले ही बनती है । मगर इससे आप बिन पढ़ाई किए पढ़ जाएंगे और हम अपनी अपनी पेट भर कर विश्व बैंक का रुपया खाते रहेंगे । बेचारे बच्चे अपने पैसे मांग भी नहीं सकते । उन्हें पता ही नहीं कि उन्हें पैसे के पैसे से ही दुनिया नंगा नाच कर रही है । और हम चूहा मार मार्का खिचड़ी खा रहे हैं । बाजारों में चावल बना बनाया एक प्लेट ₹40 में मिलती है वहीं एक प्लेट चावल ₹400 में भी मिलती है । और जब सर्व शिक्षा अभियान का मकसद पेट भरने तक की ही है तब उनके बच्चों के भोजन का पैसा जो चावल की प्लेट की तरह 400 की आती है वह ₹40 कैसे हो जाती है ।बच्चों को बताएं । क्योंकि जब विश्व बैंक का पैसा लौटाने की बारी आएगी आप हाथ खड़े कर देंगे । यही बच्चा उस अवधि में बड़ा हो जाएगा । आप टैक्स के रूप में वसूल लेंगे वह पैसा इनको ही देना पड़ेगा। तब बड़ा हो चुका यही बच्चा हकीकत जान जाएगा । नफरत हो जाएगी। ऐसी स्थिति में अगर उन्होंने बंदूक उठा ली तब इसका जिम्मेवार कौन ? इसलिए समय रहते सचेते वरना यही हमारी मानव संसाधन चीन की तरह जनसंख्या ना बन जाए। इसकी प्लानिंग करें और आदि से अंत तक मानव संसाधन बनाकर जोड़े रखें वरना कल आपकी हमारी अर्थी उठाने वाला भी नहीं होगा । और हम सभी ओल्ड एज होम की शोभा बन जाएंगे ।

जय हिंद
कुमार गौरव
झुमरी तिलैया , कोडरमा
झारखण्ड